आर्थिक सर्वेक्षण 2023: ग्रोथ ही बनेगी अर्थव्यवस्था की गति-शक्ति

अन्तर्द्वन्द
(लेखक विमल शंकर सिंह, डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज, वाराणसी के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं)

देश की निगाह आर्थिक सर्वेक्षण पर ही लगी थी क्योंकि अर्थव्यवस्था जिस राह में चल रही है और किस डगर पर चलना चाहती है उसकी एक बानगी उसमें दिखाई देती है। वस्तुतः अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के लेखे जोखे की एक झलक आर्थिक सर्वेक्षण में दिख जाती है । साथ ही चुनौतियां क्या हैं; राहें कौन-कौन सी हैं; देश को विकास के किस पथ पर ले जाना चाहती है हम सब की नुमाइंदगी करने वाली सरकार, इस खुली किताब के माध्यम से बताती दिखती है हम सब को । तो अर्थव्यवस्था के विकास की कुंडली देखनी हो तो आर्थिक सर्वेक्षण को देखिये, उसका अध्ययन कीजिये।यह आपको आगामी बजट में होने वाले परिवर्तनों का आभास भी दे देगी । तो जानने-समझनें कि व्यग्रता तो होनी ही थी, होनी ही चाहिए ।

2023 के आर्थिक सर्वेक्षण ने स्पष्ट कर दिया है कि यद्यपि नवउदारवाद के कांटे अर्थव्यवस्था को चुभोते रहेंगे, चुनौतियां देंगे किन्तु देश की आर्थिक डगर, काटों भरी राह से आगे निकल गई है और समाधान भी हैं । सर्वेक्षण आश्वस्त करती है की विकास की दौड़, ग्रोथ के मन्त्र के सहारे ही पूरी होगी किन्तु बाजार और उसकी मांग की समस्याएं एवं दशायें, समाधान के कुछ चिरपरिचित कदम, आने वाले वर्ष में और बजट में दिखाई देंगे। अब आइये इस निहितार्थ को आर्थिक सर्वेक्षण के चश्मे से देखा, समझा और जाना जाय ।
नवउदारवादी सरकारों की सबसे बड़ी चुनौती और समस्या विकास दर को बढ़ाने की होती है । मोदी सरकार भी इसी समस्या से जूझती दिखती है ।

इस वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण (सन 2022-23) बताता है कि सन 2021-22 में आर्थिक वृद्धि दर 8.7% थी ।इस वर्ष अर्थात सन 2022-23 में इसके 7% रहने की संभावना है ।लेकिन अगले वर्ष सन 2023-24 में, ग्रोथ दर के 6 से 6.8 % के बीच बने रहने की संभावना है। तो ग्रोथ की रफ़्तार धीमी हो जाएगी । लेकिन सरकार तो इस बात से खुश होती दिखाई देती है कि भारत की अर्थव्यवस्था, विश्व की मह्त्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में, सबसे तेजी से बढती हुई अर्थव्यवस्था होगी । तो सरकार इसे एक चमत्कार के रूप में प्रस्तुत करेगी क्योंकि नवउदारवादी अर्थव्यवस्थाएं अपनी कमजोरी को दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलनात्मक कमजोरी की आड़ लेती दिखतीं हैं । किन्तु प्रश्न तो यह है कि लगभग लगातार घटती विकास दर से देश का कल्याण कैसे बढ़ेगा? लेकिन आइये पहले समझें कि आर्थिक सर्वेक्षण की नज़र में अर्थव्यवस्था और सरकार के उत्साह के कौन कौन से बिंदु उभरते दिखाई देते हैं ?

