आज हम रफ़्तार और महत्वाकांक्षा वाली ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहां उम्मीदों को हक़ीक़त बनाना और ख़्वाबों को परवान चढ़ाना होता है.
बहुत से लोगों का मानना है कि ये ऐसी ज़ेहनी कैफ़ियत है, जिसने हमें पहले से कहीं ज़्यादा फ़िक्रमंद और अवसाद का शिकार बना दिया है.
सवाल ये है कि ‘हमारे सोचने के मौजूदा तरीक़े में आख़िर क्या गड़बड़ी है?’ और क्या इस बात का कोई सुबूत है कि ‘मंत्र ध्यान के ज़रिए हम अपने ज़ेहन को चंगा कर सकते हैं?’
किसी औसत दिन के चौबीस घंटों में हमारे ज़ेहन में 60 हज़ार तरह के ख़याल आते हैं.
ध्यान एक ऐसा तरीक़ा है जो हमारे दिमाग़ को किसी बंदर की तरह ख़यालों की किसी एक शाख़ से दूसरे विचार की ओर छलांग लगाने से बचाता है.
मंत्र हमें एक ही वक़्त में कई तरफ़ ध्यान लगाकर अपनी ऊर्जा बर्बाद करने से रोकते हैं.
मन’ और ‘त्र’ के मेल से बना मंत्र
‘द एनशिएंट साइंस ऑफ़ मंत्रास’ किताब के लेखक, ओम स्वामी बताते हैं, “मंत्र ध्यान से मेरा परिचय ज़िंदगी के बहुत शुरुआती दौर में ही हो गया था. और तभी से मैंने मंत्र जपना शुरू कर दिया था.”
संस्कृत का मंत्र शब्द दो शब्दों ‘मन’ और ‘त्र’ के मेल से बना है. मन का मतलब हमारा दिमाग़ है और त्र का अर्थ औज़ार है.
बहुत से लोगों की नज़र में मंत्र एक ऐसा औज़ार है, जिसके ज़रिए हम उस ढर्रे को दुरुस्त कर सकते हैं, जिस पर हमारा ज़ेहन चलता है.
लेकिन मंत्रों के पारंपरिक इस्तेमाल में इसके असर की एक और गहरी संभावना छिपी हुई है.
आवाज़ इंसान के अस्तित्व का अभिन्न अंग है. ओम स्वामी कहते हैं, “हम जो शब्द बोलते हैं वो हमारे मुंह से निकलने वाली आवाज़ ही तो है. और ये शब्द हमारी दुनिया बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं.”
मंत्रों को कुछ इस तरह बनाया गया है कि वो हमें ऐसी हालत से बचाने का कवच बन जाएं. मंत्र आपके दिमाग़ को, अपने मन को ज़िंदगी में लगातार दख़ल देने वाली सूचनाओं और जज़्बात के निरंतर हमले से बचाने का काम करते हैं.
नकारात्मक सोच
इंसान की गुज़रे हुए कल को याद रखने और भविष्य के ख़्वाब गढ़ने की क्षमता ही उसकी नस्ल को अब तक कामयाब बनाती आई है. हालांकि ये हुनर हमारे लिए नुक़सानदेह भी साबित हुए हैं.
लिंकोपिंग यूनिवर्सिटी में न्यूरोइमेजिंग की एसोसिएट प्रोफ़ेसर रोज़ालिन साइमन का कहना है कि निश्चित रूप से हमारी ख़ूबी हमारी मददगार है. ये सैद्धांतिक रूप से अस्तित्व बचाने वाला एक शानदार हुनर है.
वो कहती हैं, “जब हम ख़ुद को क़ुदरत के जंगलीपन या फिर नकारात्मक तजुर्बों से बचाने की कोशिश करते हैं, तो हमारी ये ख़ूबी काफ़ी काम आती है.”
“लेकिन, इंसान के तौर पर हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में याद रखने और कल्पना करने की प्रक्रियाओं का कुछ ज़्यादा ही सामना करते हैं, और ये बात हमारी ज़िंदगी आसान नहीं बनाती, क्योंकि ये आदतें ही हैं, जो हमें कुछ ज़्यादा ही चिंतन मनन में डाल देती हैं.”
