आगरा: गुरुवार को आगरा ने फिर अपनी ‘महान’ जल निकासी व्यवस्था का परिचय दिया। मात्र 20 मिनट की रिमझिम फुहारों ने शहर को इस कदर ‘तरबतर’ कर दिया कि लगा जैसे आगरा नहीं, बल्कि कोई विशाल स्विमिंग पूल बन गया हो। और तो और, इस ‘दिव्य’ जल का प्रसाद लोगों के घरों और दुकानों तक में बांटा गया।
दोपहर 3 बजे के आसपास जब आसमान में काले बादल छाए, तो एक पल को लगा कि शायद इस बार कुदरत कुछ नया दिखाएगी। लेकिन नहीं, कुदरत को भी आगरा के ‘सिस्टम’ पर पूरा भरोसा है। बारिश शुरू हुई और फिर जो हुआ, वो दशकों से चली आ रही ‘परंपरा’ का निर्वहन था। शाहगंज, भोगीपुरा, अलबतिया, रामनगर, 100 फुटा रोड और हसनपुरा जैसे इलाके, जो शायद साल भर इंतजार करते हैं, इस अवसर पर तालाबों में तब्दील हो गए।
खासकर भोगीपुरा, जिसे शायद इस ‘पानीपत’ की लड़ाई का केंद्र बनने का गौरव हासिल है, वहां तो लोगों के घरों में गंगा-जमुना दोनों एक साथ बहने लगीं।
सोचिए ज़रा, उन बच्चों का क्या हाल हुआ होगा जो स्कूल से लौट रहे थे? उनके बैग और कपड़े पानी में ऐसे सराबोर हुए, जैसे कोई जल देवता का अभिषेक कर रहे हों। सड़कों का हाल ऐसा था कि सड़कें कम और बहते हुए नाले ज़्यादा लग रही थीं। अब इसमें लोगों के दैनिक कार्यों में बाधा आने की बात कहना तो सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है। भला जलमग्न शहर में कौन से ‘दैनिक कार्य’ हो सकते हैं, सिवाय तैरने के?
अब यहीं पर आता है इस पूरी गाथा का सबसे दिलचस्प मोड़। हमारा आगरा, वही आगरा, जो स्वच्छ सर्वेक्षण में देश में दसवें और प्रदेश में दूसरे नंबर पर ‘चमक’ रहा है! यह आंकड़ा पढ़कर लगता है जैसे किसी ने ज़बरदस्त व्यंग्य किया हो। एक तरफ़ हम स्वच्छता के ढोल पीटते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ थोड़ी सी बारिश में शहर का हाल ‘धोबी घाट’ जैसा हो जाता है। यह ऐसा ही है जैसे कोई व्यक्ति कहे कि वह बहुत स्वस्थ है, लेकिन ज़रा सी हवा चले और उसे बुखार आ जाए।
लगता है हमारे ‘विकास पुरुष’ और ‘स्वच्छता प्रहरी’ शायद यह भूल गए कि ‘स्वच्छता’ सिर्फ़ झाड़ू लगाने और कचरा उठाने तक सीमित नहीं है। इसमें एक सुचारू जल निकासी व्यवस्था भी शामिल होती है। या शायद उनकी नज़र में जलभराव भी एक तरह की ‘जल क्रीड़ा’ है, जिसका आनंद आगरावासी निःशुल्क ले सकते हैं।
तो अगली बार जब स्वच्छ सर्वेक्षण के नंबर आएं, तो बस एक बात याद रखिएगा: आगरा की ‘स्वच्छता’ ज़मीन पर दिखती है, लेकिन पानी के अंदर वो ‘गायब’ हो जाती है। जब तक यह विरोधाभास यूं ही कायम रहेगा, तब तक आगरा के ‘स्वच्छ’ होने का दावा, बारिश के पानी में बहते सूखे पत्तों जैसा ही लगता रहेगा।
-मोहम्मद शाहिद की कलम से