पश्चिम बंगाल में स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) के ज़रिए भर्तियों में कथित घोटाले के आरोप में पूर्व शिक्षा मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी की गिरफ़्तारी के बाद उनके राजनीतिक भविष्य पर अटकलें तेज़ हो गई हैं.
हालांकि तृणमूल कांग्रेस ने साफ़ कर दिया है कि दोषी साबित होने के बाद ही पार्थ के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की जाएगी.
शनिवार सुबह पार्थ की क़रीबी रहीं अर्पिता मुखर्जी के आवास से 21 करोड़ से ज़्यादा की नक़दी, लाखों की जूलरी और विदेशी मुद्रा बरामद होने के बाद इस घोटाले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी, जो कथित घोटाले के समय शिक्षा मंत्री थे, को गिरफ्तार कर लिया.
उनको दो दिनों की हिरासत में भेजा गया है लेकिन स्वास्थ्य ख़राब होने के कारण अदालत के निर्देश पर वह फ़िलहाल अस्पताल में हैं.
अर्पिता मुखर्जी की गिरफ़्तारी के बाद ईडी की निगाहें अब मोनालिसा दास नामक एक महिला पर हैं. उनको भी पार्थ की क़रीबी बताया जा रहा है. बर्दवान ज़िले की रहने वाली मोनालिसा आसनसोल में सरकारी काजी नजरूल विश्वविद्यालय में बांग्ला की विभागाध्यक्ष हैं.
हालांकि सोशल मीडिया पर इस ख़बर के वायरल होने के बाद मोनालिसा ने इस घोटाले या पार्थ से अपना कोई संबंध नहीं होने का दावा किया है.
दास ने कहा है, ”मैं एक शिक्षक के नाते तत्कालीन शिक्षा मंत्री को जानती थी और वे मेरे अभिभावक हैं.” लेकिन ईडी सूत्रों के मुताबिक़ मोनालिसा की गतिविधियों, पार्थ से उनके संबंधों और उनकी संपत्ति की जांच शुरू हो गई है.
मोनालिसा का रहस्य
पार्थ के शिक्षा मंत्री रहने के दौरान मोनालिसा को सीधे बांग्ला विभाग के प्रमुख के तौर पर नियुक्ति दी गई थी. तब इस पर अंगुलियां उठी थीं. आरोप लगा था कि पार्थ के साथ नजदीकी संबंध होने की वजह से ही उनको विभागाध्यक्ष बनाया गया है.
ईडी के सूत्रों के मुताबिक़ बीरभूम ज़िले के बोलपुर- शांति निकेतन में मोनालिसा के नाम कम से कम दस संपत्तियां पंजीकृत हैं. ईडी के एक अधिकारी ने बताया, मोनालिसा की कुल संपत्ति उनकी आय के ज्ञात स्रोत के मुक़ाबले ज़्यादा है.
पार्थ और उनकी क़रीबी महिला की गिरफ्तारी के बाद से ही विपक्षी दलों ने ममता बनर्जी की सरकार और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस पर हमले तेज कर दिए हैं. भाजपा ने आरोप लगाया है कि इस घोटाले में पार्थ तो महज एक प्यादा थे. इसके मूल अभियुक्तों की तलाश की जानी चाहिए. पार्थ की गिरफ्तारी के बाद भाजपा और सीपीएम ने राज्य के विभिन्न इलाको में प्रदर्शन भी किए हैं.
पार्थ की गिरफ्तारी के बाद शनिवार को पूरे दिन अटकलों का बाज़ार गर्म रहा कि ममता उनके (पार्थ के) ख़िलाफ़ कब और क्या कार्रवाई करती हैं. लेकिन ममता ने इस पूरे मामले पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है.
शनिवार रात को पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पार्टी को न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और वह अदालत में दोषी साबित होने के बाद ही पार्थ के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करेगी. कुणाल ने कहा, ईडी समेत केंद्रीय एजेंसियों की निष्पक्षता संदेह के घेरे में है. इसलिए महज़ उसके आरोपों के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी.
टीएमसी नेताओं का क्या कहना है?
पार्टी के वरिष्ठ नेता फिरहाद हकीम कहते हैं, “अगर पार्थ भी शुभेंदु अधिकारी की तरह बीजेपी में शामिल हो गए होते तो उनको आज यह दिन नहीं देखना पड़ता.” पार्टी ने साफ़ किया है कि अर्पिता के घर से बरामद कैश से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है और वह रक़म कहां से आई, उसकी जवाबदेही अर्पिता की है.
पार्थ चटर्जी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में कहा था, “अगर मुझे पैसा ही कमाना होता तो मोटे पैकेज वाली कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ कर राजनीति में नहीं आता.”
लेकिन आख़िर ऐसा कहने वाले पार्थ की यह हालत कैसे हुई? राजनीतिक हलकों में इस पर हैरत जताई जा रही है. लेकिन उससे भी ज्यादा हैरत इस बात पर हो रही है कि गिरफ्तारी और उनकी क़रीबी महिला के घर से करोड़ों की रक़म बरामद होने के बावजूद ममता और पार्टी उनके साथ क्यों और कैसे खड़ी है?
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह समझना मुश्किल नहीं है. केंद्रीय एजेंसियों को भाजपा का राजनीतिक हथियार बताती रही ममता अगर तत्काल कोई कार्रवाई करती तो इससे साफ़ हो जाता कि उनकी निगाह में भी पार्थ दोषी हैं. लेकिन पार्टी ने ऐसा रास्ता अख्तियार किया है जिसमें सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे वाली कहावत चरितार्थ हो रही है.
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, “पार्थ को दोषी साबित करने में निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ लगाते हुए शायद कई बरस बीत जाएंगे. पार्टी भी यह बात जानती है.”
लेकिन इससे सरकार और पार्टी के लिए पार्थ की अहमियत का भी पता चलता है. शुरुआती दौर से ही ममता के क़रीबी नेताओं में मुकुल रॉय, पार्थी चटर्जी और शुभेंदु अधिकारी का नाम शामिल था. मुकुल के भाजपा में शामिल होने और उसके बाद शुभेंदु के भी पार्टी छोड़ने के कारण पार्थ अकेले नंबर दो पर बच गए थे.
उन्होंने बीते विधानसभा चुनाव के दौरान मुश्किल हालात में भी ममता का साथ निभाया और चुनावी रणनीति को कामयाबी के साथ अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई. पार्टी में ममता और उनके भतीजे अभिषेक के बाद पार्थ तीसरे नंबर पर थे.
-एजेंसी