हमारे जीवन में नकारात्मक मंत्र भी होते हैं. जैसे कि बहुत से लोगों के दिमाग़ में हमेशा ये चलता रहता है, ‘मैं इस ज़िंदगी के लिए फिट नहीं हूं.’
‘मैं कभी नहीं कर सकूंगा’ या फिर ‘मैं हमेशा ही ऐसा हो जाता हूं.’ ऐसे विचार भी हमारे ज़ेहनों में उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं.
‘मैं कामयाब नहीं हो सकूंगा’
हम जब भी अपने भविष्य की कल्पना करते हैं, तो हम अपने दिमाग़ के उस हिस्से को सक्रिय कर देते हैं, जिसे वैज्ञानिक भाषा में डिफॉल्ट मोड नेटवर्क कहते हैं.
हमारे मस्तिष्क का ये हिस्सा समस्याओं का समाधान करने जैसे कामों के लिहाज़ से बेहद अहम है. लेकिन, हमारे दिमाग़ का ये हिस्सा अक्सर अवसाद में डालने वाले मंथन और आत्मविश्लेषण करने वाले विचारों का केंद्र भी होता है.
जब दिमाग़ का डिफॉल्ट मोड नेटवर्क सक्रिय होता है, तो लोग बताते हैं कि उनके मन में ख़ुद को तौलने, अपने काम का हिसाब किताब करने और मूल्यांकन करने जैसे विचार आते हैं.
अक्सर आप इन विचारों के आधार पर ये कल्पना भी करने लगते हैं कि भविष्य में आप किस हाल में होंगे.
जब दिमाग़ का ये हिस्सा, ये नेटवर्क काम कर रहा होता है, तो आप उस वक़्त अपने आपे में नहीं रहते. आप ख़यालों में ग़ुम रहते हैं.
रोज़ालिन साइमन कहती हैं, “अगर याददाश्त के लिहाज़ से देखें, तो अगर उस पल में कहीं मौजूद नहीं हैं, तो वो बात आपकी याददाश्त का हिस्सा नहीं बनेगी. अब चूंकि फिर आप उस लम्हे को, उस तजुर्बे को जी नहीं रहे होते तो बाद में वो आपको याद भी नहीं रहता.”
रोज़ालिन और उनकी साथी मारिया के मन में ये सवाल था कि क्या मंत्र ध्यान से हमारे दिमाग़ को वाक़ई राहत मिलती है, और क्या वो वैज्ञानिक आधार पर इसे साबित कर सकती हैं?
मारिया ने एक अध्ययन किया, जिसमें महिलाओं को शामिल किया गया. जब ये महिलाएं ख़ामोश रहकर मन में मंत्र का जाप कर रही होती थीं, तो उनके दिमाग़ की गतिविधि रिकॉर्ड की जाती थी. रोज़ालिन ने इस रिकॉर्ड का विश्लेषण किया.
दो हफ़्ते के इस कोर्स के बाद पता चला कि इस स्टडी में शामिल महिलाओं के मंत्र जपने के दौरान दिमाग़ के डिफॉल्ट मोड नेटवर्क वाले हिस्से की गतिविधियां काफ़ी कम हो गई थीं.
जब स्टडी में शामिल महिलाएं मंत्र दुहराती थीं, तो उनके मस्तिष्क का अटेंशन नेटवर्क सक्रिय हो जाता था और डिफॉल्ट मोड नेटवर्क वाला हिस्सा शांत पड़ने लगता था.
ध्यान से याददाश्त बढ़ती है?
जो लोग नियमित रूप से मंत्र जाप करते हैं, वो बताते हैं कि इससे उनके दिमाग़ में दूसरों के बारे में कोई धारणा बना लेने या फिर परेशान करने वाले विचारों में ग़ुम होने जैसे नकारात्मक ख़याल नहीं आते हैं. मंत्र जपते रहने से उनकी ध्यान केंद्रित करने और याद रख पाने की ताक़त बेहतर होती देखी गई.
रोज़ालिन कहती हैं कि, ‘वैसे तो बोध या ज्ञान प्राप्त होने का कोई ठोस परीक्षण हमारे पास नहीं है, लेकिन हम वैसा टेस्ट करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं.’
ओम स्वामी ने अपनी ज़िंदगी के 15 हज़ार से भी अधिक घंटे मंत्र जाप करने और ध्यान लगाने में ख़र्च किए हैं.
