पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने अपने ऑपरेशन हेरोफ के पहला फेज पूरा होने का ऐलान किया है। बीएलए ने सैन्य शिविर और सैन्य चौकियों को निशाना बनाकर किए गए हमलों में 102 पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या की जिम्मेदारी ली है। बीएलए ने ऑपरेशन हेरोफ के सफल समापन की घोषणा करते हुए इसे बलूचिस्तान पर नियंत्रण हासिल करने के व्यापक अभियान का हिस्सा कहा है। बलूचिस्तान में सैन्य चौकियों को ही नहीं सोमवार को मुसाखाइल जिले में पंजाब के भी 23 लोगों की उनकी आईडी देखे के बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई।
बलूचिस्तान में पंजाबियों के खिलाफ नफरत इस तरह का यह पहला हमला नहीं है। इसी साल अप्रैल में बलूचिस्तान के नोशकी में नौ पंजाबी यात्रियों की आईडी जांचने के बाद गोली मारी गई थी। पिछले साल अक्टूबर में भी केच जिले में छह पंजाबी मजदूरों की मार डाला गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि बलूच उग्रवादी अपने ही देश के एक सूबे यानी पंजाब के लोगों के इतने खिलाफ क्यों है। बलूचिस्तान में पंजाबी को देखते ही वह उस पर गोलियां क्यों बरसा देते हैं। इस सवाल का जवाब पाकिस्तान की केंद्र की सरकार में पंजाब के लोगों के प्रभाव और बलूचिस्तान के साथ सरकार के रिश्ते के इतिहास को खंगालने से मिल सकता है।
बलूचों का विद्रोह और पाकिस्तानी सेना के दमन की कार्रवाई
एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के बनने के तुरंत बाद ही बलूचिस्तान के लोगों ने विद्रोह, स्टेट का क्रूर दमन और बलोच राष्ट्रवाद की एक लंबी सीरीज देखी है। पहला विद्रोह पाकिस्तान बनने के अगले ही साल 1948 में कलात सरदार के पाकिस्तान में जबरन शामिल होने के बाद शुरू हुआ। कलात के खान ने लंबे समय तक स्वतंत्र बलूच राज्य की वकालत की थी। आखिरकार खान ने 27 मार्च, 1948 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर के साथ पाकिस्तानी सेना ने बलूच भूमि में एंट्री की। विलय के तुरंत बाद ही इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। जुलाई, 1948 में ही खान के भाई प्रिंस अब्दुल करीम ने ‘आजादी की जंग’ शुरू कर दी। 1948 के बाद 1958-59, 1962-63 और 1973-1977 में इसी तरह की लड़ाई लड़ी गईं। इसके बाद 2003 से फिर बलोच इस लड़ाई को लड़ रहे हैं। ये खूनी विद्रोह 1971 के बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन के बाद पाकिस्तानी संप्रभुता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
बलूचिस्तान में आंदोलन का पाक सरकार और सेना ने हर दफा क्रूरतापूर्वक दमन किया गया है। पाकिस्तानी सेना पर मनमानी तरीके से गिरफ्तारी और युवाओं को गायब करने के आरोप लगते रहे हैं। 1948 के बाद सेअब तक हजारों बलूच नागरिकों की जान पाकिस्तानी बलों की कार्रवाई में गई है। एनजीओ वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स की रिपोर्ट कहती है कि 2001 और 2017 के बीच 16 साल में 5,228 बलूच लोग लापता हुए और इनका कोई पता नहीं चल सका। पाक सेना ने क्रूरता दिखाई है तो बलूच समूहों ने भी हिंसा का सहारा लिया है।
पंजाबियों को निशाना बनाने की दो बड़ी वजह
बलूचिस्तान में विद्रोह के पीछे दो अहम वजह मानी जा सकती है। पहली वजह- बलूचिस्तान में 1947 के बाद विद्रोह के लगातार चलने की वजह उनके साथ क्षेत्रीय भेदभाव और आजादी के समय चला बलूच राष्ट्रवाद का आंदोलन है। बलूच लोग अपना एक खास इतिहास, भाषा और संस्कृति साझा करते हैं। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के बनने के बाद से ही पंजाब प्रांत देश की राजनीति पर हावी रहा है। राजनीति के अलावा भी पाकिस्तान की सेना, न्यायपालिका और नौकरशाही में भी पंजाबियों की पकड़ रही है। यहां तक कि पाकिस्तान की क्रिकेट और हॉकी टीम में भी पंजाबियों का वर्चस्व रहा है। इसने बलूचिस्तान के लोगों के बीच विभाजन और फूट को बढ़ावा दिया है।
दूसरी वजह बलूच लोगों के मन में बैठा आर्थिक अलगाव और अन्याय की भावना है। बलूचिस्तान पाकिस्तान का क्षेत्र में सबसे बड़ा और सबसे कम आबादी वाल प्रांत है। बलूचिस्तान में प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है। ये प्रान्त ईरान और अफगानिस्तान से लगी सीमा पर स्थित है। इसके बावजूद यहां के लोग देश के बाकी हिस्सों की तुलना में गरीब हैं। बलूच राष्ट्रवादियों का तर्क है कि पंजाब के लोग बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का फायदा उठा रहे हैं और उनके हिस्से सिर्फ गरीबी आ रही है।
बलूचिस्तान में पंजाबियों पर हमलों को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। पाकिस्तान में पंजाबियों का दबदबा और पंजाबियों के प्रभुत्व वाले देश में बलूच लोगों के साथ अन्याय से अलगाव की भावना पंजाब के लोगों को विद्रोहियों का निशाना बनाती है।
Compiled by up18news
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