प्रधानमंत्री ने अपने एक बयान में कहा – “नेहरू जी ने कहा था कि जिस दिन हर भारतीय को Toilet की सुविधा होगी उस दिन देश विकास की नई ऊंचाई पर होगा। उन्हें समस्या का पता था, लेकिन समाधान की तत्परता नहीं थी।”
नेहरू में तत्परता नहीं थी, यह इतनी हल्की और घटिया बात है कि इसे सिर्फ़ वे ही कह सकते हैं। नेहरू से उनकी चिढ़ इस हद तक है कि वे एक लुटे हुए नवस्वतंत्र देश के संघर्षों का भी मज़ाक़ उड़ाते हैं। यह कितना पागलपन भरा विचार है कि जिस देश में भुखमरी हो वहाँ पहले टॉयलेट की व्यवस्था की जाती!
अगर भाषा और विचार के इसी क्षुद्र स्तर पर जवाब दिया जाए तो नेहरू जी ने बुनियादी ढांचे से जुड़े इतने संस्थान बनाए कि आप आठ साल में बेच भी नहीं पाए। बनाना तो बहुत दूर की बात है।
जब आप सिर्फ पैदा हुए थे, तब नेहरू की अगुआई में यह देश बांध, कारखाने, परियोजनाओं, भाखड़ा, रिहंद, इसरो, परमाणु ऊर्जा आयोग, आईआईटी, आईआईएम, विश्वविद्यालय, कला, साहित्य, संस्कृति, कृषि और औद्योगिक संस्थान बना रहे थे।
नेहरू वो व्यक्ति हैं जिनका पूरा परिवार स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल रहा। जिनके परिवार की सारी महिलाएँ तक जेल गईं। वे ख़ुद नौ साल जेल में रहे और पूरा जीवन देश के लिए दे दिया।
नेहरू को एक लुटा हुआ भारत मिला था जिसके पास खाने को अनाज तक नहीं था। इस देश ने लगभग 25 साल अथक मेहनत करके अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की।
पूरे देश में फैले विशाल तंत्र और महान भारतीय लोकतंत्र की स्थापना करने वाले महापुरुष का मज़ाक़ वह व्यक्ति उड़ा रहा है जिसके हिस्से में सिर्फ़ टॉयलेट के वो खंडहर हैं जिनमें महिलाएँ लकड़ी कंडा रखती हैं। लोकतंत्र के मोर्चे पर अपनी उपलब्धि ये है कि दुनिया में आपको इलेक्टेड ऑटोक्रेसी का संस्थापक कहा जा रहा है। लोकतंत्र की भाषा में इससे बुरी उपाधि दूसरी नहीं है।
एक असफल व्यक्ति एक महापुरुष का मखौल उड़ाये, यह इस अंधयुग की विडंबना ही कही जाएगी।
-कृष्ण कांत जी
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