सरकार की अग्निपथ योजना के विरोध के नाम पर देशभर में हिंसा और उपद्रव शुरू हो गया है। हाथों में डंडे लिए युवा ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों में आग लगा रहे हैं। विपक्ष सरकार से इस स्कीम को वापस लेने की मांग करने लगा है। बिहार में हिंसक विरोध काफी ज्यादा देखा जा रहा है। वैसे तेलंगाना से लेकर हरियाणा, राजस्थान, यूपी तक सेना में भर्ती होने का सपना देखने वाले युवा सड़क पर दिख रहे हैं। इन सबके बीच कुछ रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों ने युवाओं को समझाने की कोशिश की है। उनका कहना है कि सेना का मतलब अनुशासन होता है और इस तरह के कृत्य से अभ्यर्थी खुद ही रेस से बाहर हो जा रहे हैं।
रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रिटायर्ड) जीडी बख्शी ने कहा, मैं युवाओं से अपील करना चाहता हूं कि हम सेना में अनुशासित लोगों को लेते हैं। आप अपना रास्ता मत बंद कीजिए। अगर ऐसे दंगों में आप फंस जाएंगे, पुलिस केस हो जाएगा तो आपके लिए सेना में जाने के रास्ते बंद हो जाएंगे। आप सेना में आने का अपना रास्ता रोक रहे हैं। हमें खुशी है कि इतने सारे लोग सेना में आना चाहते हैं लेकिन ये तरीका सेना में आने का नहीं है कि हम तोड़फोड़ करें, अराजकता फैलाएं। रेलवे की संपत्ति को नुकसान न पहुंचाएं। आपको प्रदर्शन करना है तो शांतिपूर्ण तरीके से करिए, एक पुराने सिपाही की हैसियत से आप सभी से मेरी अपील है।
देखिए जब इतना बड़ा बदलाव करना हो तो थोड़े से change management की जरूरत होती है। ढाई सदी से फौज का सिस्टम ऐसे ही चला आ रहा है। अचानक सिस्टम बदलने से पहले मेरा सुझाव यह था कि हम पायलट स्टडी कर लेते तो कई तरह की समस्याएं सुलझाई जा सकती थीं। हमारी जो आर्मी है, वो 250 साल से रेग्युलर आर्मी रही है। जो हमें टास्क दिए गए हैं, हमने पूरे किए हैं। इस स्टेज पर स्वीपिंग चेंज करना थोड़ा सा अस्थिरता प्रदान कर सकता है। यूक्रेन युद्ध ने दिखाया है कि जो कम समय के लिए भर्ती होते हैं, उनका उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा है चाहे वह रूस के सैनिक हों या यूक्रेन के। जब लद्दाख में चीन के फौजी 2-2 साल के अनुभव पर आए थे तो उनका भी बड़ा बुरा प्रदर्शन रहा था, हमारे जवानों के सामने। चीन का मॉडल हम अपने देश में क्यों अपनाना चाहते हैं? इस पर थोड़ा सा सोच-विचार ज्यादा हो जाता तो अच्छा होता। अगर हम 35 हजार लोग हर साल सिविलियन सोसाइटी में रिलीज करेंगे और उन्हें अन्य फोर्सेज और सरकारी नौकरियों में अवसर नहीं मिला तो विरोध हो सकता है। अब लोगों को लग रहा है कि चार साल का करियर होगा और उसके बाद खत्म हो जाएगा।
मेजर जनरल (रिटायर्ड) संजय सोई ने बताया, यह स्कीम बहुत अच्छी है। इससे युवाओं को मौका मिल रहा है। ऐसी बातें पहले से होती रही हैं कि युवाओं को सेना में सेवा देनी चाहिए जिससे उनके अंदर देशभक्ति की भावना आए और एक रेगुलर लाइफ-फिजिकल और मेंटल लाइफ सीख सके। सीमा का अनुभव लेने के बाद नौकरी की संभावनाएं काफी ज्यादा हैं। प्राइवेट सिक्योरिटी इंडस्ट्री में भी अवसर उपलब्ध होंगे। वहां पेमेंट भी अच्छी मिलेंगी। जिस तरह से दंगे हुए हैं, उससे हमें षड्यंत्र की आशंका नजर आती है। इसकी जांच की जानी चाहिए।
पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने कहा, दो साल पहले जब सेना की भर्ती स्थगित की गई थी तो कई युवा सिलेक्शन टेस्ट में शामिल हुए थे। कुछ अग्निपथ स्कीम के लिए ओवर-एज हो गए होंगे। इस निराशा को समझा जा सकता है। चार दिन पहले ही स्कीम की घोषणा की गई है। कुछ रिटायर्ड अधिकारी और नेता इसकी कड़ी आलोचना कर रहे हैं। सरकार और सशस्त्र बलों को इस स्कीम के बारे में यूथ को समझाने और जस्टिफाई करने के लिए व्यापक पहल करनी चाहिए।
चीन से कैसे निपटेंगे अग्निवीर?
चार साल की सेवा पर राय अलग-अलग हो सकती है लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि अग्निपथ को सशस्त्र बलों के सैनिकों के लिए सेवा की शर्तों में बदलाव के लिए तैयार किया गया है क्योंकि मौजूदा पैटर्न से एक ओल्डर, कम टेक-सेवी सैनिक तैयार हो रहे हैं जबकि देश में बड़ी आबादी युवाओं की है। पेंशन बिल और राज्यों में असमान सेना भर्ती का भी मसला है। अग्निपथ के जरिए सेना में शामिल होने से युवाओं के लिए बड़ा अवसर मिलेगा और वे देशसेवा कर सकेंगे। जहां तक तकनीकी युद्ध क्षमता की बात है तो PLA यानी चीन की सेना हमसे आगे है। हमारी सेना को आधुनिक और ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाने की जरूरत है। इस स्कीम से आईटीआई और अन्य तकनीकी संस्थानों के जरिए भर्ती होने से तकनीक के स्तर पर सेना को काफी फायदा होगा।
-एजेंसियां
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