तंत्र शास्त्र सनातन धारा की मुख्य अभिधारणा में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इसके हर चरण में अद्वितीयता है, जो उसे यंत्र व मंत्र शास्त्रों से स्पष्ट रूप से पृथक करता है। इसकी ये पृथकता किसी अलगाव के लिए नहीं वरन् यंत्र व मंत्र विज्ञान को सम्यकता प्रदान के लिए है। यानि जिन कड़ियों को यंत्र व मंत्र विज्ञान के द्वारा नहीं पूर्ण किया जा सका, उसे तंत्र विज्ञान ने पूर्ण किया।
तंत्र शास्त्र की सार्थकता
आप कभी भी ये मानने की भूल मत कर बैठना कि तंत्र शास्त्र की सार्थकता उसकी सिद्धियों को प्राप्त करने की क्षमता से पूर्ण होती है। इसके ठीक उलट तंत्र शास्त्र सिद्धियों के खिलाफ ज्यादा नज़र आता है बजाय इसके कि उसे कोई चमत्कारिक जामा पहनाए। वस्तुतः तंत्र शास्त्र विज्ञान सम्मत होने के साथ इसकी प्रायोगिकता की सार्थकता पर आधारित है, जिसके आधार पर ही इसका हर प्रयोग सफल सिद्ध होता है।
मानसिक शक्ति का महत्त्व
तंत्र में मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक जागरण का सम्मिलन होता है। एक कल्पना या कामना को साकार रूप प्रदान करने की कला ही तंत्र है। तांत्रिकों ने ऐसी बहुत सी रहस्यमय क्रियाओं का उपयोग कर बड़ी उपलब्धियों को हासिल किया, जिन पर भरोसा कर पाना सहज नहीं।
तंत्र, मंत्र और यंत्र
विविध मान्यताओं और पुस्तकों में तंत्र, मंत्र और यंत्र का उल्लेख मिलता है, परंतु इन तीनों में तंत्र को हमेशा से ही विवादास्पद पायदान पर रखा गया है। चतु:शती में 64 तंत्रों का वर्णम है, जिनका प्रयोग विभिन्न कार्यसाधन के लिए बताया गया है। तंत्र विद्या के शाब्दिक अर्थ पर गौर करें तो इसे आप टेक्नोलॉजी या तकनीक के तौर पर देख सकते हैं। एक ऐसी तकनीक जिसका कार्य मनुष्य जीवन को काफी हद तक आसान और सहज बनाना है।
आधुनिक समाज की विवशता
लेकिन अफसोस जिस तरह अन्य तकनीकों का दुरुपयोग हुआ, कुछ वैसे ही तंत्र शास्त्र भी मानव की अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं और मंतव्यों की भेंट चढ़ गया, जिसके फलस्वरूप ऐसी स्थिति आ गई की सामाजिक तौर पर तंत्र और इसकी प्रैक्टिस करने वाले लोगों को ‘सभ्य’ और ‘आधुनिक’ समाज से पूरी तरह से बहिष्कृत कर दिया गया।
वैश्चिक इतिहास
वैश्विक इतिहास पर नजर डालें तो समय-समय पर वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं द्वारा पर नई-नई तकनीकों का आविष्कार किया गया। इसके पीछे उनकी धारणा समाज के हित में रही होगी लेकिन शायद वह इस बात से अवगत नहीं थे कि उन तकनीकों का किस तरह से दुरुपयोग हो सकता है। एटोमिक वॉर, न्यूक्लियर वॉर, बायोलॉजिकल वॉर…….ये सभी उन्हीं तकनीकों का परिणाम हैं, जिनका उद्भव कभी मानव हित के लिए हुआ था।
एक तरह की टेक्नोलॉजी
तंत्रशास्त्र भी एक ऐसी टेक्नोलॉजी है, जिसका स्तर अन्य सभी से थोड़ा अलग है। सनातन मान्यता में भगवान शिव को तंत्र शास्त्र के जनक के तौर पर स्वीकार किया गया है। माना जाता है यह शैव धर्म के अनुयायियों की धरोहर है, लेकिन इसके बावजूद जब हम ‘तंत्र’ या ‘तांत्रिक’ जैसे शब्द सुनते हैं तो हमारी भौहें अचानक खड़ी हो जाती हैं। हम इस विद्या के विषय में जानना और सुनना तो चाहते हैं लेकिन खुले तौर पर नहीं। हमारे भीतर इनसे संबंध रखने वाले लोगों के विषय में एक अलग ही धारणा है।
