फ़िल्म समीक्षा: मुन्नी मुन्नी, लगिन लगिन करता मुंजया डराता कम और हँसाता ज्यादा है

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मुंजया के बारे में इतना सुनने के बाद देखने की इच्छा कल पूरी हुई क्योंकि मुंजया अब ओटीटी पर आ गई है। कोंकण, मराठी पृष्ठभूमि पर बनी यह हॉरर कॉमेडी भी निर्माता जोड़ी दिनेश विजान और अमर कौशिक की ही प्रस्तुति है जो स्त्री, रूही, भेड़िया और हालिया रिलीज स्त्री2 जैसी हॉरर कॉमेडीज के लिये जाने जाते हैं। निर्देशक हैं आदित्य सरपोतदार।

सबसे पहले तो टाइटल की बात करें तो फ़िल्म में ही बताया गया है कि किसी ब्राह्मण बच्चे के मुंडन के ग्यारह दिनों के भीतर उसकी मृत्यु हो जाए तो वह ब्रह्मराक्षस बनकर किसी पेड़ पर लटका रहता है। वह अपनी अतृप्त रह गई इच्छाओं की पूर्ति के लिये बेचैन रहता है। कोंकण लोककथाओं के अनुसार उसे ही मुंजया पुकारा जाता है। इस फ़िल्म में भी गोटया नाम का जिद्दी, गुस्सैल किशोर है जो अपने से सात वर्ष बड़ी लड़की मुन्नी को चाहता है और उसे किसी भी कीमत पर पाना चाहता है। वह मुन्नी के मंगेतर को चूहे मारने का जहर तक देता है तो उसकी आई उसे गुस्से से छड़ी से पीटती है और उसका मुंडन करा देती है। गोटया रात में अपनी बहन गीता को साथ लेकर स्थानीय चेतुकवाड़ी के जंगल में जाकर एक पेड़ के नीचे बने किसी लोकदेवता के पास काला जादू का अनुष्ठान करता है। जब गीता को पता चलता है कि उसका दादा उसकी बलि चढ़ाने लेकर आया है तो वह भागना चाहती है। हाथापाई में गोटया की गिरकर मौत हो जाती है और उसका रक्त देवता पर चढ़ जाता है। वह मरकर उसी पेड़ पर ब्रह्मराक्षस बन जाता है जिसे गाँव के पंडित बांध देते हैं कि वह वहाँ से कहीं और न जा सके।

इसके बाद कहानी दो पीढ़ी आगे जाती है और यहाँ से असली फ़िल्म शुरू होती है। फ़िल्म में मुंजया मुन्नी को पाने की अपनी अधूरी रह गई अंतिम और एकमात्र ख़्वाहिश के लिये क्या करता है, कैसे करता है यह सब फ़िल्म में देखिये। फ़िल्म का हीरो बिट्टू (अभय वर्मा) और हीरोइन बेला (शरवरी) की फ्रेश जोड़ी की केमिस्ट्री खूब जमी है। संदर्भ के लिये बता दूँ कि कुछ ही समय पहले रिलीज हुई महाराज फ़िल्म में भी शरवरी के काम को।पहचान और खूब प्रशंसा मिली है।

आजी के रोल में वरिष्ठ एक्ट्रेस सुहास जोशी बहुत अच्छी लगी हैं। ज्यादातर कलाकार भी मराठी ही हैं बस बिट्टू की पम्मी बनी मोना सिंह को छोड़कर जिन्होंने एक सिख महिला का किरदार निभाया है। और हाँ, फ़िल्म में वरिष्ठ तमिल अभिनेता सत्यराज भी हैं जो एक पादरी के रोल में कॉमेडी करते नज़र आए।

फ़िल्म का कुछ हिस्सा पुणे और बाकी किसी गाँव में फ़िल्माया दिखाया है। कोंकण का समुद्र तट और शानदार लोकेशंस ‘थ्री ऑफ अस’ की याद दिलाते हैं। विशेषकर चेतुकवाड़ी नाम से दिखाए जंगल के दृश्य बहुत ही रहस्यमय वातावरण क्रिएट करते प्रतीत होते हैं। फ़िल्म की कहानी एकदम अलग होते हुए भी महाराष्ट्रियन बैकग्राउंड के कारण ‘तुम्बाड’ भी याद आती है। हालाँकि तुम्बाड का तो कोई मुकाबला ही नहीं जो अब दर्शकों की मांग पर थियेटर पर रिलीज हो चुकी है। वो अब तक नहीं देखी तो देख डालिये। रौंगटे खड़े कर देने वाली फिल्म है। हर फ्रेम में खून जमा देने वाला हॉरर लेकिन बहुत ही दिलचस्प और शानदार पीरियड फ़िल्म।

वैसे फ़िल्म के अंत में एक लोकप्रिय हो चुके आइटम नम्बर ‘तरस नी आया’ के अतिरिक्त स्त्री और भेड़िया के किरदारों भास्कर (वरुण धवन) और जना (अभिषेक बनर्जी) को दिखाकर हॉरर यूनिवर्स का अहसास कराया गया जो एक सीरीज की तरह एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

बाकी हॉरर फिल्मों से डरने वाले लोगों को बता दूँ कि ये हॉरर कॉमेडी है। यहाँ मुन्नी मुन्नी, लगिन लगिन करता मुंजया डराता कम और हँसाता ज्यादा है, शायद यही फ़िल्म की सफलता का कारण भी है। बाकी मुंजया के लिये और अभय वर्मा की मासूमियत और शरवरी के चुलबुलेपन के लिये एक बार तो फ़िल्म देखना बनता है। मुंजया फ़िल्म डिज्नी हॉटस्टार पर उपलब्ध है।

-अंजू शर्मा