‘अदाकारी मतलब इरफ़ान’ जिनकी ऑंखें उनके शब्दों से भी ज्यादा बोलती थी

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इरफान को परिभाषित करना हो, उनके बारे में कुछ इसरार करना हो तो समझाना बहुत मुश्किल है, लेकिन इरफ़ान को एक ही शब्द से परिभाषित किया जा सकता है. जैसे ईश्वर को आस्था से व्यक्त किया जाता है. यूँ तो इरफ़ान के लिए एक ही शब्द मुफ़ीद है जो उनकी पूरी की पूरी शख्सियत को बयां कर देता है, वो है, ‘अदाकारी’ सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘अदाकारी’ इरफान की आँखें बहुत ही स्पष्ट थीं, जिसका जिक्र एक बार उनके एक आलोचक ने भी किया था. इरफान खान की ऑंखें उनके शब्दों से भी ज्यादा बोलती हैं. सिल्वर स्क्रीन पर कई बार सिद्ध हो चुका है, कि दिखना एक बाहरी आवरण है, फिर भी हिन्दी सिनेमा में दिखने से ज्यादा बोलने की तवक्को होती है. इरफान दिखने में तो औसत ही माने जाते हैं, लेकिन उनके संवाद पढ़ने का ढंग, नफ़ासत के साथ बोलते हुए डायलॉग चेहरे पर गंभीर मुस्कान एवं सोमरस टपकाती उनकी नशीली आँखे उनको रंगमंच का प्रभावी अदाकार सिद्ध करती हैं.

इरफ़ान कला फ़िल्मों के उस्ताद कहे जाते हैं, आज के दौर में सिनेमा जब अपने कंटेट एवं इंटेंट को लेकर घेरा जाता है, उस दौर में इरफ़ान ने अपनी अदाकारी बड़ी ही सादगी से उन्होंने हर एक फ़िल्म में एक ख़ास संदेश दिया. इरफ़ान की फ़िल्मों में ज़िन्दगी का दर्शन समझा जा सकता है. उनकी संवाद अदायगी में हर मौसम की मार खाने के बाद की सीख देते फलसफे, इससे सिद्ध हो चुका है कि उनकी अदाकारी का स्तर बहुत ऊंचा है. जहां हर किसी का पहुंच पाना मुश्किल है, क्योंकि उनका अभिनय खुद एक मापक है.

अभिनय में सबसे ज्यादा एक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है,इरफ़ान ज़मीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे. जब फ़िल्म हिन्दी मीडियम में शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलते हुए कहते हैं “गरीबो के बच्चे कैसे पढ़ेंगे क्योंकि शिक्षा में अब व्यापार चल रहा है, गरीबों के बच्चों के लिए सारी गुंजाइशें खत्म होती जा रही हैं”. इस संवाद से इरफान ने भारतीय शिक्षा – व्यवस्था पर चोट करती हुई लोगों की मूलभूत अधिकारों की चिंता जतायी. इस स्तर की अदाकारी कभी पुरानी नहीं होती, यह लोगों की चेतना प्रसार के लिए एक सीख बन जाता है. इरफान ने कॉमेडी, एक्शन, थ्रिलर, सस्पेंस, एवं संजीदा अभिनय से खुद को हरफ़नमौला अदाकार के रूप में स्थापित किया. इरफान की संजीदा अदाकारी जिसने दर्शकों के मन पर गहरा प्रभाव डाला. इरफ़ान ने जब भ्रष्ट सिस्टम की पोल खोलते हुए पान सिंह तोमर में अभिनय ऐसा किया कि लोगों के दिलों – दिमाग में घर कर गया. ख़ासकर उनका बोला गया संवाद “बीहड़ में बागी मिलते हैं डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में यह महज एक डायलॉग नहीं था, बल्कि नागरिक बोध कराता हुआ, संवाद उनकी उच्चतम स्तर की अदाकारी की गवाही देता रहेगा. उससे अधिक बोलने की क्षमता, इसके समानान्तर भाषायी पकड़ मायने रखती है. इरफ़ान ने एनएसडी से अभिनय की बारीकियों को सीखा था, इससे पहले ज़िन्दगी के इतने सारे तजुर्बे एवं उनके समर्पण ने उनको अदाकारी का उस्ताद बनाया, इसीलिए तो इरफ़ान नाम आते ही उनके समानान्तर एक ही शब्द याद आता है, ‘अदाकारी और सिर्फ अदाकारी’.

