PFI और उससे जुड़े संगठनों पर लगा बैन, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जारी की अधिसूचना

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केंद्र सरकार ने अपने आदेश में पीएफ़आई पर ‘गुप्त एजेंडा चलाकर एक वर्ग विशेष को कट्टर बनाने’ और ‘आतंकी संगठनों से जुड़े होने’ की बात कही है.

आदेश में लिखा गया है, “पीएफ़आई और इसके सहयोगी संगठन या संबद्ध संस्थाएँ या अग्रणी संगठन एक सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक संगठन के रूप में काम करते हैं मगर ये गुप्त एजेंडा के तहत समाज के एक वर्ग विशेष को कट्टर बनाकर लोकतंत्र की अवधारणा को कमज़ोर करने की दिशा में काम करते हैं.”

साथ ही ये भी कहा गया है कि “पीएफआई कई आपराधिक और आतंकी मामलों में शामिल रहा है और ये देश के संवैधानिक प्राधिकार का अनादर करता है. साथ ही ये बाहर से फंडिंग लेकर देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा ख़तरा बन गया है.”

आदेश में कहा गया है कि पीएफ़आई का संबंध बांग्लादेश और भारत के दो ऐसे संगठनों से रहा है जिन पर प्रतिबंध लगा हुआ है.

इसमें लिखा गया है- “पीएफ़आई का संबंध आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश से भी रहा है. पीएफ़आई के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया यानी सिमी के नेता रहे हैं. ये दोनों ही प्रतिबंधित संगठन हैं.”

गृह मंत्रालय के आदेश में कहा गया है कि “पीएफ़आई के वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ संपर्क के कई उदाहरण हैं. पीएफ़आई के कुछ सदस्य आईएसआईएस में शामिल हुए और सीरिया, इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में आतंकी कार्यकलापों में भाग ले चुके हैं. पीएफ़आई के कुछ काडर इन देशों के संघर्ष क्षेत्रों में मारे गए हैं. कई काडर को राज्य और केंद्रीय पुलिस ने गिरफ़्तार किया है.”

गृह मंत्रालय ने पीएफ़आई के बारे में क्या-क्या कहा: 10 बातें

पीएफ़आई और इसके सहयोगी संगठन व संस्थाओं- रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (एनसीएचआरओ), नेशनल वुमन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल को पांच साल के लिए प्रतिबंधित किया गया है.

केंद्र सरकार ने ग़ैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 3 की उप-धारा (1) के तहत पीएफ़आई, उससे जुड़े संगठन और संस्थाओं को पांच साल के लिए प्रतिबंधित किया है.

पीएफआई, इसके सहयोगी संगठन और इससे जुड़ी संस्थाएं सार्वजनिक तौर पर एक सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक संगठन के रूप में कार्य करते हैं लेकिन ये गुप्त एजेंडा के तहत समाज के एक वर्ग को कट्टर बनाकर लोकतंत्र की अवधारणा को कमज़ोर करने की दिशा में काम करता है और देश के संवैधानिक प्राधिकार और संवैधानिक ढांचे के प्रति अनादर दिखाते हैं.

पीएफआई कई आपराधिक और आतंकी मामलों में शामिल रहा है और ये देश के संवैधानिक प्राधिकार का अनादर करता है. साथ ही ये बाहर से फंडिंग लेकर देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा ख़तरा बन गया है.

पीएफ़आई के वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ संपर्क के कई उदाहरण हैं. पीएफ़आई के कुछ सदस्य आईएसआईएस में शामिल हुए और सीरिया, इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में आतंकी कार्यकलापों में भाग ले चुके हैं. पीएफ़आई के कुछ काडर इन देशों के संघर्ष क्षेत्रों में मारे गए हैं. कई काडर को राज्य और केंद्रीय पुलिस ने गिरफ़्तार किया है.

पीएफ़आई का संबंध आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश से भी रहा है. पीएफ़आई के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया यानी सिमी के नेता रहे हैं. ये दोनों ही प्रतिबंधित संगठन हैं.

