सीबीआई को दिल्ली हाईकोर्ट से झटका लगा है. दिल्ली के उच्च न्यायलय ने सीबीआई से कहा कि माना कि सीबीआई (केंद्रीय जांच एजेंसी) राइट टू इंफॉर्मेशन एक्ट यानी सूचना के अधिकार से बाहर है मगर पूरी तरह नहीं.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भ्रष्टाचार, मानवाधिकार के उल्लंघन से जुड़ा अगर मामला हो तो सीबीआई को जानकारी देनी ही पड़ेगी. आरटीआई कानून की धारा 24 में इस बात का जिक्र है कि कुछ संस्थाएं आरटीआई के दायरे से बाहर रहेंगी. इन संस्थानों का जिक्र कानून के दूसरे शेड्यूल में मिलता है.
जज जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने आरटीआई के तहत भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े जिन दो अपवादों का जिक्र किया, ये नई बात नहीं. पहले भी कुछ एक मामलों और एजेंसियों को लेकर अदालतें इस बात को दर्ज करा चुकी हैं फिर भी ऐसे विवाद अदालत के समक्ष जाते रहे हैं.
CBI और RTI का पूरा मामला
ये पूरा मामला ‘एम्स के खेमका’ कहे गए अधिकारी संजीव चतुर्वेदी से जुड़ा था. 49 बरस के चतुर्वेदी 2002 बैच के हरियाणा कैडर के आईएफएस यानी इंडियन फॉरेस्ट सर्विस के अधिकारी हैं. इन दिनों उत्तराखंड के नैनिताल जिले में जंगलों के संरक्षण को लेकर बने रिसर्च विभाग में चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं.
जब एम्स में बतौर चीफ विजिलेंस ऑफिसर उनकी तैनाती थी, सीबीआई वाला केस उसी से जुड़ा हुआ है. एम्स में अपने कार्यकाल के दौरान चतुर्वेदी ने कई चर्चित घोटलों को उजागर किया था. इन्हीं में से एक था ‘जयप्रकाश नारायण एपेक्स ट्रॉमा सेंटर’ के एक मेडिकल स्टोर की खरीद को लेकर कथित भ्रष्टाचार का मामला. सीबीआई इसकी जांच कर रही थी.
ऐसे में, एक व्हिसल ब्लोअर के तौर पर चतुर्वेदी ने सीबीआई से आरटीआई के जरिये ये जानना चाहा कि ट्रॉमा सेंटर में भ्रष्टाचार के जो आरोप लगे, उस सिलसिले में जांच की जानकारी मुहैया कराई जाए. सीबीआई ने संजीव चतुर्वेदी की अर्जी पर गौर नहीं किया. चतुर्वेदी ने सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमिश्नर यानी केंद्रीय सूचना कमिश्नर के यहां जानकारी के लिए अपील की.
नवंबर 2019 में सीआईसी ने सीबीआई से जानकारी उपलब्ध कराने को कहा. सीबीआई अड़ गई कि हम जानकारी नहीं देंगे क्योंकि आरटीआई कानून का सेक्शन 24 हमें इसकी छूट देता है जहां ऐसी सूचना देने के लिए हम पाबंद नहीं हैं. मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा जिस पर अब जाकर फैसला आया है.
कोर्ट ने सीबीआई की याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि मांगी गई जानकारी चूंकि किसी संवेदनशील जांच से जुड़ी हुई नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि भ्रष्टाचार के इस मामले को लेकर खुलासा करने पर जांच करने वाले अधिकारियों का कुछ नुकसान हो जाएगा. लिहाजा, अपने फैसले में कोर्ट ने सीबीआई से मांगी गई जानकारी मुहैया कराने को कहा है.
RAW और RTI का एक मामला
संवेदनशील मामलों को देखते हुए ही खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को आरटीआई कानून में कुछ विशेष छूट दी गई थी. पिछले साल एक दूसरे मामले में जो कि देश की खुफिया एजेंसी रॉ से जुड़ा हुआ था, कमोबेश इसी बात को दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश में भी हाईलाइट किया गया था. हालांकि तब कोर्ट ने मांगी गई जानकारी को भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ा नहीं पाया था.
उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी संजीव त्रिपाठी 2010 से 2012 के दौरान दो बरस तक रॉ के सेक्रेटरी यानी चीफ रहे. 1986 के बाद संजीव त्रिपाठी को अलॉट हुए सभी सरकारी आवास के बारे में याचिकाकर्ता निशा प्रिया भाटिया ने जानकारी मांगी थी. जब भाटिया को रॉ से इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने सीआईसी का दरवाजा खटखटाया.
सीआईसी ने भी 2017 में जानकारी देने से मना कर दिया और कहा कि मांगी गई जानकारी न तो भ्रष्टाचार से जुड़ी है और ना ही मानवाधिकार उल्लंघन से और इन दोनों अपवादों के अलावा रॉ दूसरी किसी भी तरह की जानकारी देने को बाध्य नहीं है. इसी बात को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दर्ज करते हुए सीआईसी के आदेश में किसी भी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.
ये 27 संस्थान हैं RTI से बाहर
पिछले साल तक कुल 26 ऐसे संस्थान थे जो आरटीआई कानून के दूसरे शेड्यूल में शामिल थे. यानी इन पर आरटीआई कानून पूरी तरह से लागू नहीं होता. भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों को अगर छोड़ दें तो और दूसरे मामले में ये संभी संस्थान सूचना देने से मना कर सकते हैं. पिछले साल इस लिस्ट में सर्ट-इन या सीईआरटी-इन (CERT-In) का भी नाम जुड़ गया.
सीईआरटी-इन (Indian Computer Emergency Response Team, CERT-In) एक सूचना और टेक्नोलॉजी से जुड़ा सुरक्षा संस्थान है. 2004 में ये वजूद में आई इस नोडल एजेंसी का काम साइबर सेक्योरिटी से जुड़े खतरे मसलन हैकिंग, फिशिंग की पहचान करना और उनसे निपटना है. भारत सरकार ने पिछले साल नवंबर महीने में इसको भी आरटीआई कानून के दूसरे शेड्यूल में शामिल कर दिया.
मतलब सीईआरटी-इन से अब और दूसरे 26 संस्थानों ही की तरह आरटीआई का इस्तेमाल कर जानकारी नहीं मांगी जा सकती थी सिवाय इसके कि वह मामला भ्रष्टाचार या फिर मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ा हुआ न हो. तो इस तरह कुल 27 खुफिया और सुरक्षा संगठन ऐसे हो गए जिनको आरटीआई कानून से विशेष छूट मिल गई.
ये 27 संस्थान हैं
आईबी यानी इंटेलिजेंस ब्यूरो
रॉ यानी रिसर्च और एनालिसिस विंग
रॉ का तकनीकी विंग यानी एविएशन रिसर्च सेंटर
एनआईए यानी नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (राष्ट्रीय जांच एजेंसी)
सीबीआई यानी सेंट्रल ब्योरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (केंद्रीय जांच ब्यूरो)
डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस
केंद्रीय आर्थिक खुफिया ब्यूरो
ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो
विशेष सीमा बल
बीएसएफ यानी सीमा सुरक्षा बल
सीआरपीएफ यानी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल
आईटीबीपी यानी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस
सीआईएसएफ यानी केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल
एनएसजी यानी राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड
असम राइफल्स
एसएसबी यानी सशस्त्र सीमा बल
डीजी-आईटी-इंवेस्टिगेशन यानी आयकर महानिदेशालय (जांच)
नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानी राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन
एफआईयू यानी भारत का फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट
एसपीजी यानी स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप
डीआरडीओ यानी डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंटल ऑर्गनाइजेशन (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन)
बीआडीओ – सीमा सड़क विकास बोर्ड
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय
एनआईजी यानी नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड)
एसएफसी यानी स्ट्रेटेजिक फोर्स कमांड
सीईआरटी-इन यानी इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम
– एजेंसी
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