शक्ति की उपासना
अगर हम तारा शक्ति की उपासना वाले बज्रयान सम्प्रदाय की अभिधारणाओं की चर्चा करें तो इस खास इंजीनियरिंग को ज्यादा बेहतर समझा जा सकेगा। बज्रयान की सबसे बड़ी अच्छाई उसकी वैज्ञानिकता ही थी, किंतु अफसोस कि भारत में उसका प्रसार होने के पहले ही वह सीमित हो गया।
चमत्कारों का विज्ञान
ये ध्यान देने वाली बात है कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले लोग स्वयं को इस विद्या से अलग रखकर चलते हैं, क्योंकि वे जानते हैं की अगर सामाजिक तौर पर उनका रुझान इस विद्या के प्रति जाहिर हुआ तो उनका अपना समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा। इसके पीछे का कारण भी शायद वही लोग हैं जो इस विद्या के बड़े जानकार और महारथी रहे हैं। तंत्र को विवादास्पद और सामाजिक रूप से वर्जित प्रमाणित करने में उन्हीं लोगों का हाथ माना जा सकता है जो स्वयं इस तकनीक के चमत्कारों से वाकिफ रहे और स्वयं भी उन चमत्कारों को कर सकते थे।
तंत्र विद्या का महत्त्व
तंत्र विद्या किसी को जीवनदान दे सकती है लेकिन हम इससे संबंधित जादू-टोनों के विषय में ही ज्यादा अवगत हैं। एक आम व्यक्ति केवल यही जानता है कि तंत्र की सहायता से, मारण, वशीकरण, उच्चाटन, मोहन, स्तंभन क्रियाओं द्वारा किसी की प्रगति को बाधित किया जा सकता है। वह ये कभी नहीं जान पाएगा कि इस विद्या की बदौलत टूटता हुआ परिवार बचाया जा सकता है, भौतिक जीवन की लगभग सभी जरूरतों को इस विद्या की सहायता से पूर्ण किया जा सकता है।
तंत्र शास्त्र के जानकार
किसी भी प्रकार की मानसिक-शारीरिक व्याधि के समाधान के लिए तंत्र का प्रयोग काफी सटीकता से करने का वर्णन कई महत्वपूर्ण शास्त्रकारों ने भी किया है। तंत्र का वास्तविक प्रयोग करने वाले लोग समाज में छिपे हुए रहते हैं, क्योंकि वे ये जानते हैं की उनका बाहर आना किसी के लिए भी हितकर साबित नहीं होगा।
सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव
ये वो लोग हैं जो इस विद्या के असल जानकार हैं, जो इसका सकारात्मक प्रयोग करने में ही विश्वास करते हैं। लेकिन उन तक पहुंच पाना इतना भी आसान नहीं होता, क्योंकि उन जानकारों तक पहुंचने वाले मार्ग पर बहुत से ढोंगी और पाखंडी बैठे होते हैं, जिनसे मुलाकात होते ही हम आगे के मार्ग पर चलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
ऑकल्ट साइंस
अन्य किसी भी विद्या या तकनीक के समान तंत्र विद्या भी सकारात्मक साबित होगी या नकारात्मक, यह केवल उस व्यक्ति की नीयत और महत्वाकांक्षाओं पर निर्भर करता है जो इसका प्रयोग करने जा रहा है। अंग्रेजी में तंत्र विद्या को “ऑकल्ट साइंस” कहा जाता है, जिसका अर्थ है गुप्त या रहस्यमयी। इस विद्या से जुड़े कई विचार हमारे मन में हैं, हम इसके विषय में जानना चाहते हैं, इसका प्रयोग देखना भी चाहते हैं लेकिन हमारे भीतर एक ऐसा डर है जो हमें आगे नहीं बढ़ने देता। हमारा कौन सा विश्वास सही साबित होगा और कौन सा झूठ, यह केवल इसी बात पर निर्भर करता है कि हमारा सामना जिस जानकार से हो रहा है, उसकी अपनी मानसिकता क्या है।
साभार- तमन्ना, स्पीकिंग ट्री