नई दिल्ली। अगर छोटे बच्चों और टीनेजर्स को हृदय की धड़कनों से संबंधित कोई समस्या या हृदय गति में असमानता जैसी समस्या हो रही है तो यह केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक बीमारी का भी संकेत हो सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, अबनॉर्मल हार्ट रिद्मस (cardiac arrhythmias) वाले बच्चों में अपने हम उम्र सामान्य बच्चों या बचपन में होने वाली बीमारियों से पीड़ित बच्चों की तुलना में डिप्रेशन, एंग्जाइटी और एडीएचडी यानी ध्यान की कमी और अति सक्रियता जैसी बीमारियां होने की संभावना कहीं अधिक होती है।
फिलहाल अपनी प्रारंभिक स्थिति में ऐसे आंकड़े देने वाली यह रिसर्च फिलाडेल्फिया में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के वैज्ञानिक सत्र 2019-नवंबर 16-18 में प्रस्तुत की जाएगी।
हालांकि अवसाद, चिंता और एडीएचडी जैसी बीमारियों की दर के बारे में अब तक माना जाता था कि ये मुख्य रूप से यंग अडल्ट्स को अपना शिकार बनाती है, जिनमें दिल से जुड़ी कुछ बीमारियों के दोष जन्म के समय से ही होते हैं।
यह अपने आप में इस उम्र के बच्चों और टीनेजर्स के बीच दिल से जुड़ी बीमारी संबंधी अपने प्रकार की पहली स्टडी हो सकती है, जिसमें बच्चों में विभिन्न कार्डिएक अरिद्मिअस के साथ ही एंग्जाइटी और डिप्रेशन को इस रूप में डाइग्नॉज किया गया है। यह कहना है शोध के मुख्य ऑर्थर कीला एन. लोपेज का। लोपेज मेडिकल डायरेक्टर ऑफ कार्डियॉलजी ट्रांसमिशन मेडिसिन ऐंड असिस्टेंट प्रोफेसर ऑफ पीडियाट्रिक्स, इन पीडियाट्रिक कॉर्डियॉलजी के पद पर टेक्सॉस चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल-बायलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन में कार्यरत हैं।
शोध के आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि 20 प्रतिशत से अधिक बच्चों को अरिद्मिस, कॉग्नेंटल हार्ट डिजीज और सिस्टिक फाइब्रोसिस के साथ डाइग्नोज किया गया और इनमें से 5 प्रतिशत बच्चों का इलाज डिप्रेशन और एंग्जाइटी की दवाइयां भी दी गई जबकि 3 प्रतिशत बच्चों को सिकल सेल रोग की दवाइयां दी गईं।
इस स्टडी में यह बात भी सामने आई कि जिन बच्चों में कोई क्रॉनिक डिजीज नहीं पाई गई उनकी तुलना में अरिद्मस वाले बच्चों में एंग्जाइटी या अवसाद के इलाज होने की संभावना नौ गुना अधिक है और एडीएचडी के लिए लगभग पांच गुना अधिक निदान या इलाज होने की संभावना है।
शोध से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि अरिद्मस हार्ट बीट के साथ बच्चों की एक पूरी आबादी है, जिन्हें जन्म के समय से ही हृदय रोग नहीं है और वे अवसाद और एडीएचडी से विशेष रूप से पीड़ित हो सकते हैं। इन बच्चों की पहचान कर इन्हें वक्त रहते सही इलाज देने की जरूरत है ताकि हम इनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ को इंब्रूव कर सकें।
-एजेंसियां