विलियम शेक्सपियर के नाटकों पर आधारित फ़िल्मों पर विशाल भारद्वाज की पहली पसंद इरफान ने उन फ़िल्मों में यादगार अभिनय किया, ख़ासकर फिल्म मकबूल में नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, पंकज कपूर, पीयूष मिश्रा जैसे महारथी जिस फिल्म में मौजूद हों वो फिल्म हिन्दी सिनेमा में सदियों तक याद रखी जाएगी.. मकबूल फिल्म को देखना सिर्फ़ और सिर्फ़ देखना नहीं है, बल्कि उसकी संवाद अदायगी को महसूस करना अति आवश्यक है, नहीं फिल्म सिर के ऊपर से निकल जाएगी. मकबूल फिल्म का एक संवाद हजारों बार असल जीवन में जीवन का गूढ़ दर्शन समझने के लिए किया जाता है. हालाकि विलियम शेक्सपियर ने अपनी इस लाइन को बहुत ही असंवेदनशील कहा है, वह संवाद है “आग को पानी का डर बना रहना चाहिए” यह लाइन बहुत ही गूढ़ है यह सामाजिक, राजनीतिक कूटनीतिक रूप से सामाजिक समन्वय स्थापित करने के लिए इस का उपयोग किया जाता है. इसीलिए कहते हैं इरफान की अदाकारी को समझना जीवन दर्शन पढ़ने जैसा है.

विलियम शेक्सपियर के नाटक पर आधारित फिल्म हैदर में इरफ़ान का कैमियो रोल ने विशाल भारद्वाज को सोचने पर मजबूर कर दिया था, वैसे तो यह फिल्म आला मुकाम रखती है, लेकिन इरफान कैमियो न करते हुए लीड रोल में होते तो यह फिल्म हिन्दी सिनेमा की महान फ़िल्मों में शुमार होती. एक अच्छा कलाकार किस तरह से फिल्म में जान डाल देता है, इसका उदाहरण इरफान हैं. इरफान की एंट्री के पहले फिल्म बहुत ही स्लो लगती है, लेकिन उनके आते ही फिल्म का स्तर ऊंचा उठ जाता है.

एक्शन, स्टारडम, डांस मसखरी को प्राथमिकता देने वाली सिल्वर स्क्रीन पर इरफान ने अपनी शालीनता, और प्रभावी अभिनय से दर्शकों के अवचेतन मन में अपनी अमिट छाप छोड़ी. यही कारण है कि उनकी बहुमुखी प्रतिभा को हिन्दी सिनेमा के साथ अमेरिकन और ब्रिटिश फिल्म इंडस्ट्रीज ने भी खूब मौके दिये एवं उनके अन्दर की स्किल को एक वैश्विक मंच दिया. अंततः इरफान ने अपनी अदाकारी से विश्व सिनेमा में द अमेजिंग स्पाइडर मैन, जुरासिक वर्ल्ड, लाइफ ऑफ पाई और इन्फर्नो जैसी फिल्मों में अमर अभिनय करते हुए खुद को एवं उन किरदारों को जीवंत कर दिया. इरफ़ान अपनी फिल्मों में ज्यादा शोर शराबा नहीं करते थे, जिसकी अदाकारी औसत होती है वो बेमतलब के चुटकुले बोलकर प्रभाव छोड़ना चाहते हैं, लेकिन इरफान सिर्फ ऐक्टिंग करते थे. इरफान के अंदाज़ में भी एक ठसक थी, इस अदाकारी को फिल्म ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर’ में देखा जा सकता है.

उनके कुछ डायलॉग ज़िन्दगी को जीने की सीख देते हैं एवं मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता भी देते हैं, कि जिंदगी में कुछ भी होने से पहले, ईमानदार होना बहुत ज़रूरी है’ यह इरफ़ान का एक अमर डायलॉग है. बदल चुके सिनेमा में इरफ़ान अपनी संवाद अदायगी से उस चमकती सिल्वर स्क्रीन पर खुद को तो बचाते ही थे, ख़ासकर हिन्दी सिनेमा में कॉमर्शियल सिनेमा से मिली चुनौतियों का सामना करते हुए व्यापारिक फ़िल्मों में भी सफल अभिनय किया. उनका एक बोला गया संवाद आज के दौर में अनावश्यक भागने वाले लोगों पर गहरी चोट करता है

“चांद पर बाद में जाना जमाने वालों, पहले धरती पर रहना तो सीख लो. ‘इस स्तर का अभिनय एवं इस अभिनय को पर्दे पर उतारने वाला नायक इरफ़ान ही हो सकते है.

