रामकृष्ण परमहंस के समय एक विद्वान थे केशवचंद्र सेन। वे हर बात तर्क के साथ बोलते थे। इस कारण उनके सामने अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे और समझदार लोग भी टिक नहीं पाते थे।
एक दिन केशवचंद्र परमहंसजी के पास पहुंचे। उन्होंने परमहंसजी के सामने परमात्मा है या नहीं, इस बात को लेकर कई तर्क रखे। वे भगवान को लेकर लगातार बोल रहे थे और सभी लोग सुन रहे थे। अचानक परमहंसजी खड़े हुए और केशवचंद्र को गले लगा लिया।
परमहंसजी बोले, ‘तुम क्या आए हो, जीवन में बहार आ गई। मैं गांव का एक सीधा-साधा इंसान हूं। मुझे बहुत ज्ञान नहीं है। लेकिन, तुम्हारी बुद्धि का वैभव देखकर में हैरान हूं। और, तुम्हें देखकर एक बात समझ आ गई कि भगवान हैं। क्योंकि, भगवान नहीं होते तो तुम जैसे लोग इस धरती पर कैसे आते? यही परमात्मा के होने का प्रमाण है।’
केशवचंद्र ये सिद्ध करने आए थे कि परमात्मा नहीं हैं। लेकिन, रामकृष्णजी ने उनके किसी भी तर्क का कोई उत्तर नहीं दिया। बल्कि, वे नाचने लगे और केशवचंद्र की तारीफ करने लगे।
जब केशवचंद्र घर लौटकर आए तो रामकृष्णजी की ये बात उनके दिमाग में घूम रही थीं कि तुम्हें देखकर एक बात समझ आ गई कि भगवान हैं। क्योंकि, भगवान नहीं होते तो तुम जैसे लोग इस धरती पर कैसे आते? यही परमात्मा के होने का प्रमाण है।
केशवचंद्र ने उस रात अपनी डायरी में लिखा था, ‘आज पहली बार मैं किसी से हार गया। इस व्यक्ति को हराना मुश्किल है।’
सीख- इस कहानी का संदेश ये है कि जिन लोगों को भगवान पर भरोसा होता है, वे अगर सीधे-साधे भी हैं, तब भी उनका प्रभाव बड़े-बड़े विद्वान लोगों पर होता है। भक्तों के शरीर से निकलने वाली पॉजिटिव एनर्जी उनका प्रभाव बढ़ा देती है। हर बार शब्दों का खेल नहीं चलता है। जिन लोगों का मन साफ रहता है, उनकी कही गई बातें सभी पर असर डालती हैं।
-एजेंसी