2018 में वैज्ञानिकों ने ओम स्वामी के मस्तिष्क की गतिविधियां उस समय रिकॉर्ड कीं, जब वो मंत्र जप रहे होते या ध्यान में डूबे होते. वैज्ञानिकों ने ये पाया कि ओम स्वामी के पास मस्तिष्क को स्थिर बनाए रखने और मन को शांत करने की अद्वितीय क्षमता थी.
अब किसी के भी मन में ये सवाल उठ सकता है कि आख़िर मंत्र पढ़ते हुए ध्यान लगाने की शुरुआत कैसे की जा सकती है?
ओम स्वामी कहते हैं, ‘एक अच्छा मंत्र एक अक्षर का भी हो सकता है और एक ऐसा लंबा वाक्य भी हो सकता है जिसमें हज़ारों शब्द हों.’
ऐसे लंबे मंत्रों को ‘माला’ मंत्र कहा जाता है. जैसे मोतियों की माला या मनके की माला.
मंत्र असल में अक्षरों को एक ख़ास तरीक़े से पिरोने से तैयार होते हैं. इनसे आपके मस्तिष्क में नई तंत्रिकाओं का निर्माण हो सकता है.
ऐसा नहीं है कि आप जो शब्द बोलते हैं, उन्हीं की अहमियत होती है. किसी शब्द को किसी ख़ास अंदाज़ में कहने की भी महत्ता होती है.
ओम स्वामी बताते हैं कि, ‘मंत्र असल में आवाज़ और ख़ामोशी को बहुत सोच विचारकर एक ख़ास पैटर्न में सजाकर रखी गई व्यवस्था होती है.’
असल में जब हम ख़ामोशी को किसी धुन या आवाज़ से जोड़ते हैं, तो वो तरन्नुम बन जाती है. उससे आवाज़ की ख़ूबसूरती और बढ़ जाती है.
अगर आप आंख खुली रखकर थोड़ा सा ध्यान दें और कोई शब्द बोलकर कुछ देर ख़ामोश रहें, और फिर इसी को एक लय, एक ताल में दोहराएं तो ख़ामोशी आपको भीतर से सचेत बनाती है.
मंत्र का भाषा और धर्म से रिश्ता
मंत्र पढ़ते हुए ध्यान लगाने के लिए आपको धार्मिक बनना हो, ये भी ज़रूरी नहीं है.
कोई इंसान किसी भी भाषा के किसी भी मंत्र को अपने ध्यान लगाने के लिए चुन सकता है. भाषा या धर्म से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.
ओम स्वामी बताते हैं कि ‘अगर छह हफ़्ते तक अपनी पसंद के किन्हीं शब्दों के साथ अभ्यास किया जाए, तो इससे दिमाग़ में जो नई तंत्रिकाएं बनती हैं, तो मंत्र चाहे जो भी हो, मस्तिष्क में इन तंत्रिकाओं का निर्माण तो होगा ही.’
आप ‘ब्रह्मांड का शुक्रिया’ को भी अपना मंत्र बना सकते हैं. और अगर इसे अंग्रेज़ी या किसी और भाषा में भी दोहराया जाए, तो भी ये कारगर साबित होगा. ये सब कुछ नीयत पर टिका होता है.
रोज़ालिन साइमन कहती हैं कि, ‘हम किसी भी चीज़ पर ध्यान केंद्रित कर लें, तो हमारे लिए वो विचारों का ऐसा ही औज़ार बन जाता है.’
सबसे अहम बात ये है कि आपके दिमाग़ में कौन सा ख़याल है. अगर आपके मन में आपके प्यारे कुत्ते का विचार आ रहा है, जो आपको बहुत अज़ीज़ है, तो वही आपके ज़ेहन को ठीक करने का, उसे सकारात्मक ऊर्जा से भरने का ज़रिया बन सकता है.
आपके लिए जो महत्वपूर्ण है, उसकी काफी अहमियत होती है और वही बात सबसे ज़रूरी है.
हम कोशिश करें तो मंत्रों के ज़रिए ख़ुद को अपनी ही उम्मीदों की बेड़ियों से आज़ाद कर सकते हैं. हक़ीक़त की ज़मीन पर उतर सकते हैं.
Compiled: up18 News
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