श्वेताम्बर जैन मुनियों के सानिध्य में महावीर भवन में हुआ दीक्षा और जन्म दिवस की पुण्य स्मृति में श्रद्धा, ज्ञान और तप का संगम

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आगरा। श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वावधान में जैन स्थानक महावीर भवन में चल रही चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला कल्प आराधना के अंतर्गत आज का दिन आध्यात्मिक उल्लास और गुरु स्मरण से अभिभूत रहा। सोमवार को आयोजित विशेष धर्मसभा में व्याख्यान वाचस्पति पूज्य श्री मदनलाल जी महाराज की 111वीं दीक्षा जयंती तथा गणाधीश पूज्य श्री प्रकाश चन्द जी महाराज का 86वाँ जन्म दिवस श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया।

गुरु परंपरा का गौरवगान:

धर्मसभा में बहुश्रुत श्री जयमुनि श्री महाराज ने अपने उद्बोधन में गुरु-शिष्य परंपरा की महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि पूज्य श्री मदनलाल जी महाराज और गणाधीश श्री प्रकाश चन्द जी महाराज के बीच की आध्यात्मिक कड़ी संघ शास्ता पूज्य श्री सुदर्शन लालजी महाराज थे। पूज्य मदनलाल जी महाराज जहाँ गुरु थे, वहीं प्रकाश चन्द जी उनके शिष्य हैं। यह परंपरा केवल ज्ञान की नहीं, बल्कि सिद्धांतों की दृढ़ता और धर्म के प्रति अडिगता की प्रतीक है।

व्याख्यान वाचस्पति की वाणी का प्रभाव:

पूज्य श्री मदनलाल जी महाराज को व्याख्यान वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया गया था जिसका अर्थ है प्रवचन के स्वामी और वाणी के अधिपति। उनकी वाणी में ऐसा ओज था कि खुले मैदान में भी हजारों श्रोताओं तक बिना लाउडस्पीकर के उनकी बात पहुँचती थी। वे उत्तर भारत के एकमात्र संत थे जो शास्त्र आधारित प्रवचन देते थे और धर्म के विरुद्ध किसी भी विकृति को सहन नहीं करते थे। सन् 1936 में पूज्य श्री काशीराम जी महाराज के आचार्य पद के चादर सम्मान समारोह में उन्हें यह विशिष्ट उपाधि प्रदान की गई थी।

संत वाणी: आत्मा की निर्मलता का स्रोत:

पूज्य श्री विजय मुनि जी महाराज ने संतों की वाणी को गंगा की धारा की उपमा देते हुए कहा कि यह वाणी पाप रूपी मल को धोती है और आत्मा को शीतलता प्रदान करती है। उन्होंने भगवान महावीर के उपदेशों का स्मरण कराते हुए कहा “गौतम, क्षण मात्र भी प्रमाद न करो।” जीवन के क्षणिक सुखों से ऊपर उठकर संतों की संगति को जीवन का पारस बताया।

श्रद्धा के स्वर और तप की साधना:

इस अवसर पर उज्ज्वल जैन सीए ने पूज्य मदनलाल जी महाराज के प्रति अपने भाव व्यक्त किए। अंजु जैन ने बचपन में गुरुदेव के दर्शनों को सौभाग्य बताया। करनाल के एक श्रद्धालु ने गीत के माध्यम से गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की।

जाप, त्याग और तप का संकल्प:

धर्मसभा के अंत में गुरुदेव जय मुनि ने आज का जाप मंत्र “श्री अरनाथाय नमः” की माला का संकल्प दिलाया। साथ ही आज का त्याग काजू, किशमिश, करौंदा, झूठा न छोड़ें की शपथ दिलाई गई। तपस्या की श्रृंखला में श्रीमती सुनीता का 22वाँ, श्रीमती नीतू का 9वाँ, मनोज का 8वाँ, पीयूष का 4था और ध्रुव जैन का बेला उपवास जारी है।

यह आयोजन न केवल गुरु स्मरण का पर्व था, बल्कि धर्म, तप और वाणी की शक्ति का जीवंत अनुभव भी। जैन समाज के लिए यह दिन आध्यात्मिक ऊर्जा और प्रेरणा का स्रोत बनकर आया।