नरेंद्र मोदी पीएम नहीं, 21वीं सदी के राजा हैं, जिनको कैबिनेट, संसद और संविधान से नहीं है मतलब : राहुल गांधी

खरगे के बाद राहुल ने स्वीकारीं कांग्रेस की कमियां : मगर इलाज कौन करेगा ?

Politics
शकील अख्तर

सिर्फ बोलते रहेंगे और कुछ करेंगे नहीं तो एक, आपकी बात का वज़न नहीं रहेगा दूसरे समस्या जस की तस रहेगी बढ़ और सकती है।

राहुल ने कांग्रेस की दुखती रग पर उंगली रख दी। दिल्ली में वंचित समाज के सम्मेलन में उन्होंने कहा कि अगर मैं कांग्रेस की बात नहीं करुंगा तो यह सच का सामना न करने जैसी बात होगी। उन्होंने स्वीकार किया कि भाजपा और आरएसएस अपने सामर्थ्य की वजह से सत्ता में नहीं आए हैं। कांग्रेस में आ गई कमजोरियों की वजह से आए हैं।

जाहिर है उनका निशाना कांग्रेस में पिछले कुछ सालों से आ गए मैनेजर नुमा नेताओं पर था। पब्लिक सम्मेलन था। लोगों ने तत्काल उन दोषी लोगों के नाम पूछे मगर राहुल ने कहा नाम नहीं। सही बात भी है। नाम कहां तक लेंगे वे? कांग्रेस में अवसरवादी, अपने स्वार्थ के अलावा कुछ और नहीं सोचने वाले, पार्टी और नेतृत्व के प्रति जरा भी निष्ठा नहीं रखने वाले भरे पड़े हैं।

राहुल ने कहा बहुत चले गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया जो अपनी पूछ अब भाजपा में कम हो जाने की वजह से राहुल पर ज्यादा हमले कर रहे हैं उन पर बिना नाम लिए टिप्पणी करते हुए कहा महल बचाने के लिए!

राहुल ने इन्दिरा गांधी का वह दौर भी याद किया जब समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगो में विश्वास पैदा किया जाता था। उन्हें साथ लेकर चला जाता था। राहुल ने कहा कि दलित, आदिवासी, पिछड़े, अति पिछड़े, अल्पसंख्यक लोगों को ताकत दी जाती थी। जो बाद में कम हो गई। सही बात पकड़ी। मगर साथ ही यह बात समझना भी जरूरी है कि इन्दिरा जी ताकत अपने हाथों में रखती थीं। इसलिए वह समाज के वंचित समाज के हितों के लिए काम कर पाईं। लेकिन उनके बाद वह ताकत मैनेजर नुमा नेताओं के पास पहुंच गई।

राहुल अगर इन्दिरा जी की बात करते हैं तो उन्हें उनकी तरह ताकत अपने हाथ में रखना होगी और सख्ती से उसका इस्तेमाल करना होगा। पार्टी की समस्याएं बताना ठीक है। और यह राहुल पहली बार नहीं कर रहे पहले भी कई बार वह कह चुके हैं कि जो पार्टी की नीतियों से सहमत नहीं हैं वह छोड़कर जा सकते हैं। मगर यह कहने से कुछ होने वाला नहीं है। नेता छोड़कर तब जाता है जब उसे भाजपा से सिग्नल मिलता है। वैसे ही जाकर न इधर के रहे न उधर के करने के लिए कोई नहीं जाता। जिन पर शक हो उन्हें निकालना पड़ता है।

राहुल से ज्यादा साफ शब्दों में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस की कमजोरियों पर बोल चुके हैं। पिछले साल हरियाणा और महाराष्ट्र की अविश्वसनीय हारों के बाद दिल्ली में नवंबर में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में खरगे ने कहा था जब आपस में ही एक दूसरे से लड़ते रहोगे तो विरोधियों से कैसे लड़ोगे? पार्टी की भारी गुटबाजी, संगठन का न होना, चुनावों के लिए कोई तैयारी न होना केवल राहुल प्रियंका के भरोसे पर रहना इन सब पर खरगे ने बहुत खरी खरी बातें कहीं थी। मगर उसको भी दो महीने हो गए। कोई कार्रवाई, कोई हलचल नहीं।

अगर कुछ हो रहा होता तो अभी राहुल को यह सब बोलने के जरूरत नहीं होती बल्कि वे यह बताते कि कैसे हमने अपनी कमजोरियों पर काबू पा लिया है और नई कांग्रेस आपके सामने है।

बड़ी चुनौती है कांग्रेस के सामने। पार्टी अध्यक्ष खरगे और पार्टी के सबसे बड़े नेता राहुल दोनों बीमारियां बता रहे हैं। और सही पहचान कर रहे हैं। मगर इलाज नहीं कर रहे!

