Agra News: अंबेडकर यूनिवर्सिटी की कुलपति ने ‘नेक’ को गुमराह कर विश्वविद्यालय को ए+ ग्रेड दिलाया, अधिवक्ता ने लगाए गंभीर आरोप

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आगरा। डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय के पूर्व विधिक सलाहकार डॉ. अरुण कुमार दीक्षित के बीच बिलों के भुगतान को लेकर चल रहे विवाद में आज एक नया मोड़ आया। डॉ. अरुण कुमार दीक्षित ने सबूतों के साथ आरोप लगाया कि कुलपति ने ‘नेक’ को गुमराह कर विश्वविद्यालय को ए+ ग्रेड दिलाया है। नेक के समक्ष कूटरचित दस्तावेज लगाए गए हैं। इनकी जांच हो तो सच्चाई सामने आ जाएगी।

डॉ. अरुण कुमार दीक्षित ने पिछले दिनों आरोप लगाया था कि विधिक सलाहकार के रूप में उन्होंने विवि में जो सेवाएं दी हैं, उनसे संबंधित बिलों का भुगतान इसलिए नहीं किया जा रहा कि वे 30 प्रतिशत कमीशन देने को तैयार नहीं हैं। इसके जवाब में कुलपति प्रो. आशुरानी ने भी प्रेस कॊन्फ्रेंस कर अधिवक्ता डॉ. दीक्षित के आरोपों को पूरी तरह गलत बताते हुए नकार दिया था।

इसी क्रम में अधिवक्ता डॉ. अरुण कुमार दीक्षित ने शनिवार को फिर से प्रेस कॊन्फ्रेंस की और नेक निरीक्षण से जुड़ा बड़ा खुलासा किया कि जिन तारीखों में कुलपति आशु रानी पद पर नियुक्त भी नहीं थीं, उन तारीखों के लेटर हेड तैयार कर लिए गए। कुलपति के लेटर हेड पेश करते हुए उन्होंने दावा किया कि 23 सितंबर और 24 अगस्त 2022 के दस्तावेजों पर आशु रानी के हस्ताक्षर हैं, जबकि वह 1 अक्टूबर 2022 को कुलपति चार्ज में आई थीं।

शिकायत करने के बाद मेरे खिलाफ षडयंत्र

अधिवक्ता डॉ. अरुण कुमार दीक्षित ने कुलपति प्रोफेसर आशु रानी और उनके सहयोगियों पर गंभीर भ्रष्टाचार और साजिशों का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि मैंने विश्वविद्यालय में चल रही कमीशनखोरी, कूटरचित दस्तावेज, और करोड़ों के घोटाले की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय तक की। वहां से यूपी के मुख्य सचिव को जांच के निर्देश मिलने के बाद मेरे खिलाफ ही षड्यंत्र रचे जा रहे हैं।

राजभवन की जांच में मेरे आरोप सही मिले थे

डॉ. दीक्षित ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय में उनके बिल पास कराने के बदले 30% कमीशन की मांग की जा रही है। पूर्व कुलपति के समय में भी उनसे यही मांग की गई थी, जिसकी शिकायत राजभवन से की थी। राजभवन ने रिटायर्ड जज से रंजना पंडया से जांच कराई थी, जिसमें उनके आरोप सही पाये गये थे। तत्कालीन कुलपति को हटाने में कुलाधिपति ने मेरे बिलों को लेकर की गई कमीशन की मांग का जिक्र भी किया है।

अब मेरे खिलाफ पैसे का लालच देकर एफआईआर की साजिश

उन्होंने कहा कि इस बार जब उन्होंने राजभवन और पीएम कार्यालय में शिकायत की तो मुझे कार्य से हटा दिया गया। मेरे ऊपर एफआईआर दर्ज कराने की साजिश रची जा रही है, कुछ लोगों को गवाह बनने के बदले पैसे का लालच तक दिया जा रहा है।

मेरे वेरीफाइड बिलों को न झुठलाएं

अधिवक्ता दीक्षित ने बताया कि जो केस उन्होंने लड़े, उनके प्रमाण मौजूद हैं। 2.74 लाख के बिल को विश्वविद्यालय के ही अधिकारियों द्वारा वेरीफाई किया गया था, लेकिन अब कुलपति झूठे दावे कर रही हैं कि कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि अपने भुगतान के लिए उन्होंने कुलपति और कुलसचिव को नौ पत्र लिखे,लेकिन भुगतान नहीं हुआ। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर मेरे द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज गलत साबित होते हैं, तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। लेकिन अगर कुलपति की बात झूठी निकली, तो क्या वे भी इस्तीफा देंगी?

विश्वविद्यालय के लिए किये काम गिनाए

अधिवक्ता डॉ. अरुण कुमार दीक्षित ने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय के विधिक सलाहकार के रूप में उन्होंने क्या-क्या काम किए। ये हैं-

-अरबों की जमीन पर भूमाफिया का कब्जा हटवाया।

-11 करोड़ रुपये का यूनिवर्सिटी खाता टैक्स विभाग से छुड़ाया।

-58 लाख की बिजली रिकवरी कोर्ट से निरस्त कराई।

-कई केसों में यूनिवर्सिटी के पक्ष में फैसले कराकर करोड़ों का लाभ।

घोटालों की लंबी सूची रखी सामने, बोले- सही वक्त पर दूंगा साक्ष्य

डॉ. दीक्षित ने आरोप लगाए कि विश्वविद्यालय में नेक, आउटसोर्सिंग, मेडिकल मूल्यांकन, केंद्र निर्धारण, टेंडर प्रक्रिया, सॉफ्टवेयर, एफीलिएशन, पुस्तकालय, निर्माण कार्य, यहां तक कि प्रैक्टिकल परीक्षाओं में भी घोटाले किए गए हैं। इनका वे समय आने पर खुलासा करेंगे।

राजभवन के रुख पर भी उठाए सवाल

डॉ. दीक्षित ने कहा कि मैंने भ्रष्टाचार उजागर किया और मुझे ही कार्यमुक्त कर दिया गया। अपर मुख्य सचिव सुधीर एम बोबड़े विवि आए और केवल एक पक्ष की बात सुनकर लौट गए। अपर मुख्य सचिव ने विवि के उन्हीं लोगों से मेरे बिलों के बारे में रिपोर्ट ली जिन पर मैं आरोप लगा रहा हूं। क्या यही न्याय है?