आर्टिकल 370, बॉलीवुड में अब मुख्य भूमिका में महिलाओं का वर्चस्व..

Entertainment
हिमांशु जोशी

फिल्म आर्टिकल 370 के ऊपर बहुत कुछ लिखा और बोला गया, इसे प्रोपेगेंडा फिल्म कहा जा रहा है। हाल ही के समय में विवादों में रहने वाली कई फिल्मों को हमने हिट होते हुए देखा है और आर्टिकल 370 भी इससे अलग नहीं रही, फ़िल्म अब तक सत्तर से अस्सी करोड़ रुपए के आसपास कमाई कर चुकी है। यह फिल्म प्रोपेगेंडा फिल्म है या नहीं और इस फिल्म में क्या खास है, कलाकारों ने कैसा अभिनय किया है, सब कुछ पढ़िए आर्टिकल 370 फ़िल्म की इस समीक्षा में।

सच्ची घटनाओं से जुड़ी कहानी और ऑनलाइन कोचिंग क्लास

फ़िल्म का प्लॉट सच्ची घटनाओं पर आधारित है और इसे आर्टिकल 370 लागू होने के आसपास की घटनाओं से रचा गया है। आर्टिकल 370 की कहानी को दिखाने के लिए फ़िल्म के निर्देशक ने एक नया तरीका अपनाया है, उन्होंने इस कहानी को 6 अध्यायों में बांटा है। पहले अध्याय से फ़िल्म की शुरुआत दर्शकों को फ़िल्म से बांधने वाली है पर दूसरे अध्याय से निर्देशक का फोकस सिर्फ आर्टिकल 370 को सही ठहराने पर लग गया है।

इसी के साथ फ़िल्म में नोटबन्दी जैसे विषय को भी सही ठहराने की कोशिश की गई है, जिसे देख किसी भी दर्शक को यह लगने लगेगा कि फ़िल्म एक प्रोपेगेंडा को ही पूरा कर रही है और उससे फ़िल्म से रुचि कम होते रहती है।

आर्टिकल 370 को लागू करवाने का प्रयास करते दिखाते फ़िल्म में फाइलों और पीपीटी के साथ होने वाली कुछ मीटिंग इस तरह दिखाई गई हैं कि उनसे दर्शकों को भी इसकी बारीकी समझ आ जाए पर यह सब इतनी ज्यादा देर तक दिखा दिया गया है कि यह किसी ऑनलाइन कोचिंग क्लास जैसा लगने लगता है। दर्शकों के लिए इस वजह से फ़िल्म देखना व्यर्थ लगने लगता है।

लचर पटकथा लेखन के बीच प्रभावित करता सम्पादन

पटकथा लेखन में घटनाओं के क्रम में थोड़ा रोमांच भरने के लिए जो भी मसाला डाला गया है, वो बिल्कुल प्रभावित नही करता है। जैसे एक महत्वपूर्ण दस्तावेज को खोज लाने के लिए लाइब्रेरी से जुड़ी घटना दिखाई गई है, यह हास्यास्पद लगती है। ऐसे ही सदन में बिल पेश होते वक्त उसके साथ ही कश्मीर में एक एक्शन से भरपूर घटनाक्रम चलते रहता है, यह भी फ़िल्म को बोझिल बनने से बचाने की एक नाकाम कोशिश साबित हुई है।

दिल्ली की पहचान सिर्फ इंडिया गेट से करवा लेना, स्क्रीन राइटर की योग्यता दिखाता है पर पूरी फिल्म में वह इस अच्छे लेखन को बरकरार नही रख पाए।

फ़िल्म में एक जगह कहा जाता है कि कभी पैसों के लालच कभी किसी पॉलिटिशियन के दबाव में अक्सर बच्चे पत्थरबाजी में शामिल हो जाते हैं, उसके अगले ही सीन में हमें एक नेता दिखाया जाता है। यह देख लगता है कि फ़िल्म के सम्पादन में पूरी मेहनत की गई है।

