वन्य जीवों और पेड़ों के लिए अपनी जान पर खेलता बिश्नोई समाज

बिश्नोई समाज राजस्थान का एक अनूठा समुदाय है जो सदियों से पेड़-पौधों और वन्य जीवों की रक्षा में अपना जीवन समर्पित करता आया है। यहां की महिलाएं घायल हिरणों को अपने बच्चों की तरह पालती हैं। 1730 में खेजड़ली गांव में अमृता देवी और 363 बिश्नोईयों ने पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर […]

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हरियाणा के हिसार का गावड़ गांव — “माटी की खुशबू में रची-बसी एक मंडप छह शादियाँ”

आंगन में खिलती छह ख़ुशियाँ: किसान राजेश के बच्चों की अनूठी शादी की कथा धूप की तपती किरणों के बीच, खेतों में लहलहाती फसलों के बीच, मिट्टी की सौंधी गंध में रची-बसी एक कहानी जन्म लेती है। यह कहानी किसी बड़े शहर की भव्यता की नहीं, किसी महंगे मंडप की चकाचौंध की नहीं, बल्कि एक […]

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ढाणी बीरन की चौपाल से उठी नई सुबह: हरियाणा के एक गांव ने बेटियों-बहुओं को घूंघट से दी आज़ादी

“परंपरा तब तक सुंदर है, जब तक वह पंख न काटे। घूंघट हटा, तो सपनों ने उड़ान भरी।” “जहां घूंघट गिरा, वहां सिर ऊंचे हुए। ढाणी बीरन से उठी हौसलों की एक नई फसल।” हरियाणा के ढाणी बीरन गांव ने एक ऐतिहासिक पहल करते हुए बहू-बेटियों को घूंघट प्रथा से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया […]

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पशु सेवा, जनसेवा से कम नहीं: “विश्व पशु चिकित्सा दिवस पर एक विमर्श”

विश्व पशु चिकित्सा दिवस हर साल अप्रैल के अंतिम शनिवार को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य पशु चिकित्सकों की भूमिका को सम्मान देना और पशु स्वास्थ्य, मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के आपसी संबंधों पर ध्यान केंद्रित करना है। यह लेख बताता है कि कैसे पशु चिकित्सक सिर्फ जानवरों के डॉक्टर नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था, खाद्य […]

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पहलगाम: हमला पाकिस्तान प्रायोजित, लेकिन क्या केंद्र सरकार की नाकामी कुछ कम है?

नोटबंदी के बाद मोदी सरकार का दावा था कि आतंकवाद की कमर तोड़ दी गई है। संविधान के अनुच्छेद-370 को खत्म करते हुए दूसरा दावा था कि आतंकवाद की जड़ को खत्म कर दिया गया है। संसद में इस सरकार ने बार बार अपनी पीठ ठोंकी है कि कश्मीर घाटी में सब ठीक है, आतंकवाद […]

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अभी तो मेंहदी सूखी भी न थी: पहलगाँव की घाटी में इंसानियत की हत्या

जम्मू-कश्मीर के पहलगाँव में हुए आतंकी हमले में जहाँ एक नवविवाहित हिंदू पर्यटक को उसका नाम पूछकर सिर में गोली मार दी गई। ये हमला सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि धार्मिक पहचान के आधार पर की गई घृणा और आतंक का प्रतीक है। मृतक की पत्नी की स्तब्ध तस्वीर को राष्ट्र की आत्मा का जख्मी […]

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फसलों में लगती आग: किसान की मेहनत का जलता सपना

हर साल हजारों एकड़ फसल आग में जलकर राख हो जाती है, जिससे किसानों की मेहनत, उम्मीदें और जीवन प्रभावित होते हैं। आग के मुख्य कारणों में बिजली की लचर व्यवस्था, मानवीय लापरवाही, आपसी दुश्मनी और जलवायु कारण शामिल हैं। सरकारी मुआवज़ा योजनाएं और फसल बीमा प्रक्रियाएं इतनी जटिल और असंवेदनशील हैं कि पीड़ित किसान […]

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शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, थाना और तहसील: संस्थानों की विफलता गंभीर चिंता का विषय

शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, थाना और तहसील जैसे पाँच संस्थानों की विफलता गंभीर चिंता का विषय है। शिक्षा अब ज्ञान नहीं, कोचिंग और फीस का बाजार बन चुकी है। स्वास्थ्य सेवाएँ निजीकरण की भेंट चढ़ चुकी हैं, जहाँ इलाज से ज्यादा पैकेज बिकते हैं। चिकित्सा व्यवस्था मुनाफाखोरी का अड्डा बन गई है। थाने न्याय की जगह […]

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लोकतंत्र से चुनकर आकर लोकतंत्र को सीमित करने की कोशिश: न्यायपालिका निशाने पर क्यों..

प्रतिक्रियावाद का यह पुराना तरीका है। करो खुद आरोप दूसरे पर लगा दो। प्रतिक्रियावाद दक्षिणपंथ पाखंड पर ही चलता है। मूल उद्देश्य होता है लोगों को बेवकूफ बनाकर अपना काम निकालाना। इसके लिए वे कुछ भी कह सकते हैं। किसी पर भी कोई भी आरोप लगा सकते हैं। ताजा उदाहरण है निशिकांत दुबे का। न्यायपालिका […]

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प्राइवेट स्कूल का मास्टर: सम्मान से दूर, सिस्टम का मज़दूर

प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों से उम्मीदें तो आसमान छूती हैं, लेकिन उन्हें न तो उचित वेतन मिलता है, न सम्मान, न छुट्टी और न ही सुरक्षा। महिला शिक्षक दोहरी ज़िम्मेदारियाँ उठाती हैं, वहीं शिक्षक दिवस के दिन सिर्फ प्रतीकात्मक सम्मान मिलता है जबकि सालभर उनका शोषण जारी रहता है। अभिभावक, स्कूल प्रबंधन और सरकार तीनों […]

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