उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक न्यायिक अधिकारी की पटना उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें निलंबित किये जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जता दी।
बिहार के अररिया में अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश शशिकांत राय की याचिका न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति एस आर भट्ट की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई।
राय ने अपनी याचिका में कहा कि उन्हें लगता है कि उनके खिलाफ एक ‘संस्थागत पूर्वाग्रह’ है क्योंकि उन्होंने छह साल की एक बच्ची से बलात्कार से जुड़े पॉस्को (बच्चों को यौन अपराध से संरक्षण कानून) के एक मामले में सुनवाई एक ही दिन में पूरी कर ली थी।
राय ने कहा कि उन्होंने एक अन्य मामले में एक आरोपी को मुकद्दमे के चार दिन के अंदर दोषी ठहराकर मौत की सजा सुनाई थी। ये फैसले व्यापक रूप से खबरों में छाये रहे और सरकार तथा जनता से सराहना मिली।
शीर्ष अदालत की पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया और दो सप्ताह में जवाब मांगा। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह पेश हुए
याचिका में आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का 8 फरवरी 2022 का उच्च न्यायालय का आदेश ‘स्पष्ट रूप से मनमाना और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाला’ है।
याचिकाकर्ता 2007 में बिहार न्यायिक सेवा का हिस्सा बने थे।
उनकी याचिका में दावा किया गया है कि उन्होंने केवल उच्च न्यायालय की नयी मूल्यांकन प्रणाली के आधार पर वरिष्ठता बहाल करने पर विचार करने का अनुरोध किया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने नोटिस जारी किया और बाद में कोई कारण बताए बिना महज फैसलों के मूल्यांकन की प्रक्रिया पर सवाल उठाने के लिए उन्हें निलंबित कर दिया।
-एजेंसी
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