पीएफआई कई आपराधिक और आतंकी मामलों में शामिल रहा है और ये देश के संवैधानिक प्राधिकार का अनादर करता है. साथ ही ये बाहर से फंडिंग लेकर देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा ख़तरा बन गया है.

पीएफ़आई काडर कई आतंकवादी गतिविधियों और कई व्यक्तियों, मसलन- संजीत (नवंबर 2021), वी. रामालिंगम (2019), नंदू (2021), अभिमन्यू (2018), बिबियन (2017), शरत (2017), आर. रुद्रेश (2016),, प्रवीण पुजारी (2016), शशि कुमार (2016) और प्रवीण नेत्तारू (2022) की हत्या में शामिल हैं. ये हत्याएं सार्वजनिक शांति भंग करने और लोगों के मन में भय पैदा करने के इरादे से की गईं.

पीएफ़आई के पदाधिकारी, काडर और इससे जुड़े अन्य लोग बैंकिंग चैनल, हवाला, दान के ज़रिए सुनियोजित अपराधिक षड्यंत्र के तहत भारत के भीतर और बाहर से फंडिग जुटा रहे हैं और फिर उस धन को वैध दिखाने के लिए कई खातों के माध्यम से उसकी लेयरिंग, एकीकरण करते हैं और इस तरह देश में अलग-अलग आपराधिक और ग़ैर-कानूनी, आतंकी कामों के लिए इस फंडिंग का इस्तेमाल करते हैं.

पीएफ़आई की ओर से उनसे संबंधित कई बैंक खातों में जमा पैसे के स्त्रोत खाताधारकों के वित्तीय प्रोफ़ाइल से मेल नहीं खाते और पीएफ़आई के काम भी उसके घोषित उद्देश्यों के अनुसार नहीं पाए गए. इसलिए आयकर विभाग ने आयकर अधिनियम 1961 की धारा 12-ए के तहत मार्च 2021 में इसका रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था. और इससे जुड़ी संस्था रिहैब इंडिया फ़ाउंडेशन का रजिस्ट्रेशन भी रद्द कर दिया था.

छापेमारी के बाद लगा बैन

पिछले दिनों देश भर में पीएफ़आई के दफ़्तरों, नेताओं और सदस्यों के घरों पर बड़े पैमाने पर छापेमारी की गई थी. राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और राज्यों की पुलिस ने एक साथ मिलकर ये छापेमारी की थी.

मंगलवार को देश के सात राज्यों में छापेमारी के बाद पीएफ़आई से कथित तौर पर जुड़े होने के आरोप में 150 से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया गया था. 27 सितंबर को दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, असम और मध्य प्रदेश में छापे मारे गए.

पाँच दिन पहले भी पीएफ़आई के ख़िलाफ़ ऐसी ही छापेमारी की गई थी. 22 सितंबर को 15 राज्यों में छापेमारी कर 106 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था.

पीएफ़आई का गठन कब हुआ?

पीएफ़आई की स्थापना 17 फ़रवरी, 2007 को हुई थी. ये मूलतः दक्षिण भारत का संगठन रहा है
केरल में ‘नेशनल डेवलेपमेंट फ्रंट’ (एनडीएफ़), तमिलनाडु की ‘मनिथा निथि पसाराई’ और ‘कर्नाटक फ़ोरम फ़ॉर डिग्निटी’ ने 2006 में केरल के कोज़िकोड में हुई एक बैठक में तीनों संस्थाओं का विलय कर ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया’ (पीएफ़आई) बनाने का फ़ैसला लिया था.

केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के तीन संगठनों के विलय के दो सालों बाद, पश्चिमी भारतीय राज्य गोवा, उत्तर के राजस्थान, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर के पाँच संगठन पीएफ़आई में मिल गए.

ख़ुद को ‘भारत का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले काडर बेस्ड जन-आंदोलन बताने वाला’ पीएफ़आई 23 राज्यों में फैले होने और चार लाख सदस्यता का दावा करता रहा है.

गृह मंत्रालय को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने इस संस्था के 23 राज्यों में फैले होने की बात कही थी।

-एजेंसी