वाइल्डरनेस से भरपूर है ‘बेरा के शहंशाओं’ का आशियाना: हारविजय सिंह बहिया

विविध

बेहद फुर्तीला होता है तेंदुआ (leopard)

श्री वाहिया ने बताया कि चालाक और फुर्तीले तेंदुए के स्वच्छंद आचरण का  अध्ययन और फोटोग्राफी सहज नहीं है, कई साल के लगातार अध्ययन क्रम के बाद अब वह जान सके हैं कि तेंदुए का वन जीव के रूप में स्वाभाविक आचरण , उसकी क्या जरूरतें हैं ।लेकिन इसके लिए उन्हें तेंदुए की प्राकृतिक रूप में मौजूदगी वाले आगरा के निकट  बेरा(राजस्थान के पाली जिले की बाली तहसील)  के जंगलों में लगातार घूमना पडा तमाम असुरक्षित स्थितियों का सामना करना पड़ा ,जिनमें से ज्यादातर जिंदगी के लिये अपने आप में चुनौती रहीं।

श्री वाहिया का कहना है कि तेंदुए के इस अध्ययन अभियान में केवल कैमरे के साथ कई कई दिन तक सडक विहीन उस जंगल में खूब भटके। उनके लिये हर पल आत्मबल बढ़ाने  और प्रकृति की महिमा का अहसास वाला था। तेंदुआ एक निहायत फुर्तीला और अपनी  असुरक्षा को भांप तत्काल पैंतरे बदलते रहने वाला वन्य जीव है।इस लिये उसे कैमरे में कैद करना कभी आसान नहीं रहा।

खुली जीप का कुशल और ट्रिकी चालन तथा कैमरे को किसी भी पल के लिये तैयार रखना इस अध्ययन अभियान में नियमित रहा। सुबह चार बजे से जंगल में निकल जाने और सड़क शून्य स्थितियों में भटकना अपने आप में एक ऐसा अनुभव है,जिसके रोमांच का रहा अनुभव अपने आप में एक यादगार है।

वाइल्डरनेस से भरपूर है ‘बेरा के शहंशाओं’ का आशियाना

संवाद के दौरान श्री वाहिया ने बेरा गांव के जंगलों में बनाये विडियो और खींचे गये  फोटोग्राफों का भी प्रदर्शन किया। मल्टी मीडिया पर किया गया यह प्रदर्शन उन सभी के लिये अत्यधिक प्रेरक रहा जो कि जंगल और वन्य जीवों से लगाव रखते हैं। श्री वाहिया का वाइल्ड लाइफ से  लगाव 5 साल की उम्र से है,उन्होने अपने अफ्रीका प्रवास के समय हाथी, बाबून और कई जानवरों का सामना किया है।

श्री वाहिया ने प्रदर्शन के दौरान ही अपनी भावी योजना के बारे में बताते हुए कहा कि वह शीघ्र ही तेदुओं के रोमांच भरे अभियान को एक किताब के रूप में सामने लायेंगे। फोटुओं से भरपूरता वाली यह किताब हालांकि आत्म संतुष्टि के लिये ही लिख रहे हैं ,लेकिन अगर फोटोग्राफी और वन्यजीव क्षेत्र से जुड़े अध्ययनकर्ताओं के उपयोग में भी यह आ सके तो उन्हे खुशी होगी और वह अपने प्रयास को भविष्य के लिये अधिक प्रेरक मानेंगे। तेंदुओं (leopard) के जीवन को निकटता से देखना उनके लिए उन तमाम सटीक जानकारियों से रू ब रू करवाने वाला रहा है,जो कि विपरीत स्थितियों में तमाम वन्यजीवों के लिए उनकी जिंदगी का हिस्सा होते हैं।

रबारी जनजाति और लेपर्ड बड़े आराम से रहते हैं, रबारी पुरुष लाल पगड़ी पहनते हैं, उनको ट्रिबूट देने के लिए श्री वाहिया ने भी लाल टोपी पहनने शुरू किया है।

कोविड 19 की आपदा को बनाया अवसर

उल्लेखनीय है कि श्री हरविजय सिंह वाहिया आगरा वालों के लिये नये नहीं हैं,मोटर स्पोर्ट्स क्षेत्र में तो उनकी इंटरनेशनल पहचान है। वह कुछ न कुछ ऐसा नया करते रहते हैं जो उनके लिए भले ही स्वंत सुखाय ही हो किंतु युवाओं के लिये तो सकारात्मक दिशा में सक्रियता के  प्रेरक ही होता है।कई साल तक चले कोरोना काल (covid-19) की हताशा के माहौल में श्री वाहिया ने फोटो ग्राफी का अध्ययन किया और दक्षता हासिल की। हालांकि इससे पूर्व भी वह भरतपुर की केवलादेव बर्ड सेंचुरी और कीठम स्थित सूर सरोवर बर्ड सेंचुरी जा कर चिडियों फोटोग्राफ करते रहे थे।

