आगरा: तेज बुखार, सिरदर्द, ठंड लगना, मांसपेशियों में दर्द होना, पेट में दर्द, शरीर में ऐंठन होना, पसीना आना और उल्टी जैसे लक्षण दिखें तो तुरंत प्रशिक्षित चिकित्सक को दिखा कर उनकी सलाह पर मलेरिया की जांच कराई जानी चाहिए । मच्छरों से बचाव और लक्षण दिखने पर तुरंत जांच और इलाज मलेरिया से बचाव का बेहतर उपाय है । समय से जांच व इलाज न होने से मलेरिया जानलेवा हो सकता है । जिला अस्पताल, जिला महिला अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स (एचडब्ल्यूसी) पर मलेरिया की जांच निःशुल्क है । यह कहना है मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरुण श्रीवास्तव का । उन्होंने बताया कि कोविड काल में विश्व भर में एक करोड़ 40 लाख से अधिक मलेरिया के मामले सामने आए हैं जो देश के लिए भी सतर्क रहने का एक कारण है।
उन्होंने बताया कि मलेरिया में परजीवी संक्रमण और लाल रक्तकोशिकाओं के नष्ट होने के कारण थकान की वजह से एनीमिया, दौरा या चेतना की हानि की स्थिति बन जाती है। सेरिब्रल मलेरिया में परजीवी रक्त के जरिये मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं और यह शरीर के अन्य अंगों में भी पहुंच कर हानि पहुंचाते हैं । गर्भावस्था में मलेरिया का होना गर्भवती के साथ-साथ भ्रूण और नवजात के लिए भी खतरा है । यह बीमारी मादा मच्छर एनोफीलिज के काटने के कारण होती है । अगर मलेरिया का संक्रामक मच्छर काट लेता है तो स्वस्थ मनुष्य में 10 से 14 दिन बाद यह रोग विकसित होता है।
वेक्टर बार्न डिजीज के एसीएमओ/नोडल अधिकारी डॉ. आरके अग्निहोत्री ने बताया कि मलेरिया का मच्छर सामान्यतः शाम और सुबह के बीच काटता है । यह साफ पानी में पनपता है। अगर किसी स्वस्थ व्यक्ति को मलेरिया का संक्रमित मच्छर काटता है तो वह स्वयं तो संक्रमित होगा ही, दूसरे को भी संक्रमित कर सकता है । मच्छर के काटने के बाद इसका परजीवी लीवर के जरिये लाल रक्त कोशिकाओं तक पहुंचता है और संक्रमण पूरे शरीर में फैलने लगता है और यह रक्त कोशिकाओं को तोड़ने लगता है । संक्रमित रक्त कोशिकाएं हर 48 से 72 घंटे में फटती रहती हैं और जब भी फटती हैं बुखार, ठंड लगना और पसीना आने जैसे लक्षण भी सामने आते हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन का परामर्श है कि गर्भवती को मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में नहीं जाना चाहिए क्योंकि उनमें मलेरिया होने से जटिलताएं बढ़ जाती हैं ।
डॉ. आरके अग्निहोत्री का कहना है कि जिला मलेरिया अधिकारी नीरज कुमार और मलेरिया निरीक्षकों की टीम जिले में मच्छरों के लार्वा को नष्ट करने के लिए संबंधित विभागों और सामुदायिक योगदान के जरिये अभियान में जुटे हुए हैं, लेकिन लोगों की सतर्कता अधिक आवश्यक है । मलेरिया बचाव का सबसे बेहतर उपाय है कि पूरे बांह के कपड़े पहने, मच्छरदानी का इस्तेमाल करें, मच्छररोधी क्रीम लगाएं, घर में मच्छररोधी अगरबत्ती का इस्तेमाल करें । घरों में कीटनाशकों का छिड़काव करें, खुली नालियों में मिट्टी का तेल डालें ताकि मच्छरों के लार्वा न पनपने पाएं, मच्छरों के काटने के समय शाम व रात को घरों और खिड़कियों के दरवाजे बंद कर लें। इन उपायों के बावजूद अगर लक्षण दिखें तो मलेरिया की जांच करवा कर इलाज करवाएं ।
कोरोना के साथ कराएं मलेरिया की जांच
जिला मलेरिया अधिकारी नीरज कुमार ने बताया कि आईआईटी इंदौर के एक रिसर्च के मुताबिक कोरोना या मलेरिया के लक्षण दिखने पर कोरोना के साथ मलेरिया की भी जांच करानी चाहिए। मलेरियाग्रस्त कोरोना के मरीज को स्टेरायड देना जानलेवा हो सकता है इसलिए दोनों जांच आवश्यक है। ऐसी स्थिति में न्यूरोलॉजिकल प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। इस वजह से सेरीब्रल मलेरिया या कोमा की स्थिति पैदा हो सकती है। उन्होंने बताया कि हर रविवार मच्छर पर वार लार्वा पर प्रहार यानी हर रविवार को घर के साथ-साथ आसपास की साफ-सफाई बहुत जरूरी है जिससे कि लार्वा बनने से रोका जा सके |
जिला मलेरिया अधिकारी नीरज कुमार का कहना है कि पिछले पांच वर्षों में जिले में मलेरिया के केसेज तो निकले हैं लेकिन समय से इलाज मिलने के कारण मौत नहीं रिपोर्ट हुई है । भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया है । इसके लिए लक्षण दिखने पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को जांच करवानी होगी । वर्ष 2017 में 85, वर्ष 2018 में 82, वर्ष 2019 में 81, वर्ष 2020 में 25, वर्ष 2021 मे 31 और वर्ष 2022 में मलेरिया के एक मरीज की पुष्टी जिले के भीतर हुई है । मच्छर जनित रोगों को रोकने के लिए जन सामान्य की भागीदारी नितांत आवश्यक है।
-up18 News
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