दरअसल अयोध्या के बाद हिंदुत्व के उन्माद को बढ़ावा देने के लिए ही ज्ञानवापी प्रकरण को दी जा रही हवा
भाजपा हमेशा चुनावी मोड में रहती है। 2 साल पहले से ही वो अगले चुनाव की तैयारी में लग जाती है। हिंदुत्व के मुद्दे पर सत्ता के शीर्ष पर पहुची भाजपा एक बार फिर 2024 के लोकसभा चुनाव के मुद्दे पर ज्ञानवापी के प्रकरण को तूल देना शुरू कर दिया गया है।विगत सप्ताह 50 से ज्यादा लोगों की मौजूदगी में ज्ञानव्यापी मस्जिद के तहखाने का सर्वेक्षण हो गया है… वहां से कोई मूर्ति नही मिली है कमल और स्वास्तिक के चिन्ह मिले हैं ईंटों पर जिससे हिंदू पक्षकार बेहद उत्साहित हैं जबकि दो संस्कृतियों के मिलन में एक दूसरे की चीजें, चिन्ह आदि को अपनाना इतिहास में बहुत आम बात रही है।
मोहम्मद गोरी के सिक्के पर एक आई बैठी हुई लक्ष्मी का अंकन है तो दूसरी ओर देवनागरी में मुहम्मद बिन साम उत्कीर्ण है… तो इस आधार पर क्या निष्कर्ष निकाल देंगे कि मोहम्मद गोरी हिंदू था…? वो लक्ष्मी जी का भक्त था।
अकबर को तो जानते ही होंगे न आप…अकबर ने राम के प्रति लोगों में आस्था को देख राम सिया पर सिक्का जारी कर ‘तू ही राम है तू रहीम है’ का संदेश दिया था…दीन-ए-इलाही के शुभारंभ के मौके पर अकबर ने इलाही मोहरें चालू की थीं। राम-सीता की छवि वाली खास इलाही मोहर… इस मोहर के एक ओर तीर-धनुष लिए श्रीरामचंद्र अंकित हैं… और उनके पीछे हैं सीता, जिनके दोनों हाथों में कमल के फूल सुशोभित हैं…एकदम ऊपर देवनागरी लिपि में राम-सीता लिखा हुआ है…मोहर के दूसरे पहलू पर ‘आमरदद इलाही 50’ लिखा है… तो क्या कह देंगे कि अकबर,असल में अकबर नही अंबर या असीमानंद था…?
सिकंदर के भारत पर आक्रमण के बाद भारतीय शैलियों में यूनानी शैलियों की विशेषताएं दृष्टिगोचर होने लगीं… तो इसका मतलब क्या है कि यूनानी पूरा भारत मांग लेंगे…? अंग्रेजी वास्तुकला के लाखों उदाहरण भारत में मिल जायेंगे तो इसका क्या मतलब है कि इंग्लैंड वाले जाकर इंटरनेशनल कोर्ट में खड़े हो जाएंगे कि भारत पर हमको कब्जा फिर से दिलाओ… नही न… तो फिर क्या औचित्य है स्वास्तिक और कमल के चित्र मिलने का…
जब दो सभ्यताओं का मिलन होता है… जब दो संस्कृतियाँ नजदीक आती हैं तो दोनो एक दूसरे के प्रभाव से अक्षुण्य नही रह पातीं… दोनो में एक दूसरे की विशेषताएं मिलती ही हैं…. यही तो है साझी विरासत… और क्या है… निजी जीवन से एक छोटा सा उदाहरण ले लीजिए… मुस्लिम महिलाओं की प्रिय शरारा ड्रेस मै किसी किसी मौके पर पहन लेती हूं… मेरी अलमारी में कई ड्रेस मिल जायेंगी… अगर आज मेरा घर ढह जाए और 100 साल बाद खुदाई में मेरी शरारा ड्रेस मिले तो क्या बस इस आधार पर कह दिया जाएगा ये घर किसी मुस्लिम का था…? आप खुद सोचकर देखिए….
बाकी ज्ञानव्यापी को आप तोड़ दीजिए… ढहा दीजिए… या जो मन में आए वो करिए… पर आप अनैतिक हैं… आप इतिहास को मिटा रहे हैं… आप सभ्यता को तबाह कर रहे हैं… इतना याद रखिए कि जो इतिहास मिटाने चलते हैं इतिहास उनको विलुप्त कर देता है… आगे मर्जी आपकी….
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