लंचबॉक्स’ फिल्म के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, कुछ कुछ बोला गया है. लंच बॉक्स फ़िल्म को समीक्षकों ने खूब सराहा इस फिल्म को दर्शकों ने अपनी आँखों पर सजा लिया था. लंचबॉक्स में इरफान ने कालजयी अभिनय किया. उनकी कला फ़िल्मों में उनकी एक – एक फिल्म यादगार है, लेकिन बेमतलब की बेसुकूनी के एक – एक धागे को इरफान ने खोलकर रख दिया है. इस फिल्म का यादगार एक बड़ा प्रभावी डायलॉग था, जो इरफान को पर ही जचता है. इस डायलॉग से इरफ़ान से बेहतर ज़िन्दगी की सीख दी. ‘इन दिनों जिंदगी बहुत व्यस्त है दुनिया में कई सारे लोग है, और सबको वही चाहिए जो दूसरे के पास है.”

समान्तर सिनेमा में अपनी अदाकारी का जलवा बिखरने वाले इरफान ने कमर्शियल फ़िल्मों में अपनी छोटी मगर प्रभावी भूमिकाओं पर जान डाल दी. फिल्म जज़्बा में इरफान ने एश्वर्या राय के साथ ऐसी अदाकारी की मुहब्बत पाने का नाम नहीं हंसकर जाने देने का भी नाम है. इरफान की अदाकारी असल ज़िन्दगी को तो दर्शाती ही थी, लेकिन किताबी भी होती थी, हालांकि इसमे तो उन लिखने वालों का कमाल है, लेकिन अपनी जादुई आवाज़ से इरफान ने एक – एक किरदार एक – एक डायलॉग दर्शकों के जेहन में उतर गए. कमर्शियल फ़िल्मों में उनका यह अंदाज देखते बनता है “बेटे! मोहब्बत थी इसलिए जाने दिया, ज़िद्द होती बाहों में होती”. कला फ़िल्मों का उस्ताद इस स्तर का अभिनय कर सकता है, खासकर इस डायलॉग में इरफ़ान की मुस्कान एवं आँखों की अदाकारी यादगार है.

‘इरफान कमर्शियल सिनेमा पर ताने मारते हुए फिल्म फेयर के फंक्शन में कहा था.” यार ये फिल्म स्टारों को देखने के चक्कर में लोगों के गाड़ी घोड़े न बिक जाएं, एक तो कोई बेल्ट हिलाता है, कोई कॉलर उठाता है, कुछ कपड़े ही उतार देता है,लेकिन कला फ़िल्मों का नाम इन फंक्शन आदि में लिया भी नहीं जाता. इससे हिन्दी सिनेमा एवं उसके दर्शकों की औसतन बुद्धिमत्ता का पता चलता है. यह उनके द्वारा ज़िन्दगी को दर्शाने वाली अदाकारी एवं फ़िल्मों की लोगों तक कम ही पहुंच थी, इसका दुःख भी उन्होंने जाहिर किया”. इरफान कहते थे,” मैंने तो लाइफ वाली ही फ़िल्में की हैं”,लाइफ इन ए मेट्रो’, जिसमें उन्होंने मुंबई शहर के बारे में एक मन को छू लेने वाला संवाद कहा था.” ये शहर जितना देता है, बदले में कहीं ज्यादा हमसे ले लेता है” . इरफान की फ़िल्मों में ज़िन्दगी का दर्शन तो मिलता ही है, साथ ही तजुर्बा उनकी जुबां पर हर प्रकार के तकाजे महसूस किये जा सकते हैं. किसी इंसान की जिंदगी में उसके सपनों की बहुत अहमियत होती है. इरफान की अदाकारी में ज़िन्दगी के एक – एक पहलू को देखा जा सकता है. जीवन जीने की सीख देती फ़िल्म, इससे ज्यादा पारिवारिक जीवन बच्चों एवं पिता के जीवन पर गहन अध्ययन को अपनी फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ में कभी न भुलाया जा सकने वाला अभिनय इरफान कर गए. इरफान का संवाद ‘आदमी का सपना टूट जाता है ना, तो आदमी खत्म हो जाता है’ यथार्थ भाव को उतारने में भी उनका कोई सानी नहीं था.

