नई दिल्ली: डिजिटल अरेस्ट कर लोगों को लाखों रुपये का चूना लगाने वाले साइबर ठगों ने बिना किसी बड़े निवेश के अपना सेटअप बना रखा था, वे लैपटॉप पर बात करते समय भय का ऐसा माहौल बना देते थे कि पीड़ित घबरा कर उन्हें मोटी रकम ट्रांसफर कर देता था।
गौरतलब है कि आगरा पुलिस ने हाल ही में साइबर ठगी करने वाले चार शातिरों को गिरफ्तार किया। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पूछताछ में इन शातिरों ने पुलिस के समक्ष कबूल किया कि उन्हें सिर्फ एक कमरे की जरूरत होती है। उसमें मेज-कुर्सी लगाई। पीछे सीबीआई का लोगो लगाया और टेबल पर लैपटॉप खोल कर ठगी शुरू कर देते हैं। पकड़े न जाएं इसलिए साढ़े आठ सौ से सोलह-सत्रह सौ रुपये (दस से पंद्रह डॉलर) में तीन महीने के लिए वर्चुअल नंबर ऑनलाइन लेते थे। चोरी के मोबाइल फोन खरीदते। उसमें व्हाट्स एप शुरू करते थे। सोशल मीडिया पर आईपीएस लिखते ही तमाम अधिकारियों के फोटो आने लगते हैं। किसी की भी फोटो कॉपी करके वे डीपी बना लेते। रकम ट्रांसफर कराने के लिए खाते चाहिए होते हैं। इसके लिए बस्तियों में जाकर निम्न तबके के लोगों को सरकारी योजना बताकर खाते खुलवाते थे। खुद इन खातों का प्रयोग करते थे।
आपने क्या खरीदा, बीमा कराया या वाहन की सर्विस कराई सबका डाटा बाजार में बिकता है
यह अवैध धंधा डाटा पर चलता है। किसे घेरना है, यह पता करना साइबर अपराधियों के लिए मुश्किल काम नहीं है। सोशल मीडिया और शॉपिंग से लोगों की डिटेल लीक होती है। साइबर अपराधियों तक पहुंचती है। ऑनलाइन ही नहीं ऑफलाइन शापिंग से भी लोगों के मोबाइल नंबर साइबर अपराधियों तक पहुंच जाते हैं।
ये ठग जानते हैं कि सुबह से शाम तक लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं। कुछ भी खरीदना हो पहले गूगल पर सर्च जरूर करते हैं। ऑफ लाइन शापिंग में भी दुकानदार मोबाइल नंबर जरूर लेते हैं। बड़ी संख्या में लोग ऑनलाइन पेमेंट भी करने लगे हैं।
दिखावे का जमाना है। पहले कुछ नया खरीदने पर पड़ोसी तारीफ करते थे। अब तारीफ सोशल मीडिया पर मिलती है। लोग जब तक नई चीज खरीदने की जानकारी शेयर नहीं करते हैं उन्हें चैन नहीं पड़ता। किसके पास कार है या किसके पास बाइक। यह भी कंपनी से पता चल सकता है। वाहनों की सर्विस किसने कराई। बीमा किसने कराया। यह डाटा भी मिल जाता है।
एक दिन में शातिरों के एक खाते में 2.87 करोड़ रुपये की रकम आई
साइबर थाना पुलिस ने डिजिटल अरेस्ट के आरोप में मोहम्मद राजा रफीक (नई दिल्ली), मोहम्मद दानिश व मोहम्मद कादिर (बड़ौत, बागपत) व मोहम्मद सुहेल अकरम (असोम) को पकड़ा था। एक दिन में शातिरों के एक खाते में 2.87 करोड़ रुपये की रकम आई थी। मोहम्मद सुहेल अकरम कंप्यूटर साइंस में बीटेक है। डीसीपी सिटी सूरज राय के मुताबिक सुहेल ने पढ़ाई पूरी कर नौकरी भी की थी। वेतन कम लगा तो अपराध की राह पर चल निकला।
आरोपियों ने बताया कि उनका गैंग पहले नौकरी के नाम पर ठगी करता था। इसमें खतरा ज्यादा था। लोगों से मिलने के लिए सामने आना पड़ता था। फिर उन्होंने धंधा बदलकर डिजिटल अरेस्ट शुरू किया। किसी से मिलना नहीं पड़ता। सिर्फ डाटा चाहिए होता था। वह बाजार में बिकता है।