बिहारियों, उत्तर भारतीय लोगों और हिन्दी भाषियों पर कथित अपमानजनक टिप्पणी के एक मामले में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) प्रमुख राज ठाकरे ने बिना शर्त माफ़ी माँगी है. कोर्ट ने उनका माफ़ीनामा स्वीकार कर लिया है. यह मामला पिछले सोलह साल से अदालती प्रक्रिया में था.
जमशेदपुर के एक अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू ने साल 2007 में राज ठाकरे के खिलाफ वहाँ के सोनारी थाने में शिकायत की थी.
पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किए जाने पर उन्होंने 13 मार्च 2007 को जमशेदपुर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) की अदालत में शिकायत वाद दर्ज कराया.
सीजेएम ने यह केस तत्कालीन प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी डी सी अवस्थी के कोर्ट में सुनवायी के लिए भेज दिया. उस कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लेकर राज ठाकरे को समन जारी किया. राज ठाकरे इस समन के खिलाफ झारखंड हाई कोर्ट गए लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली.
इसके बाद उन्होंने सितंबर 2011 में दिल्ली हाई कोर्ट की शरण ली. दिल्ली हाई कोर्ट ने ये मामला तीस हज़ारी कोर्ट को ट्रांसफ़र कर दिया.
दिसंबर 2012 में तीस हज़ारी कोर्ट ने भी उनके खिलाफ ग़ैर ज़मानती वारंट जारी कर मुंबई के पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर राज ठाकरे को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया. यह मामला तभी से लंबित था. राज ठाकरे ने अंततः अपने अधिवक्ता अनुपम लाल दास के माध्यम से कोर्ट में माफ़ीनामा प्रस्तुत किया.कोर्ट ने इसे स्वीकार कर इस मामले को समाप्त करने का आदेश दिया है.
अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू ने आरोप लगाया था कि राज ठाकरे ने 9 मार्च 2007 को मुंबई के सायन इलाके में स्थित शणमुखानंद सभागार में बिहारियों, उत्तर भारतीयों और हिन्दी भाषियों पर अपमानजनक टिप्पणी की थी. राज ठाकरे तब अपनी पार्टी के स्थापना दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे.
Compiled: up18 News
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