इरफ़ान एक संजीदा इंसान थे, ख़ासकर बेहतर जीवन मूल्यों के साथ जीवन बिताने के हिमायती थे, उन्होंने कहा था “मैं आम शराबी की तरह शराब नहीं पीता जो हर शाम को दो पेग लगाते हैं, मैं जब पीना शुरू करता हूँ तो ये काफी सिलसिला लम्बा चलता है. बेहोशी की हालत तक पीता ही रहता हूं, इसलिए मैं शराब नहीं पीता क्योंकि अगले दिन मैं अपने शरीर और खुद से नफरत करने लगता हूँ. अपनी युवावस्था में मैं देर रात तक शराब पीता रहता था. उसका अनुभव मुझे यह सीख देता है कि शराब अच्छी चीज़ नहीं है, मेरे पिता मुझे कहते थे, “इरफान तुम्हारी आँखे मयखाने से कम नहीं है, तुम्हारी आँखे बोलती हैं, कभी उपयोग करना, मैंने अपनी अदाकारी पिता की उस सीख को ध्यान में रखकर अमल किया…. जिस भाव को मैंने पर्दे पर उतार दिया.

इरफान खान बेहद संवेदनशील इन्सान थे, उनको जानवरो से काफी सहानुभूति होती थी. इरफ़ान अक्सर अपने पालतू कुत्ते के साथ समय खेलते हुए देखे जाते थे. इरफ़ान अपने इस दृष्टिकोण एवं उत्तम मानवीय भावना पर कहा था “जब भी पिताजी शिकार पर जाते थे तो हम सब भाई उनके साथ जाते थे. हमारे लिए, तब यह साहसिक था,लेकिन जब मैं अपनी बहन या अपने छोटे भाई के साथ जाया करता था ,तो वह थोड़ा दर्दनाक हुआ करता था, क्योंकि भले ही हमने जंगल में बहुत कुछ देखा महसूस किया, क्योंकि जंगल में मानवीय मूल्यों का पाठ सीखा जा सकता है. हमने भी आनंद लिया और एक नए वातावरण में समय बिताया. जब एक जंगली जानवर अंततः मेरे हांथों मारा जाता था तो मैं चिंतन किया करता कि अब उस जानवर के मरने के बाद उनके परिवार का क्या होगा, उसकी माँ पर क्या गुज़र रही होगी. मेरे साथ जानवरों का एक भावनात्मक लगाव होता गया. मैंने उस जंगल में राइफल चलाना तो सीखा लेकिन मैंने कभी भी इससे शिकार नहीं किया, शायद यही वजह थी की मैंने कभी भी मांसाहारी खाना नहीं खाया”.इरफान की मानवीय संवेदनाओं को पढ़कर महर्षि बाल्मीकि की याद आती है कि, धूप – छांव के जैसे ही हिंसा एवं मानवीय संवेदना का बहुत नजदीकी रिश्ता होता है. इस फलसफे से इरफ़ान सीख देते हैं कि ठीक है सही – गलत कुछ नहीं होता, लेकिन मानवीय संवेदनाओं का कोई रिप्लेसमेंट नहीं है.

