आप’ दिल्ली में हैट्रिक लगाने की तैयारी में है, तो भाजपा सत्ता विरोधी लहर, शीश महल, भ्रष्टाचार के आरोप को आधार बनाकर उसे रोकना चाहती है। कांग्रेस अपनी खोई जमीन को पाने की जद्दोजहद में जुटी है। सबसे दिलचस्प एवं रोमांचक इस चुनाव में देखना है दिल्ली की जनता किसके सिर पर ताज पहनाती है? पिछले 10 साल से आम आदमी पार्टी का दिल्ली की राजनीति पर एकछत्र आधिपत्य बना है। उसे लगातार दो चुनावों में 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। दो चुनावों से एक राष्ट्रीय पार्टी भाजपा के विधायकों की संख्या दहाई में नहीं पहुंच पाई है तो दूसरी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस का वोट प्रतिशत दो चुनावों से दहाई में नहीं पहुंच रहा है। दो चुनावों से कांग्रेस का खाता नहीं खुल रहा है। सवाल है कि क्या इस वार कांग्रेस का खाता खुलेगा? उसका वोट प्रतिशत दहाई में पहुंचेगा? क्या भाजपा के विधायकों की संख्या दहाई में पहुंच पाएगी? या कोई चमत्कार होगा, जैसा लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के पक्ष में हरियाणा और महाराष्ट्र में देखने को मिला है? केजरीवाल का तिलिस्म मूल रूप से तीन बातों पर टिका था। पहला, ईमानदार नेता, दूसरा आम आदमी और तीसरा मुफ्त की रेवड़ी। पिछले 10 साल में पहली दो धारणाएं तो निश्चित रूप से टूटी हैं। यह प्रमाणित हुआ है या यह धारणा बनी है कि केजरीवाल कोई ईमानदार या बाकियों से अलग नेता नहीं हैं।
राजधानी दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर है, क्योंकि यह 26 साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर है। इस बार भी भाजपा के चुनावी पोस्टर पर प्रधानमंत्री मोदी का चित्र छापा गया है। साफ है कि पार्टी के पास मुख्यमंत्री के चेहरे लायक कोई नेता नाहीं है। दूसरी तरफ केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (आप) लगातार चौथी बार सत्ता के लिए जनादेश मांग रहे हैं, लेकिन इन ‘कट्टर ईमानदार’ चेहरों पर भ्रस्टाचार के दाग भी उभर आए हैं।’ आप’ के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल समेत बड़े नेता, सांसद, विधायक जेल की हवा खा चुके हैं, इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और गांधी परिवार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है। वर्ष 2020 में, दिल्ली में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस को सिर्फ 4.25 प्रतिशत मत मिला था और यह एक भी सीट नहीं जीत पाई यी लेकिन इस बार कांग्रेस ने पूरी ताकत के साथ दिल्ली में विधानसभा चुनाव लड़ने का संकेत दिया है।
कांग्रेस आलाकमान ने नई दिल्ली विधानसभा सीट से आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को चुनावी मैदान में उतार कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। कांग्रेस के वोट बैंक को छीनकर ही आम आदमी पार्टी दिल्ली में मजबूत हुई है और अब अगर कांग्रेस अपने उस छीने हुए वोट बैंक के छोटे से हिस्से को भी वापस लेने में कामयाब हो जाती है तो फिर केजरीवाल सहित आप के सभी उम्मीदवारों के लिए दिक्कतें खड़ी हो जाएगी।
विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत के लिहाज से आम आदमी पार्टी बहुत आगे है। उसे 2015 के विधानसभा चुनाव में 54 फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिला और 2020 में उसने 53 फीसदी वोट हासिल किया। इसका मतलब है कि पांच साल के शासन के बाद उसका वोट आधार कायम रहा। दूसरी और भारतीय जनता पार्टी को 2015 में 34 फीसदी के करीब वोट मिले थे, जो बढ़ कर 2020 में 38 फीसदी पहुंच गया। भाजपा के वोट में चार फीसदी से कुछ ज्यादा की जी बढ़ोतरी हुई थी वह कांग्रेस के नुकसान की वजह से हुई थी। कांग्रेस को 2015 में नो फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिला था, जो 2020 में घट कर साढ़े चार फीसदी रह गया। सो कह सकते हैं कि कांग्रेस को साढ़े भार फीसदी वोट का जो नुकसान हुआ यह भाजपा के खाते में चला गया।
चुनाव का फैसला इस आधार पर होगा कि भारतीय जनता पार्टी अपने पारंपरिक वोट आधार में कितना गया वोट जोड़ती है? उसके साथ जो भी वोट जुड़ेगा वह आम आदमी पार्टी से ही टूट कर जुड़ेगा। उसको अगर चुनाव जीतना है तो दो स्तर पर काम करना होगा। पहला, कांग्रेस की ओर से आए चार से पांच फीसदी वोट को वापस कांग्रेस में जाने से रोकना होगा और दूसरा, आम आदमी पाटी का वोट तोड़ना होगा। कांग्रेस त्रिकोणात्मक मुकाबला बनाए तो भाजपा को फायदा होगा। इसके अलावा भाजपा की उम्मीदें इस बात पर टिकी हैं कि अरविंद केजरीवाल का तिलिस्म टूट रहा है। शराब नीति में हुए कथित घोटाले में केजरीवाल और मनीष सिसोदिया दोनों जेल गए, इससे उनके कट्टर ईमानदार हीने की धारणा प्रभावित हुई है। ऐसे ही अपने रहने के लिए एक सरकारी बंगले के रेनोवेशन पर 45 से 50 करोड़ रुपए खर्च करके ‘शीशमहल’ बनाने का जो प्रचार हुआ है उससे केजरीवाल की आम आदमी होने की धारणा खत्म हुई है।
