आगरा: दशहरा के अगले पांच दिनों तक बच्चों में टेसू-झांझी से खेलने, उनका पूजन करने की भी सनातनी परंपरा है। इसके चलते बाजार में जगह-जगह इनकी दुकानें सज गई हैं। लोग अपने बच्चों के लिए टेसू-झांझी खरीद रहे है। इनका विसर्जन शरद पूर्णिमा को होता है लेकिन इस बार चंद्र ग्रहण के चलते शरद पूर्णिमा को ऐसा नहीं हो पायेगा।
दशहरा के अगले ही दिन से बच्चों में टेसू-झांझी खेलने की पुरानी परंपरा है। लड़के टेसू और लड़कियां झांझी की पूजा करती हैं। शाम ढलते ही वह इनमें दीपक जलाते हैं और गीत गाते हैं। टेसू के तमाम गीत प्रचलित हैं। इनमें मेरा टेसू यहीं खड़ा, खाने को मांगे दहीबड़ा… आदि शामिल हैं।
ग्रहण के चलते अगले दिन होगा विसर्जन
पंडित देव शुक्ला ने बताया कि 28 अक्टूबर की रात्रि को चंद्र ग्रहण है। यह भारत में भी दिखाई देगा। चंद्र ग्रहण से लगभग 9 घंटे पहले सूतक लग जाते हैं। यानी शनिवार को लगभग 3:00 बजे से सूतक शुरू हो जाएंगे और फिर किसी भी तरह का धार्मिक व शुभ कार्य इस बीच नहीं होगा। इसलिए शरद पूर्णिमा को टेसू-झांझी का विसर्जन नही होगा।
टेसू-झांझी की परंपरा को बुजुर्ग महाभारतकाल की कहानी से जुड़ा बताते हैं। उसी परंपरा के निर्वहन के रूप में बच्चे टेसू-झांझी का पहले विवाह भी कराते थे। उसमें विवाह की सभी रस्मे अदा होती थीं, मगर अब सिर्फ यह परंपरा टेसू-झांझी से बच्चों के खेलने तक सीमित रह गई है। पहले परंपरा टेसू-झांझी लेकर आसपड़ोस में मांगने की भी थी, मगर यह अब बस्तियों में ही सिमट कर रह गई है। मध्यम और उच्च वर्गीय परिवारों के बच्चे परंपरा का अपने घरों में निर्वहन करते हैं, बाहर नहीं निकलते।
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