अगले वित्तीय वर्ष में ग्रोथ के 6% से ज्यादा रहने के पीछे कारण, उद्योग और सेवा क्षेत्र में लगातार वृद्धि का जारी रहना होना है ।अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में साख की मांग में वृद्धि हुई है ।चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार भी दिखाई देती है जो विश्व अर्थव्यवस्थाओं को मदद करेगी । साथ ही सरकार की वित्तीय स्थिति में जीएसटी कलेक्शन में सुधार के कारण स्थिति बेहतर होने की पूरी संभावना है ।कर राजस्व में वृद्धि, राष्ट्रीय आय की वृद्धि से तो प्रभावित होती ही है साथ ही कर व्यवस्था में सुधार होने को भी सूचित करती है-ऐसा सर्वेक्षण मानता है ।

आर्थिक सर्वेक्षण विवेकपूर्ण राजकोषीय नीति को अपनाने की वकालत करती दिखती है और बताती है कि सरकार को नीची व्याज दरों की नीति को अपनाना चाहिए जिससे कि सभी वर्गों को राजकोषीय सहायता या प्रोत्साहन प्राप्त हो सके । नीची व्याज दरें, उधार को सस्ता कर देती हैं और पढाई करना, मकान बनवाना, कार खरीदना, व्यापार चालू करना आदि आसान हो जाता है । जाहिर है कि कम व्याज दर होने से जनता पर कम बोझ पड़ता है । इसके विपरीत, घाटे की राजकोषीय नीति से सरकार को ज्यादा उधार लेकर खर्च करना होता है, जिससे व्याज दरें ऊँची हो जाती हैं । हाल के वर्षों में सरकार ने विकास बढ़ाने के लिए पूंजीगत व्यय बढ़ाया है तो सस्ता उधार उसके लिए भी हमेशा बेहतर होगा । तो नीतिगत रूप से आने वाले समय में व्याज दरों के घटने की संभावना होगी और बेहतर राजकोषीय प्रबंधन के साथ घाटे का स्तर, लक्ष्य के करीब ही होगा ।

ग्रोथ को बढ़ाने के लिए सरकार, नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइप लाइन में शामिल सात ग्रोथ इंजिनों (सड़क, रेल, एयरपोर्ट, बंदरगाह, जन परिवहन, जलमार्ग और लॉजिस्टिक में शामिल क्षेत्रों ) को पीएम् गति शक्ति से जोड़ने का प्रयास बजट में कर सकती है । घरेलू जल परिवहन और नागरिक उड्डयन क्षेत्रों के दिन भी बहुरने के आसार हैं बजट में। तो स्पष्ट है कि आधारभूत संरचना के निर्माण में ही सरकार अब जोर लगाती दिखेगी । सरकार का अनुमान है कि इससे लागत में भारी कमी आएगी और उद्योग प्रतिस्पर्धी बनेंगे एवं उपभोक्ताओं को सस्ती वस्तुयें उपलब्ध हो पाएंगी । आत्मनिर्भर भारत के मिशन को मजबूत करने के लिए शिप बिल्डिंग उद्योग को मजबूती प्रदान किया जायेगा जिससे रोजगार के साथ साथ राष्ट्रीय आय को बढ़ावा मिल सके । रोजगार को बढ़ावा देने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को सरकार द्वारा विशेष तबज्जो दी जाएगी । इस उद्योग के विकास से ग्रामीण बेरोजगारी के समाधान के साथ साथ ही गरीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, महंगाई नियंत्रण, बेहतर पोषण और भोजन की बर्बादी जैसे मसलों को सुलझानें में मदद मिलेगी ।

सर्वेक्षण याद दिलाता है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में कुल रोजगार प्राप्त लोगों का 12.2 प्रतिशत अकेले खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में ही कार्यरत हैं ।तो आत्मनिर्भर भारत अभियान और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए कुछ घोषणाएं आपेक्षित हैं। स्मार्टफोन, मोबाइल टेक्नोलॉजी में नवाचार, डिजिटल पेमेंट में वृद्धि आदि उद्योग भी सरकार को अपनी तरफ आकर्षित करेंगे जिनमें 18 प्रतिशत प्रति वर्ष की तेज वृद्धि आंकी गई है ।

आर्थिक सर्वेक्षण मानता है कि भारत की डिजिटल क्रांति पर संसार चकित है और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर तो भारत के भविष्य का विकास निर्भर है तो वह कैसे सरकार की निगाह से अछूता रहेगा? कोरोना काल में हेल्थ केयर से लेकर कृषि, तकनीक आधारित वित्तीय कंपनियों,शिक्षा और कौशल विकास के विकास में जिस तरह से डिजिटल तंत्र ने जनता को सहायता दी उससे यह संकेत मिलता है कि देश में सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी में पूरे आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित करने की अभूतपूर्व क्षमता है । अतः इस क्षमता का विकास करने की सरकार की सोच आगे बढ़ेगी।

