मुन्ना बजरंगी हत्याकांड में अब दाखिल हुई CBI की चार्जशीट, हुए कई बड़े खुलासे

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जेल के आला अफसर मौके पर पहुंचे। आनन-फानन में तन्हाई बैरक का ताला तोड़ा गया। अंदर जाकर देखा तो सामने खून से लथपथ एक लाश पड़ी थी। लाश थी कुख्यात गैंगस्टर मुन्ना बजरंगी की। वो मुन्ना बजरंगी, जो पूर्वांचल के खूंखार माफिया मुख्तार अंसारी का राइट हैंड था। जिसे चलता-फिरता यमदूत कहा जता था। और, इस कत्ल को अंजाम दिया था एक दूसरे गैंगस्टर सुनील राठी ने।

कत्ल को पूरी प्लानिंग के साथ अंजाम दिया गया था। मुन्ना बजरंगी के बचने की कोई गुंजाइश ना रहे, इसलिए दो गोलियां सिर में मारी गईं। बीच-बचाव में कोई कैदी ना आ सके, इसलिए तन्हाई बैरक पर ताला जड़ दिया गया। गोली मारने के तुरंत बाद पिस्टल भी गटर में फेंक दी गईं।

हाई सिक्योरिटी जेल में कैसे पहुंची गन

हत्याकांड को बागपत जेल की हाई सिक्योरिटी बैरक में अंजाम दिया गया था। खबर फैली तो पूरे यूपी में सियासी हंगामा मच गया। मामले में हाई लेवल जांच के आदेश जारी कर दिए गए। जेलर और डिप्टी जेलर सहित चार लोगों सस्पेंड कर दिया गया लेकिन सवाल बहुत थे। आखिर जेल के अंदर पिस्टल कैसे पहुंची? मुन्ना बजरंगी की सेल के बाहर पुलिसवालों सहित 8 सुरक्षाकर्मियों की ड्यूटी थी। हत्याकांड के वक्त ये सुरक्षाकर्मी कहां थे? तन्हाई बैरक को आखिर किसने बाहर से ताला लगाकर बंद किया? ये वो सवाल थे, जिनसे अगले दिन अखबारों के पन्ने भरे पड़े थे।
कौन था मुन्ना बजरंगी?

प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी ने 14 साल की उम्र में ही अपराध की दुनिया में कदम रख दिया था। शुरू से ही उसे बंदूकों से खेलने का शौक था। महज 5वीं तक पढ़े मुन्ना का गांव के ही एक शख्स से विवाद हुआ, तो गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। वो महज 17 साल का था, जब उसके ऊपर पहला केस दर्ज हुआ। इसके बाद पुलिस फाइलों में उसके नाम के आगे संगीन धाराएं दर्ज होने लगीं। मुन्ना क्राइम की दुनिया में नाम कमाना चाहता था। उसने जौनपुर के कुख्यात गैंगस्टर गजराज सिंह का गैंग जॉइन कर लिया। 1984 में मुन्ना उस वक्त खबरों में आया, जब उसने एक बड़े बिजनेसमैन का दिनदहाड़े मर्डर कर दिया। इसके बाद भाजपा नेता रामचंद्र सिंह की हत्या में भी उसका नाम आया।

कैसे मुख्तार का राइट हैंड बना मुन्ना बजरंगी?

1990 का दशक आते-आते मुन्ना बजरंगी पूर्वांचल के डॉन मुख्तार अंसारी के गैंग में शामिल हो गया। मुख्तार अपना गैंग मऊ से चलाता था, लेकिन उसका दबदबा पूरे पूर्वांचल में था। मुख्तार ने मुन्ना बजरंगी को सरकारी ठेके हासिल करने का काम सौंपा। मुन्ना उसके भरोसे पर खरा उतरा और हर बड़ा ठेका मुख्तार को मिलने लगा। साल 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या हुई। इस हत्याकांड को भी मुन्ना बजरंगी ने ही अपने गुर्गों के साथ अंजाम दिया था। इसके बाद उसका नाम पुलिस की मोस्ट वांटेड लिस्ट में आ गया। 2009 में मुन्ना बजरंगी को मुंबई से गिरफ्तार कर लिया।

क्या इस वजह से हुई मुन्ना बजरंगी की हत्या?

मुन्ना बजरंगी उस वक्त से ही निशाने पर आ गया था जब उसने अपराध की दुनिया से राजनीति में उतरने का फैसला लिया। 2012 में वो जेल से ही अपना दल और पीस पार्टी ऑफ इंडिया के गठबंधन से चुनाव लड़ा, लेकिन तीसरे नंबर पर आया। इसके बाद 2017 में उसने अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारा। हालांकि, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर लड़ी उसकी पत्नी को भी हार मिली। इस बीच खबर आई कि मुन्ना बजरंगी जेल से ही जौनपुर से चुनाव मैदान में उतर सकता है लेकिन इससे पहले ही जेल में उसकी हत्या हो गई।

-एजेंसी