Agra News: डॉ. जयसिंह नीरद के रचना संसार पर भाव-विभोर हुई संगोष्ठी, मिले दो प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान

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आगरा। वरिष्ठ साहित्यकार, शिक्षाविद और मौन साहित्य साधक डॉ. जयसिंह नीरद के बहुआयामी साहित्यिक अवदान को समर्पित भव्य संगोष्ठी का आयोजन रविवार को खंदारी स्थित सभागार में हुआ। सांस्कृतिक संस्था माधुर्य और साहित्य साधिका समिति ने इस अवसर पर उन्हें ‘काव्य माधुर्य सम्मान’ और ‘साहित्य साधक सम्मान’ प्रदान किया।

सम्मानित होकर डॉ. नीरद बोले, “जब तक प्राण शेष हैं, लेखनी साहित्य की सेवा करती रहे।” उन्होंने कहा कि यह सम्मान मेरे लिए नहीं, साहित्य के प्रति मेरे समर्पण का सम्मान है। मेरी कामना है कि मेरी लेखनी अंतिम सांस तक साहित्य की सेवा करती रहे।

कार्यक्रम का शुभारंभ अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कवि डॉ. सोम ठाकुर ने दीप प्रज्वलित कर किया। उन्होंने कहा कि डॉ. नीरद की काव्य-यात्रा में संवेदना, संस्कार और सत्यान्वेषण की त्रिवेणी प्रवाहित होती है। ऐसे साहित्यकार विरले ही होते हैं जो चुपचाप लेखनी के माध्यम से समाज की चेतना को दिशा देते हैं।

डॉ. शशि तिवारी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना और रमा वर्मा ‘श्याम’ के स्वागत भाषण ने वातावरण को गरिमा से भर दिया। निशिराज द्वारा डॉ. नीरद की ग़ज़लों की संगीतमय प्रस्तुति ने सभागार को भाव-विभोर कर दिया।

विचारों की धार में बहा साहित्यिक विमर्श

मुख्य अतिथि प्रो. रामवीर सिंह ने कहा कि सुदूर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने के बावजूद डॉ. नीरद ने अपनी तपस्या, ईमानदारी और विद्वता से साहित्य और शिक्षा जगत में विशिष्ट पहचान बनाई है। उनकी आत्मकथा ‘वहां से यहां तक’ प्रेरणा का स्रोत है।

डॉ. कमलेश नागर ने कहा कि डॉ. नीरद की रचनाओं में परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत समन्वय है, जो हमें जड़ों से जोड़े रखने के साथ-साथ नवीनता की उड़ान भी देता है। राज बहादुर सिंह ‘राज’ ने कहा, डॉ. नीरद ने एक आदर्श शिक्षक और साहित्यसेवी के रूप में देश-विदेश में हिंदी की सेवा की है। केएमआई जैसे संस्थानों के विकास में उनकी अग्रणी भूमिका रही है।

डॉ. नीलम भटनागर ने कहा कि डॉ. जयसिंह नीरद एक मौन साधक हैं। उनकी कविताएं गहन संवेदना और यथार्थ की गूंज से भरी होती हैं। उनमें आत्मानुभूति का स्वर अत्यंत मुखर है। आरबीएस कालेज की पूर्व प्राचार्य डॊ. सुषमा सिंह ने डॉ. नीरद की काव्य कृति ‘आग: एक संभावना’ की सराहना करते हुए कहा, यह संग्रह समकालीन यथार्थ की आंच में तपे हुए विचारों का दस्तावेज़ है।

डॉ. रेखा कक्कड़ ने कविता ‘सबसे बड़ी त्रासदी’ का पाठ करते हुए कहा, यह कविता हमारे समय की करुण चीख है, जिसमें भूख, बेबसी और सभ्यता का छद्म एक साथ बोलता है।

डॉ. गुंजन बंसल ने ‘पसरी हुई हथेलियों का शहर’ संग्रह पर बोलते हुए कहा, यह संग्रह सामाजिक विसंगतियों, संबंधों की उलझनों और बाज़ारवाद के विरुद्ध सशक्त वैचारिक प्रतिरोध है।

डॉ. मीनाक्षी चौहान ने कहा कि पापा की कविताएं सिर्फ कविता नहीं, बल्कि समय से सृजनात्मक संवाद हैं। ये कविताएं व्यक्तिगत, सामाजिक और मानवीय सरोकारों का दर्पण हैं। डॉ. नीलम यादव ने डॉ. नीरद के उपन्यास ‘नरक के सींग’ पर विचार रखते हुए कहा कि यह रचना विश्वविद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार की आंतरिक परतों को बेधती है। यह आज के समय का गंभीर दस्तावेज़ है।

डॉ. नीरद के साहित्य पर बनी डॉक्यूमेंट्री का हुआ प्रदर्शन

इस अवसर पर निशिराज और राजकुमार जैन द्वारा निर्मित डॉ. नीरद के साहित्यिक जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन भी किया गया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।

कविता-पाठ और सांस्कृतिक प्रस्तुति से सजी शाम

कमला सैनी और आकाश भदौरिया ने डॉ. नीरद की रचनाओं का सजीव पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। डॉ. यशोधरा यादव ‘यशो’ और डॉ. गुंजन बंसल ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया, जबकि निशिराज ने आभार व्यक्त किया।

उपस्थित प्रमुख साहित्य प्रेमी एवं रचनाकार

मौके पर मिथिलेश भदौरिया, सुधा वर्मा, राजकुमार जैन, डॉ. रमा रश्मि, अशोक अश्रु, डॉ. रामवीर शर्मा रवि, साधना वैद, शरद गुप्त, दुर्गेश पांडे, गिरधारी लाल शर्मा, इंदल सिंह इंदू, नूतन अग्रवाल, रीता शर्मा, ममता भारती, डॉ. अनिल उपाध्याय, डॉ. आर.एस. तिवारी, डॉ. शेषपाल सिंह, डॉ. केशव शर्मा, नीरज जैन, विजया तिवारी, डॉ. आभा चतुर्वेदी सहित शहर के प्रमुख साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।