अपने अध्ययन और शौक को पूरा करने के लिये उन्होंने फोटोग्राफी संबंधित साहित्य मंगवाया साथ ही आधुनिक उपकरण भी खरीदे। स्थापित मित्र फोटों ग्राफरों के सुझाव पर मंगवाए इन उपकरणों में से कई तो ऐसे हैं जो कि आगरा में बहुत कम फोटोग्राफरों के पास होंगे।

प्रकृति को कैमरे में कैद करने का शौक

कोरोना काल समाप्त हो जाने के बाद उनके फोटुओं की उत्कर्षता को फोटो ग्राफी और मीडिया जगत में ख्याति मिली। श्री वाहिया की हमेशा कुछ नया और अद्वितीय करने की प्रवृत्ति रही है, शायद यही कारण रहा होगा कि उन्होंने अपनी फोटोग्राफी और अध्ययन को कुछ समय से तेंदुओं के अध्ययन पर केंद्रित किया हुआ है।राजस्थान के पाली जिले की बाली तहसील के बेरा स्थित गांव में तेंदुओं की वन्यजीव के रूप में मौजूदगी है, वे यहां के बन क्षेत्र में  स्वच्छाचरण करते हैं, उनकी जीवन शैली पूरी तरह से प्राकृतिक है। चूंकि तेंदुओं पर देश में बहुत कम शोध और मौलिक काम हुआ है।यह कमी शायद श्री वाहिया के अध्ययन अभियान के किताब के रूप में आने के  बाद दूर हो जायेगी।

फोटोग्राफी क्षेत्र में भी अपेक्षायें

सिविल सोसायटी ऑफ  आगरा के सेक्रेटरी और छांव फाऊंडेशन के एडवाज़री  बोर्ड के मेम्बर अनिल शर्मा ने कहा कि श्री हरविजय सिंह वाहिया को अपने बीच पाकर हम अभिभूत हैं। कार रैलियें में भाग लेकर उन्होंने आगरा का नाम रोशन किया है। मोटर रैली क्षेत्र में  उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान है। अब वह वन्यजीव अध्ययन कर किताबें लिखने के कार्य में जुड़े हुए हैं, निश्चित रूप से आने वाले वक्त में वह जंगल,वन्यजीव क्षेत्र क लेखक के रूप में भी स्थापित नाम होंगे। यही नहीं उनके फोटोग्राफ देश विदेश की प्रदर्शनियों में विशिष्ट आकर्षण होंगे।

एसिड पीड़िताओं के लिये प्रेरक

पूर्व में  छांव फाउंडेशन के डायरेक्टर आशीष शुक्ला ने कहा कि श्री हरविजय सिंह वाहिया हमेशा सक्रिय रहते हैं। उनके बारे में अक्सर मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारियां सामने आती रहती हैं। हर्ष का विषय है कि आज वह स्वयं अपने साहसिक अभियानों के बारे मे बताने के लिये हम सब के बीच मौजूद हैं। निश्चित रूप से ‘एसिड सर्वाइवर ‘युवतियों के लिये भी उनके शौक और साहसिक अभियान प्रेरक हैं। श्री शुक्ला ने कहा कि यह संगोष्ठी ज्ञानवर्धक होने के साथ साथ ही एसिड पीड़ितों की सामाजिक सरोकारों से संवाद शून्यता को समाप्त करने वाला आयोजन है।उन्हों ने कहा कि फाउंडेशन ‘आगरा को बेहतर बनाने’ के अभियान में अहम भूमिका हो सकती है और इसके लिये संवाद का आयोजन निश्चित रूप में महत्वपूर्ण अवसर होता है।

आज के संवाद में ब्रिग. विनोद दत्ता, महेश शर्मा, सुधीर नारायण, असलम सलीमी, राम मोहन कपूर, डॉ. मधु भारद्वाज, देविका बहिया, गोपाल सिंह, आशीष भाटिया, अनिल शुक्ला,अखिलेश दुबे, वत्सला प्रभाकर, शीला बेहल, हर्षदीप उप्पल, विक्रम शुक्ल, अजय कक्कड़, वेदपाल धार, डॉ. प्रियम अंकित, प्रीति कुमारी, सुदेश कुमार, स्वाति मिश्रा, वेद त्रिपाठी, प्रो. आशीष कुमार, वंदना तिवारी, बी के शर्मा, मनोज टेंगुरिया, मीना कुमार, एम के सक्सेना, प्रवीण शर्मा, मनीषा शुक्ल, कवि अनिल कुमार शर्मा, शाहीन मज़ाज खान, आरजे अर्जुन,अंटिनिए एरुम आदि उपस्थित रहे।

अनिल शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन किया और आशीष शुक्ल ने  धन्यवाद दिया।


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