आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड AIMPLB ने समान नागरिक संहिता की जरूरत और प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि पर्सनल लॉ ही नहीं सीआरपीसी और आईपीसी भी पूरे देश में एक समान नहीं हैं। देश में अलग-अलग कानून होने के बावजूद 75 सालों से देश चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समान नागरिक सहिंता को लेकर दिये गए बयान के बाद मंगलवार देर रात बोर्ड की ऑनलाइन बैठक में लीगल कमेटी की ओर से तैयार किए गए ड्राफ्ट पर चर्चा की गई जिसमें तय किया गया कि दो दिन के बाद बोर्ड विधि आयोग में अपना पक्ष दाखिल करेगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि देश को दो कानूनों से नहीं चलाया जा सकता है। भाजपा विरोधी दलों ने मुसलमानों में समान नागरिक संहिता को लेकर भ्रम फैला रखा है।
भाजपा कार्यकर्ता उनके पास तथ्यों के साथ जाएं और उन्हें समझाएं। पीएम मोदी द्वारा इस मुद्दे पर खुलकर बोले जाने के बाद पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाम को इस मुद्दे पर आनलाइन बैठक की।
बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैफुउल्लाह रहमानी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई बैठक में बोर्ड ने साफ कहा कि मध्य प्रदेश और आगामी लोकसभा चुनाव में माहौल गर्म करने के लिए समान नागरिक संहिता को लेकर बयानबाजी की जा रही है।
बोर्ड के प्रवक्ता डॉ कासिम रसूल इलियास ने कहा कि देश में पहले से ही शादी, विवाह सहित अन्य पर्सनल लॉ को लेकर अलग-अलग कानून लागू हैं। यहां तक कि हिन्दू कोड बिल भी सभी प्रदेशों के लिये अलग-अलग हैं।
उन्होंने कहा कि केरल, गोवा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पूर्वोत्तर व दक्षिण के राज्यों में गाय और आरक्षण को लेकर समान कानून नहीं है। उन्होंने कहा कि देश मे अलग-अलग कानून होने के बावजूद 75 सालों से देश चल रहा है। बैठक में
पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना मुहम्मद फजल-उर-रहीम मुजद्दिदी, डॉ कासिम रसूल इलियास, मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, मौलाना बिलाल अब्दुल हई हसनी नदवी, मौलाना अरशद मदनी, मौलाना नियाज फारूकी, कमाल फारूकी और मौलाना उमरैन महफूज रहमानी सहित 35 सदस्य शामिल हुए।
बोर्ड ने दाखिल किया था तर्कसंगत जवाब
बोर्ड ने समान नागरिक सहिंता को लेकर की जा रही कार्यवाही को फिजूल की एक्सरसाइज करार दिया है। बोर्ड के महासचिव मौलाना मुहम्मद फजल-उर-रहीम मुजद्दिदी ने कहा कि भारत के विधि आयोग ने 2018 में भी इस विषय पर राय मांगी थी। बोर्ड ने एक विस्तृत और तर्कसंगत जवाब दाखिल किया था। आयोग ने माना था कि समान नागरिक संहिता संविधान की भावना के विरुद्ध है और देशहित में भी नहीं है बल्कि इससे नुकसान होने का डर है। बोर्ड के एक प्रतिनिधिमंडल ने विधि आयोग के समक्ष अपनी दलीलें भी रखीं और काफी हद तक आयोग ने इसे स्वीकार कर लिया और घोषणा कर दी कि फिलहाल समान नागरिक संहिता की कोई आवश्यकता नहीं है। कहा था कि 10 साल तक इस पर बात नही होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से विधि आयोग ने 14 जून 2023 को पुनः जनता को एक नोटिस जारी कर समान नागरिक संहिता के संबंध में राय मांगी है और जवाब दाखिल करने के लिए 14 जुलाई 2023 तक का समय निर्धारित किया है।
उन्होंने कहा कि बोर्ड ने आयोग को पत्र लिखकर इस बात पर नाराजगी जताई है कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे के लिए केवल एक माह की अवधि निर्धारित की गयी है। इस अवधि को कम से कम 6 महीने तक बढ़ाया जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि बोर्ड ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए देश के प्रसिद्ध और विशेषज्ञ न्यायविदों से परामर्श करके विस्तृत जवाब तैयार किया है, जो लगभग एक सौ पेज का है। इसमें समान नागरिक संहिता के सभी पहलुओं को स्पष्ट किया गया है और देश की एकता और लोकतांत्रिक ढांचे को होने वाले संभावित नुकसान को प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही विधि आयोग की वेबसाइट पर जवाब दाखिल करने और समान नागरिक संहिता के विरुद्ध अपना दृष्टिकोण रखने के लिए एक संक्षिप्त नोट भी तैयार किया गया है।
Compiled: up18 News
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