इसीभांति, सेवा क्षेत्र में शामिल उद्योग जैसे इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, बिज़नेस प्रोसेस मैनेजमेंट आदि भी सरकार के पसंदीदा क्षेत्र होंगे जिसके विकास में सरकार उन्मुख होगी ।ग्रीन हाइड्रोजन का क्षेत्र भी सरकार की विभिन्न योजनाओं की जद में आएगा । अनेक घोषणाएं अपेक्षित होंगी इस क्षेत्र के विकास के लिए, क्योंकि साफ और पर्याप्त ऊर्जा, समय की मांग है । ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि विकास पर फोकस बढ़ाने की भी आवश्यकता आर्थिक सर्वेक्षण महसूस करता है ।कृषि विकास दर को बनाये ऱखने के लिए उससे सम्बद्ध डेयरी, पशुधन, मुर्गी और मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों को विशेष प्राथमिकता देनें की आवश्यकता है क्योंकि ये क्षेत्र रोजगार सृजन में ही नहीं सहायक होते हैं अपितु निर्यात को भी इनसे बढ़ावा मिलता है ।

आर्थिक सर्वे ने बताया है कि भारत एक आर्थिक महाशक्ति बनने के द्वार पर खड़ा है और वह भारत की आज़ादी के 75 वें वर्ष में ही विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बन चुका था और इस वर्ष के मार्च के अंत तक हमारी अर्थव्यवस्था $3.5 ट्रिलियन डॉलर की भी हो जाएगी ।रिपोर्ट बताती है कि हम अमृत काल में रमण कर रहे हैं और इस समय अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी स्थिति में पहुंच चुकी है । रियल इस्टेट और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में बूम की स्थिति है और रोजगार बढ़ा है।
लेकिन सब अच्छा ही है, ऐसा नहीं है । युद्ध के काले बादल, घनघोर बने हुए हैं । विश्व मंदी के चपेट में दिखता है । रुपये का मूल्य घट रहा है । निर्यात घटा है और चालू खाते का घाटा बढ़ा है। इन सब कारकों का अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव लम्बे दौर तक बना रहेगा

महंगाई, बेरोजगारी, कुपोषण, गरीबी और असमानता के दंश बने हुए हैं । केवल एक प्रतिशत जनसँख्या के पास देश की कुल सम्पति का 40 प्रतिशत से ज्यादा है । ऑक्सफ़ैम की इस रिपोर्ट पर आर्थिक सर्वेक्षण चुप है । तो चुनौतियां तो हैं ।तो अपेक्षित क्या है बजट में ? मध्यम वर्ग को कुछ राहत मिल सकती है। ऐसा क्यों है ? क्योंकि विमुद्रीकरण, जीएसटी की मार से यह वर्ग खासा आहत रहा । कोरोना काल में किसी विशेष राहत का भगीदार भी नहीं बना । ऊपर से करों की मार से सबसे अधिक परेशान भी यही वर्ग रहा । प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सभी करों की भारी मार सहता रहा । पेट्रोलियम पदार्थो की बढ़ती कीमत ने उसकी जेबें खाली कर दी हैं । कर व्यवस्था में उसको एक लम्बे दौर से छूट भी नहीं प्राप्त हुई है । ऊपर से डी.ए. की कटौती भी हुई कोरोनाकाल में । उसकी बचत समाप्त हो चुकी है और इसीलिए देश की बचतदर और मांग दोनों तेजी से घटी हैं । अब यदि बचत बढ़ानी है, मांग और रोजगार बढ़ानी है तो मध्यम वर्ग की आय बढ़ानी ही होगी, करों में रियायत देकर । आखिर वोट का भी तो चक्कर होता है सरकारों के सामने।

(लेखक का आभार उन लेखकों, प्रकाशकों एवं संस्थाओ को है जिनकी रिपोर्टो एवं लेखन सामग्री का उपयोग इस आलेख को तैयार करने में किया गया है)

(लेखक विमल शंकर सिंह, डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज, वाराणसी के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं)
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