इलाज कौन करेगा? और अगर इलाज नहीं हुआ केवल बातें ही बातें होती रहीं तो क्या पार्टी वापस ताकतवर हो पाएगी। वह एक ही तरीका है जैसे कांग्रेस की कमजोरी से भाजपा सत्ता में आई वैसे ही भाजपा की कमजोरी से? मगर भाजपा का ढांचा बिल्कुल अलग है। संघ उसकी पीठ पर है। संगठन का बड़ा जाल है। पैसा बहुत आ गया है। भाजपा वैसी कमजोर अब नहीं हो सकती। और अगर मान लिया जाए कि उत्थान और पतन ऐतिहासिक क्रियाएं हैं। पतन होगा। मगर क्या उस स्थान को कांग्रेस ही भरेगी?

यह सवाल सबसे मुश्किल है! बीजेपी अगर कमजोर होगी तो दूसरे बहुत सारे विपक्षी दल उस स्थान को लेने के लिए ज्यादा तैयारी से खड़े हुए हैं। अभी इंडिया गठबंधन के नेतृत्व को लेने की जो होड़ थी वह इसलिए थी कि भाजपा का स्थानापन्न कौन बनेगा। ममता बनर्जी, अगर दिल्ली जीत गए तो अरविन्द केजरीवाल सबसे बड़े दावेदार, अखिलेश यादव जो यूपी में अपना लोहा मनवा चुके हैं, बिहार से लालू जो इस बार विधानसभा जीतने की बड़ी तैयारी में हैं कई नेता है जो इस बार मेन रोल में कांग्रेस को आने से रोकने के लिए तैयार खड़े हैं।

ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनावों से लेकर लोकसभा तक मोदी को कहीं सफल नहीं होने दिया। यहां तक कि अभी महिला डाक्टर की हत्या बलात्कार के मामले में उनकी सरकार को घेरने के सारे उपायों को ममता बनर्जी ने अपनी बेमिसाल संघर्ष क्षमता से नाकाम कर दिया।

ऐसे में कांग्रेस अगर यह सोचे कि वह स्वाभाविक सत्ता की दावेदार बन जाएगी तो अब यह संभव नहीं है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव ने इन्डिया गठबंधन के भविष्य पर भी सवालिया निशान लगी दिए। राहुल गांधी ने केजरीवाल पर बहुत कड़े हमले किए। जरा भी नहीं बख्शा। केजरीवाल तो हमेशा से ही नेहरू गांधी परिवार पर भाजपा की तरह हमले करते रहे हैं। बस कुछ समय के लिए लोकसभा चुनाव में वे शांत हुए थे। ऐसे में दिल्ली चुनाव के बाद इन्डिया गठबंधन रहेगा भी या नहीं बड़ा सवाल है।

कांग्रेस को भी फैसला करना ही होगा कि वह कभी गठबंधन में कभी अकेली कहां तक कन्फ्यूजन में रहेगी। बिहार, यूपी में करीब 35 साल से वह कभी अकेली कभी गठबंधन में चुनाव लड़ती है। इन दो सबसे बड़े राज्यों में उसका संगठन लगभग खत्म है।

संगठन तो वैसे पूरे देश में खत्म है। खरगे ने इस पर विस्तार से अपनी बात कही थी। लेकिन अब उसका पूनर्गठन कैसे होगा। राहुल ने जो एक दलित, पिछड़े आदिवासियों के लिए बात कही है वह उनकी पार्टी पर भी पूरी तरह लागू होती है। राहुल ने कहा कि इस ढांचे में वंचित समाज को आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिलेगा। सब कुछ नया तैयार करना होगा। पुराने स्ट्रक्टर पर संघ ने कब्जा कर रखा है। यहां दलित पिछड़ों के लिए कुछ नहीं है। नया सिस्टम बनाना होगा जिसका कंट्रोल खुद उनके पास हो।

बिल्कुल ठीक यही बात कांग्रेस के वर्तमान ढांचे पर लागू होती है। मौकापरस्तों, गणेश परिक्रमा करने वालों, चापलूसों ने पूरे सिस्टम पर कब्जा कर रखा है। अब अगर नया संगठन बनाना है जैसाकि लास्ट कर्नाटक की बेलगावी सीडब्ल्यूसी में कहा गया कि 2025 संगठन का साल होगा तो नियंत्रण हाईकमान को अपने हाथों में रखना होगा। और काम करने वाले, दलाली से दूर लोगों को संगठन में महत्वपूर्ण जगह देना होगी।

और सबसे बड़ी बात कि राहुल को संगठन का यह आपरेशन खुद करना होगा। कोई दूसरा इतना बड़ा काम नहीं कर सकता। उन्हें अब सबके बारे में मालूम चल चुका है। काम करने वालों और बेवकूफ बनाने वालों सबके बारे में। राहुल ने कल अपने भाषण में बेवकूफ शब्द का प्रयोग किया था। सही जगह।

बस उन्हें अब अपने आसपास के उन नेताओं को देखना होगा जिनका काम ही बेवकूफ बनाकर अपने पदों पर जमे रहना है।

राहुल को एक बात याद रखना चाहिए कि आज की कांग्रेस में उनके अलावा एक भी नेता ऐसा नहीं है जो इनडिस्पेन्सेबल ( अपरिहार्य) हो। जिसके बिना काम न चले। वे किसी को भी हटा सकते हैं। ला सकते हैं। और यह उन्हें करना पड़ेगा। नहीं तो केवल बातें करने से कांग्रेस मजबूत नहीं होगी।

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