अगर यह माना जाए कि इस बार कांग्रेस पार्टी अच्छा प्रदर्शन कर सकती है तो सवाल है कि यह भाजपा और आप में से किसका ज्यादा नुकसान करेगी? भाजपा से ज्यादा वह आम आदमी पाटी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में है। इसका एक कारण तो यह है कि 2013 में आम आदमी पार्टी से तालमेल करके उसकी सरकार बनवाने की जो गलती कांग्रेस ने की थी वैसी ही एक गलती आम आदमी पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में की।
राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के अच्छा प्रदर्शन करने से भी उसके पुराने वोट आधार का समर्थन उसके साथ लौटता दिखा है। खासकर मुस्लिम मतदाताओं में कांग्रेस के प्रति सद्भाव बना है, जो लोकसभा चुनाव में दिखा। इसे देखते हुए कांग्रेस ने दिल्ली में मुस्लिम पोट को ध्यान में रख कर अपनी बिसात बिछाई है। सो, कांग्रेस अगर चार से पांच फीसदी वोट का नुकसान भाजपा का करने में सक्षम है तो इतने ही वोट का नुकसान वह आम आदमी पार्टी की भी पहुंचा सकती है। इस तरह उसका वोट आधार दहाई में पहुंच सकता है। हालांकि इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि वह कितनी सीटें जीतेगी या किसको कितनी सीट हरा देगी।
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल अपनी और पार्टी के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई का डर दिखा रहे हैं? आतिशी और सिसोदिया को लेकर उन्होंने जो बयान दिया है उसका एक कारण यह लग रहा है कि तीनों नेता मुश्किल लड़ाई में फंसे हैं। उनके प्रति सहानुभूति के लिए केजरीवाल यह दांव चल रहे हैं।
वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेता दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेताओं पर निजी हमले बंद नहीं कर रहे हैं, बल्कि निजी हमले बढ़ते जा रहे हैं। चुनाव से पहले इस तरह के निजी हमलों से भाजपा को नुकसान हो सकता है। अरविंद केजरीवाल के ‘शीशमहल’ को लेकर राजनीतिक हमला ठीक है लेकिन उनके परिवार के ऊपर हमला नुकसान करेगा। इसी तरह मुख्यमंत्री आतिशी के ऊपर जो निजी हमले हो रहे हैं उनसे भी भाजपा की नुकसान हो सकता है। आतिशी के प्रति आम लोगों की सहानुभूति हो सकती है। भाजपा के साथ साथ कांग्रेस भी केजरीवाल को कठघरे में खड़ा कर रही है। दिल्ली में भाजपा ने होर्डिंग्स भी लगवाए हैं, जिनमें एक तरफ फेजरीवाल का पुराना वादा कोई बंगला नहीं लेंगे और दूसरी और 50 करोड़ की लागत से जिस बंगले का रिनोवेशन होने की खबर थी उसकी तस्वीर है।
केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव की राजनीति में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को भी घसीट लिया है। उन्होंने आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत को चिट्टी लिखी है, जिसमें उनसे चार सवाल पूछे हैं। केजरीवाल को लग रहा है कि इस बार मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की और रुझान दिखा रहे हैं तो केजरीवाल के लिए जरूरी है कि वे भाजपा से ज्यादा संघ का डर दिखाएं। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि केजरीवाल संघ और भाजपा में दूरी बढ़वाना चाहते हैं। नतीजा कुछ भी आए लेकिन प्रदेश की राजनीति में आप का एकछत्र आधिपत्य इस बार कमजोर होगा। इस चुनाव में परीक्षा सिर्फ इन राजनीतिक पार्टियों की नहीं, बल्कि दिल्ली के मतदाताओं की भी होगी कि ये अपनी समस्याओं के प्रति कितनी सजगता दिखाते हैं?
दिल्ली का मुख्य मुकावला अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी के बीच में होने जा रहा है। अरविंद केजरीवाल के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव, उनके अस्तित्व के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और निर्णायक चुनाव होने जा रहा है। अगर केजरीवाल दिल्ली का यह विधानसभा चुनाव जीत नहीं पाते हैं वो आम आदमी पार्टी पर उनकी पकड कमजोर हो जाएगी और साथ ही विपक्षी इंडिया गठबंधन में भी उनका दबदबा कमजोर होता चला जायेगा,
घोटाले के आरोप में जेल तक की यात्रा करने वाले अरविंद केजरीवाल यह बखूबी जानते और समझते हैं कि दिल्ली की हार एक बार फिर से उन्हें राजनीतिक रूप से अकेला बना देगी। वहीं दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी तीन दशक से सत्ता में आने की प्रतीक्षा कर रही है। दिल्ली का यह चुनाव राहुल गांधी के लिए फैसला करने वाला चुनाव होगा कि वह वाकई अपनी पार्टी कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं या फिर दिल्ली में इंडिया गठबंधन के एकता के नाम पर अपनी पार्टी कुर्बान कर देते है।
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