परवरिश: आपको देखकर व सिखाने पर ही बच्‍चे सीख सकते हैं शालीनता का व्‍यवहार

Life Style

खेलते समय गेंद को किक मारना, किसी पक्षी या प्राणी की आवाज़ निकालना या किसी की तरह बात या व्यवहार करना (नक़ल करके) बच्चे हमउम्रों से भी सीखने लगते हैं, लेकिन अपनी बारी पर ही पहल करना, कही हुई बात या निर्देश का पालन करना या सवाल का सही जवाब देना अभिभावकों को देखकर या उनके सिखाने पर ही बच्चे सीख सकते हैं। इसे सकारात्मक परवरिश कहते हैं।

दो-तीन साल की उम्र ऐसी होती है, जब बच्चे बहुत तेज़ी से सबकुछ सीखना और करना चाहते हैं। कभी हड़बड़ी में काम ख़ूब बिगाड़ भी देते हैं। इसीलिए उन्हें सुकून से काम करने की समझ देते समय अभिभावकों को भी ख़ूब सारा धैर्य रखना होगा। यह भी ध्यान रखें कि जो बच्चे ने सीख लिया, जिसका 4-5 साल की आयु तक ख़ूब अभ्यास कर लिया, वही उसके व्यक्तित्व में आकार ले लेगा।

ये हैं सकारात्मक परवरिश के चरण 

अनुशासन

किताब पढ़कर सुनाने या कहानी कहने का एक समय तय कीजिए और उस समय का पूरी प्रतिबद्धता से पालन कीजिए। यह बच्चे की पढ़ाई, अक्षरों से लगाव व भाषा ज्ञान की तरफ़ बढ़ने का अहम क़दम होगा।

आप भी ध्यान दें… घर के बड़े भी अख़बार, किताबें आदि पढ़ें। टीवी, सोशल मीडिया से दूर रहें। बच्चे बड़ों के कहने के साथ ही उनके करने का भी अनुसरण करते हैं, यह याद रखें। बच्चे को पढ़ने के लिए कहकर ख़ुद मोबाइल पर सोशल मीडिया में खोए रहने वाले अभिभावक बच्चे को अनुशासित नहीं कर सकते।

भूमिकाएं निभाना

अपने बच्चे को उन लोगों की ख़ास बातों पर ध्यान देने और उनके क्रियाकलापों का सकारात्मक अभिनय करने को कहें, जिन्हें वे रोज़ देखते हैं जैसे सब्ज़ी वाला, कबाड़ी वाला, माली आदि। विभिन्न आवाज़ों से भी परिचय कराएं। यह बच्चे को अपने माहौल और उसकी समझ तथा दूसरों के प्रति सम्मान रखने में मदद करेगा।

इस बात का ध्यान रखें... किसी भी व्यक्ति का मज़ाक बनाता हुआ अभिनय न कराएं। न ही किसी तरह की रील बनाने की कोशिश करें। किसी को नीचा दिखाने या उसकी खिल्ली उड़ाने की शुरुआत इसी उम्र से होती है, जब अभिभावक बच्चों से ‘दादी जी कैसे चिल्लाती हैं’ या ‘दादा जी कैसे खर्राटे लेते हैं’ का अभिनय कराकर वीडियो बनाकर दोस्तों से साझा करते हैं। ऐसा करने से बड़े होकर मज़ाक उड़ाने, चिढ़ाने या सताने वाले बच्चों में आपके बच्चे का नाम भी शुमार होगा।

अन्वेषण

अपने बच्चे के साथ घूमने जाएं। उसे अपने बाग़ीचे, मोहल्ले, क्षेत्र, शहर आदि के बारे में थोड़ा-थोड़ा बताते रहें। इससे उसकी सजगता बढ़ेगी।

परिचय ज़रूरी है… अक्सर बच्चे अपने माहौल, शहर या स्कूल-कॉलेज आदि को पसंद नहीं करते। उनकी शिक़ायतें करते रहते हैं क्योंकि उन्होंने अपने माहौल को ठीक से नहीं जाना होता है। अच्छाइयां ग़ौर करने से दिखाई देती व समझ में आती हैं।

संवाद

बच्चे में बैठकर बातें करने की आदत विकसित करें या चलते हुए भी करें, तो बच्चे का पूरा ध्यान संवाद की ओर रखें। उसका नाम, उम्र, घर का पता आदि पूछें। सुनिश्चित करें कि वो आपकी बात ध्यान से सुन रहा हो और सही जवाब दे। बात अधूरी छोड़कर भागने का अवसर या छूट न दें।

बेहद ज़रूरी कौशल है… संवाद करना, बात सुनने और कहने के संतुलन का नाम है। इससे अहम जीवनोपयोगी कौशल कोई और नहीं है।

भाषा ज्ञान

बच्चे को छोटी-छोटी कविताएं सिखाएं और उसे प्रोत्साहित करें कि वो रोज़ उन्हें दोहराए। हिंदी, अंग्रेज़ी के साथ ही अगर मातृभाषा अलग है, तो उसकी कविताएं भी सिखाएं। बच्चे को प्रोत्साहित करें कि वो अपनी भाषा भी लिखना और पढ़ना सीखे।

बौद्धिक क्षमता का विकास… विज्ञान साबित कर चुका है कि जितनी भाषाओं का ज्ञान बच्चे को होता है, वह उतनी ही कुशाग्र बुद्धि पाता है।

निर्देशों का पालन

अपने घर के सदस्यों या दोस्तों के साथ ट्रेन बनाकर खेलें ताकि बच्चा उस क्रम में चलना सीखे। उसे छोटे-छोटे निर्देश दें जिनका उसे पालन करना हो। जो करना है, उसकी वजह बताते जाएं, उसकी जिज्ञासाओं को सुनें और शांति से समझाएं ताकि वो पालन करने में चूक न करे।

क्यों आवश्यक है यह… हर व्यक्ति चाहता है कि उसका बच्चा हर जगह नेतृत्व करे, लोग उसका अनुसरण करें, लेकिन नेतृत्व करना सीखने से पहले उसे कतार में चलना होगा ताकि राह समझ में आए। जो ख़ुद किसी बात का पालन नहीं कर सकता, वो पालन करने को कह भी कैसे सकेगा?

नाराज़ कैसे हों

बच्चों को उसके अच्छे कार्यों पर प्रोत्साहित किया जाता है, तो वो ख़ुश होते हैं, लेकिन अगर उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ कुछ होता है, तो इस उम्र के बच्चे चीखने-चिल्लाने लगते हैं। उन्हें सिखाएं कि अगर उन्हें कुछ ठीक नहीं लग रहा है, वे नाराज़ हैं, तो उसे कैसे अभिव्यक्त कर सकते हैं जिससे दूसरों को बुरा या अभद्र न लगे।

शालीनता… अपनी नाराज़गी या असहमति ज़ाहिर करने का सभ्य तरीक़ा बता देता है कि घर का माहौल कैसा है। किसी भी इंसान के नाराज़ होने पर जो भाषा उसकी ज़बान से निकलती है, वो उसके परिवार के बारे में सारे सच उजागर कर देती है। पता चल जाता है कि असहमत होने या अपनी राय रखने की उसे घर में कितनी आज़ादी मिली है या घर के लोग कितने सहनशील हैं। इसलिए असहमत होने के तरीक़ों की सही अभिव्यक्ति सिखाना व्यक्तित्व िनर्माण का अहम पहलू है।

-एजेंसी


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