गंगा दशहरा: इस दिन स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरी थीं मोक्ष दायिनी माँ गंगा

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इस बार गंगा दशहरा 09 जून, गुरुवार को है। इस दिन गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरी थीं। सनातन धर्म में गंगा को मोक्ष दायिनी कहा गया है। आज भी मृत्यु के बाद मनुष्य की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करना श्रेष्ठ माना जाता है। अस्थि विसर्जन के लिए हिंदु समाज में सबसे ज्यादा महत्व गंगा नदी का ही माना जाता है। हरिद्वार में हर की पौढ़ी पर कपालक्रिया और अस्थि विसर्जन किया जाता है। इसके पीछे कारण है गंगा का इतिहास। गरुड़ पुराण सहित कई ग्रंथों में जिक्र है कि गंगा को देव नदी या स्वर्ग की नदी है।

गंगा स्वर्ग से निकली नदी है, जिसे भगीरथ अपनी तपस्या से पृथ्वी पर लेकर आए थे। माना जाता है कि गंगा भले ही जाकर समुद्र में मिल जाती है लेकिन गंगा के पानी में बहने वाली अस्थि से पितरों को सीधे स्वर्ग मिलता है। गंगा का निवास आज भी स्वर्ग ही माना गया है। इसी सोच के साथ मृत देहों की अस्थियां गंगा में बहाई जाती है, जिससे मृतात्मा को स्वर्ग की प्राप्ति हो। पुराणों में बताया गया है कि गंगातट पर देह त्यागने वाले को यमदंड का सामना नही करना पड़ता।

महाभागवत में यमराज ने अपने दूतों से कहा है कि गंगातट पर देह त्यागने वाले प्राणी इन्द्राद‌ि देवताओं के ल‌िए भी नमस्कार योग्य हैं तो फ‌िर मेरे द्वारा उन्हें दंड‌ित करने की बात ही कहां आती है। उन प्राणियों की आज्ञा के मैं स्वयं अधीन हूं। इसी कारण अंत‌िम समय में लोग गंगा तट पर न‌िवास करना चाहते हैं।

पद्मपुराण में बताया गया है कि ब‌िना इच्छा के भी यद‌ि क‌िसी व्यक्त‌ि का गंगा जी में न‌िधन हो जाए तो ऐसा व्यक्त‌ि सभी पापों से मुक्त होकर भगवान व‌िष्‍णु को प्राप्त होता है। गंगा में अस्थि विसर्जन के पीछे महाभारत की एक मान्यता है कि ज‌ितने समय तक गंगा में व्यक्त‌ि की अस्‍थ‌ि पड़ी रहती है व्यक्त‌ि उतने समय तक स्वर्ग में वास करता है।

-एजेंसियां


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