अब बॉलीवुड में महिलाओं को महत्वपूर्ण भूमिका और परिणाम भी सकारात्मक

फ़िल्म में कास्टिंग लिस्ट बहुत लंबी है। पिछले एक दो दशक में बॉलीवुड के अंदर सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि फिल्मों में मुख्य भूमिका महिलाओं को दी जाने लगी हैं। यहां भी मुख्य भूमिका में यामी गौतम और प्रियमणि नज़र आई हैं। एक सुरक्षा अधिकारी बनी यामी गौतम के ऊपर फ़िल्म में आर्टिकल 370 को लागू करवाने की अहम जिम्मेदारी है और इससे उनकी निजी जिंदगी भी प्रभावित होती है। यामी ने इस किरदार को पूरी शिद्दत के साथ निभाया है।

प्रियमणि ने फ़िल्म में एक महत्वपूर्ण पद में रही महिला का किरदार निभाया है। यह किरदार फ़िल्म में सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण नजर आता है, जैसे गृहमंत्री, प्रधानमंत्री से मिलने जाते जो गम्भीरता व्यक्ति के चेहरे पर नजर आनी चाहिए, उसे प्रियमणि से बेहतर शायद ही कोई निभा सकता। यामी गौतम और प्रियमणि के बीच के कई दृश्य महत्वपूर्ण हैं।

प्रधानमंत्री के किरदार में हमें इंडियन टेलीविजन के बड़े नाम अरुण गोविल नजर आए हैं। अरुण गोविल का फ़िल्म में कैमरा के सामने बहुत कम वक्त गुजरा है पर फिर भी इतने समय में प्रधानमंत्री पद की गरिमा के साथ उन्होंने अपने अभिनय से न्याय किया है।

इरावती हर्षे भी फ़िल्म की कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं और उन्हें देख हम फिर से फिल्मों के महत्वपूर्ण किरदारों में महिलाओं के वर्चस्व को देख सकते हैं।

फ़िल्म की इस लंबी स्टार कास्ट में सुरक्षा अधिकारी के रूप में दिखे राज अर्जुन ने भी अपने अभिनय से प्रभाव छोड़ा है। राज अर्जुन में मनोज बाजपेयी और इरफान खान जैसे अपनी आंखों से काफी कुछ कहने की क्षमता दिखती है।

संवादों में राजनीति

आर्टिकल 370 के संवादों से कई जगह लगता है कि फ़िल्म कश्मीर और केंद्र सरकार के मध्य की खाई को हमारे सामने लाने का प्रयास है, जैसे फ़िल्म में एक संवाद है ‘हमारी बात सीधे दिल्ली से हो चुकी है, अब हमें जो कुछ भी सहूलियत चाहिए, हम उनसे मांग लेंगे। अब आपसे भीख मांगने के दिन गए’।

इसी तरह ‘कश्मीर की पॉलीटिकल स्टेबिलिटी इस वक्त देश का सबसे बड़ा नेशनल सिक्योरिटी कंसर्न है’ संवाद भी सुनने को मिलता है, जिससे देश के बाकी सभी मुद्दों के बीच कश्मीर के मुद्दे को सबसे महत्वपूर्ण दर्शाने की कोशिश दिखती है।

फ़िल्म में राजनीतिक गलियारों से जुड़े दमदार संवाद भी हैं जैसे ‘आपको याद है जलाल साहब आपके और हमारे अब्बा के बीच फाइनेंस मिनिस्ट्री के चक्कर में सरकार बनते बनते रुक गई थी, जलाल- पुरानी बातें भूल जाइए, झेलम में कितना पानी बह चुका है तब से।

प्रभावित करने वाला बैकग्राउंड स्कोर और छायांकन

आर्टिकल 370 का बैकग्राउंड स्कोर इसकी कहानी की गति को तेज आगे बढ़ाने में सहायक लगा है। यामी गौतम जब दिल्ली से वापस जम्मू कश्मीर लौटती हैं, तब बज रहा बैकग्राउंड स्कोर इसका प्रमाण है। फ़िल्म के छायांकन में कई जगह ड्रोन कैमरे का सफल प्रयोग किया गया है। एक दृश्य में दो तरफ से हो रही गोलीबारी में वीएफएक्स का प्रयोग शानदार तरीके से किया गया है।

पुलवामा हमले वाला दृश्य भावुक कर देता है और इसको ऐसा बनाने में ‘मैं तुझे फिर मिलूंगी’ गीत बड़ा प्रभाव डालता है।

-हिमांशु जोशी।


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