कूड़ा डंपिंग मामले में उदासीनता व लापरवाही दिखाने पर ट्रांस हिंडन आर.डब्ल्यू.ए. की पहल पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ) ने नगर निगम गाज़ियाबाद और गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण पर 200 करोड़ का जुर्माना लगाया है। जिससे देश भर में नगर निगम गाजियाबाद के स्वच्छता अभियान में अग्रणीय रहने की पोल खोल दिया है। भले ही न्यायालय के आदेश के बाद कूड़ा डम्पिंग रुक गया है । लेकिन साफ सफाई और निस्तारण में लापरवाही निवासियों के आक्रोश का कारण बन रही है।
जनपद गाज़ियाबाद के हाट सिटी कहे जाने वाले क्षेत्र इंदिरापुरम में शक्तिखण्ड 4 के निवासी सरकारी विभागों की आपसी तालमेल की कमी के कारण शारीरिक रोगों के शिकार होते जा रहे हैं। शक्तिखण्ड चार स्थिति क्षेत्र के रिहायशी कालोनी के बीच मे नगर निगम द्वारा क्षेत्र से निकलने वाले गंदगी और अन्य अपशिष्ट पदार्थ के कूड़े इकट्ठा करके खाली स्थान को कूड़े का पहाड़ बना दिया था । स्थानीय नागरिकों के विरोध प्रदर्शनों से बेपरवाह अधिकारियों के रवैये ढुलमुल बने हुए थे। जिसके कारण जनता का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा ।
शक्तिखण्ड स्थित डंपिंग यार्ड का मुद्दा पूरे गाज़ियाबाद के प्रशासन के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है। जनता के समस्याओं को लेकर स्थानीय और जनपद स्तर पर आर डब्लू ए अब एक सँयुक्त मंच ट्रांस हिंडन आर.डब्ल्यू.ए परिसंघ के रूप में आकार ले लिया है। इसके तत्वाधान में ही डंपिंग यार्ड के खिलाफ़ कानूनी लड़ाई छेड़ी गयी है। जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय हरित अभिकरण (एनजीटी) ने नगर निगम गाजियाबाद पर 150 करोड़ और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण पर 50 करोड़ का जुर्माना पिछले दिनों ठोका है। इस फैसले लेकर प्रशासनिक अमला न्यायालय में अपनी बात रखने के लिए तैयारी में लगा है। आगामी 6 फरवरी को न्यायालय में होने वाली सुनवाई में अपना पक्ष रखेगा ।
जीडीए कूड़े के निस्तारण के लिए गालंद में ले जाने के नाम पर आश्वासन दे रहा है । लेकिन यह आश्वासन कब सुफल परिणाम में बदलेगा इसकी इंतजार हज़ारों परिवारों को कई सालों से है।
ज्ञातव्य हो कि वसुंधरा जोन के अधिकांश क्षेत्र के दैनिक कूड़े को डोर कलेक्शन नीति के अंतर्गत निजी कंपनी के सहयोग से एक जगह इकट्ठा करके फिर उसका निस्तारण किया जाता है। निस्तारण में कमी के कारण कूड़े का पहाड़ बन जाता है । इसके बाद कूड़ा छटाई में लापरवाही और शिथिलता के कारण कूड़ा डीकम्पोज जाने से तमाम रासायनिक गैस उत्सर्जन का खतरा बरकरार रहता है। यही नही ऐसे लापरवाही के कारण होने वाली बीमारियों से जनता परेशान होना पड़ता है। इन समस्याओं से जनता को निजात कब मिलती है यह तो वक़्त बताएगा ।
एक दूसरे पर लगा रहे आरोप
राष्ट्रीय हरित अभिकरण (एनजीटी) के 200 करोड़ के जुर्माने के बाद भी सरकारी विभागों की नींद नही टूट रही है। एक दूसरे पर आरोप लगाकर अपने को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
ज्ञातव्य हो कि शक्तिखण्ड चार स्थित डंपिंग यार्ड के पास 3 एसटीपी प्लांट संचालित है ।जिसमें से 1 जीडीए द्वारा अत्याधुनिक तकनीक से लैस है जबकि 2 अन्य जलनिगम द्वारा । जलनिगम की पुरानी तकनीक के कारण भी दुर्गंध और वातावरण प्रदूषण की स्थिति से क्षेत्र की जनता परेशान रहती है। जबकि तीसरे विभाग प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जांच और रिपोर्ट के साथ जुर्माना की बात कहकर पल्ला झाड़ लेता है।
तीनो विभागों की आपसी रस्साकस्सी का परिणाम जनता को अपने खराब स्वास्थ्य की कीमत देकर पर चुकाना पड़ रहा है। बदबू और प्रदूषण के साथ रासायनिक गैस के उत्सर्जन डर से क्षेत्र के लोग इसके आस पास एरिया छोड़कर कही और शिफ्ट होने को मजबूर हो रहे है। वृद्ध और बच्चों के स्वास्थ्य सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है। जनता प्रशासन से नाउम्मीद अब न्यायालय में लड़ाई को अपना रास्ता चुन लिया है।अब देखना है कि प्रशासन न्यायालय के आदेश पर अमल करेगी या वही ढुल मूल रवैया अख़्तियार करेगी।
शैलेश पाण्डेय
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