अपनी मानवीय संवेदनाओं के कारण इरफ़ान धार्मिक लोगों के निशाने पर रहे, चूंकि हर धर्म की अपनी लिमिट होती है, अपनी एक मर्यादा होती है, लेकिन इरफान फंस गए विवादों में.. मुझे लगता है, सभी की अपनी एक दृष्टि होती है, इरफान अपने नजरिए से सही हो सकते हैं, वहीँ धर्मगुरु अपने नजरिए से सही हो सकते हैं. हर विषय पर विमर्श होना चाहिए, लेकिन सकारात्मक याद रखना चाहिए ज़िन्दगी में कुछ अंतिम सत्य नहीं है, मानवीय मूल्यों की रक्षा करना मनुष्यता की रक्षा करना हम सभी का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए. इरफान कहा था, ‘जितने भी रीति-रिवाज, और त्यौहार हैं, हम उनका असल मतलब भूल गए हैं, हमने उनका तमाशा बना दिया है. कुर्बानी एक अहम प्रथा है. कुर्बानी का मतलब बलिदान करना है. किसी दूसरे की जान कुर्बान करके मैं और आप भला क्या बलिदान करेंगे?’ इरफान के इस बयान पर कुछ इस्लामिक जानकारों ने आपत्ति जताई थी. उन्होंने कहा कि इस्लाम अस्पष्ट नहीं है और इरफान को अपना ज्ञान बढ़ाना चाहिए, बल्कि किसी पर थोपना नहीं चाहिए. जयपुर के इस्लामिक स्कॉलर अब्दुल लतीफ ने कहा है कि इरफान एक्टिंग के मास्टर हैं, लेकिन धार्मिक मामलों के नहीं। उन्होंने जो कुछ कहा उसका कोई महत्व नहीं है और उन्हें अपने निजी स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसा नहीं कहना चाहिए था. इरफान की मानवीय संवेदनाओं को समझना एवं धर्मगुरुओं की बातेँ आम लोगों के समझ से परे है. इरफान पठान परिवार में पैदा हुए फिर भी बावजूद वह मांसाहारी भोजन नहीं करते थे. उनके पिता अक्सर कहा करते थे कि वह पठान परिवार में पैदा जरूर हुए हैं लेकिन उनकी आदतें ब्राह्मणों जैसी हैं. एक साक्षात्कार में इसका खुलासा करते हुए उन्होंने कहा था. उनके परिवार वालों का ऐसा मानना था की एक पठान के घर में एक ब्राह्मण ने जन्म लिया था. हालांकि यह उनका अपना निजी ज़िंदगी जीने का अंदाज़ था, यह एक बहुत ही व्यक्तिगत बात है, कोई क्या खाए, क्या पहनेगा यह उस पर ही छोड़ देना चाहिए.

अभिनेता इरफान अभिनेता फिलिप सीमोर हॉफमैन, रॉबर्ट डी नीरो, अल पैचीनो, मार्लन ब्रैंड, आदि को खूब पसंद करते थे, लेकिन खुद में कला फ़िल्मों की अदाकारी देखते थे, मिथुन चक्रवर्ती जैसे हेयरस्टाइल रखने वाले इरफ़ान नसीरुद्दीन शाह की तरह अपने अंदाज़ में कला फ़िल्मों में योगदान देना चाहते थे. इरफान ने अपने जीवन में यह बखूबी किया… उनकी एक – एक फिल्म जीवन के हर एक फलसफे से वाकिफ़ करवाती हैं. इरफान खान बॉलीवुड के पहले अभिनेता थे जिन्हे ड्रामा फिल्म “स्लमडॉग मिलियनेयर” 2008और “लाइफ ऑफ़ पाई” 2012 के लिए अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, कालांतर में स्लमडॉग मिलियनेयर में इस भूमिका के लिए पहले गुलशन ग्रोवर को चुना गया था. इरफान खान ने फिल्म “पीकू” में काम करने के लिए हॉलीवुड फिल्म “द मार्टियन” में काम करने से मना कर दिया था. इरफ़ान ने बाद में अपनी कला फ़िल्मों में अपनी अदाकारी का ऐसा तिलिस्मी जाल बुना कि सिने प्रेमी कभी भी निकल नहीं पाएंगे.

इरफ़ान को सिल्वर स्क्रीन पर देखते हुए, संजीव कुमार याद आते हैं, दोनों ही हरफ़नमौला उस्ताद कहे जाते हैं, दोनों ही असमय दुनिया छोड़ गए. इरफान आज होते तो उनकी कला फ़िल्में नए – नए दर्शकों की पीढ़ियां तैयार करते, एवं सामजिक, मानवीय मूल्यों का प्रसार करते, इरफान का असमय जाना देखकर लगता है, कि शायद ऊपर वाले को किसी आँखों के किसी तिलस्मी अदाकार की जरूरत को ध्यान में रखते हुए अपने पास बुला लिया, लेकिन इरफ़ान हमारे पास आज भी अपनी फ़िल्मों के जरिए बने हुए हैं, आज भी इक्कीसवीं सदी के अभिनय के लिए सबसे बेहतरीन अदाकार का नाम जेहन में आता है, तो सबसे पहले इरफान का चेहरा अपनी नशीली आँखों के साथ हमारे सामने झूलने लगता है, दिवंगत अभिनेता जीते जी ही किवंदती बन गए. रंगमंच की दुनिया में इरफ़ान हमेशा अपनी अदाकारी से जिवित रहेगे…… इरफान के जन्मदिन पर उनके एक प्रशंसक का सादर प्रणाम…..

दिलीप कुमार