ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मदरसों से संबंधित फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि मदरसों के जरिए अल्पसंख्यक समुदाय के लाखों बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे थे, अब वो अंधकार में चले जाएंगे। मदरसों का वजूद खतरे में डालने के लिए सपा सरकार को वह जिम्मेदार मानते है। अगर सपा सरकार ने मदरसा एजूकेशन एक्ट नहीं बनाया होता और अरबी फारसी बोर्ड खत्म न किया होता तो आज ये दिन न देखने पड़ते।
2004 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने एक्ट बनाया
मौलाना ने कहा कि 2004 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने एक नया एक्ट बनाया। जिसका नाम मदरसा एजूकेशन एक्ट रखा गया, अब यहां पर जो सबसे बड़ी सपा सरकार की तरफ से गलती की गई वो मदरसा के शब्द को लाकर हुई, मदरसे का शब्द आते ही धार्मिक शिक्षा का नाम जुड़ जाता है, चूंकि हमारा देश का ढांचा लोकतांत्रिक, जम्हूरि है किसी भी धर्म को बढ़ावा देने का भारतीय संविधान में कोई भी प्रिंसिपल वसूल नहीं है, इसलिए जहां भी धार्मिक शिक्षा का नाम आएगा तो वहां पर हुकूमत की संस्थाएं जरूर सवाल खड़ी करेगी, बिल्कुल इसी तरह यहां पर भी मदरसों के बारे में सवाल खड़ा हुआ।
बोर्ड खत्म न किया होता तो आज ये दिन न देखना पड़ता
मौलाना ने कहा अब मदरसों को एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है, इनको चलाना और बाकी रखना बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है। मैं तो साफ तौर पर मदरसों की दूर दशा के लिए समाजवादी पार्टी की सरकार को जिम्मेदार मानता हूं, अगर सपा सरकार ने मदरसा एजूकेशन एक्ट नहीं बनाया होता और अरबी फारसी बोर्ड खत्म न किया होता तो आज ये दिन न देखने पड़ते।
और दूसरे नम्बर पर मदरसों से वाबस्ता मजहबी कयादत (धार्मिक नेतृत्व) भी जिम्मेदार है, इस मजहबी कयादत ने महीनों चलने वाले कोर्ट की बहस में अपना वकील नहीं खड़ा किया सही से पोरोकारी भी नहीं की, बड़े- बड़े मदरसों के जिम्मेदारान चाहे वो सुन्नी हो या दयोबंदी वो खामोश तमाशही बने रहे। मदरसों की दूर दशा में सिर्फ भाजपा सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता, मजहबी कयादत को जिम्मेदारी लेनी होगी।
-एजेंसी
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