इस्लाम के गढ़ सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुई खुदाई में 8000 साल पुराना मंदिर और यज्ञ वेदी मिला है. इसके बाद फिर सऊदी अरब में मूर्ति पूजा पर चर्चा शुरू हो गई है. कई इतिहासकार दावा कर चुके हैं कि सऊदी अरब का मूर्ति पूजा से पुराना कनेक्शन रहा है.
इस्लाम के गढ़ सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुई खुदाई में 8000 साल पुराना मंदिर और यज्ञ वेदी मिला है. यहां ऐसे अवशेष मिले हैं जिन पर देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं. यह जानकारी सामने आने के बाद एक बार फिर सऊदी अरब में मूर्ति पूजा पर चर्चा शुरू हो गई है. यह बात भले ही अब सामने आई है, लेकिन कई इतिहासकार दावा कर चुके हैं कि सऊदी अरब का मूर्ति पूजा से पुराना रिश्ता रहा है.
उन्होंने लिखा है कि यहां मूर्ति पूजा होती थी, हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिर थे. काबा और भगवान शिव का कोई न कोई जुड़ाव है. इतिहासकारों के नजरिये समझिए क्या है इसका पूरा सच…
भगवान शिव और मक्का के काबा का मूर्ति कनेक्शन
इस्लाम में मक्का में मौजूद काबा को पवित्र स्थान बताया गया है. पहली शताब्दी के रोमन इतिहासकार द्यौद्रस सलस के मुताबिक, भगवान शिव और काबा का प्राचीन जुड़ाव है. हालांकि गैर-इस्लामिक इंसान के काबा जाने पर प्रतिबंध है. हज के दौरान इस्लाम को मानने वाले इस काबा को पूजते हैं और चूमते हैं. कई लोग इसे शिव का रूप भी मानते हैं. कहा जाता है कि आज मक्का जिस जगह पर है वहां पहले मक्केश्वर महादेव का मंदिर था. इसी जगह काले पत्थर के रूप में विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में मौजूद है. रोमन इतिहासकार की बात मूर्ति पूजा की बात को बल देती है.
काबा और शिवलिंग दोनों मेटल से घिरे
भारतीय इतिहासकार पीएन ओक अपनी किताब में लिखते हैं कि मक्का में इस्लाम पहुंचने से पहले मूर्ति पूजा का इतिहास रहा है. उनके मुताबिक, कभी यहां पर हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिर थे. कहा जाता है कि यूनान और भारत में मूर्ति पूजा होती रही है, इसका असर सिर्फ इन्हीं देशों तक सीमित नहीं रहा. यह परंपरा दूसरे देशों से होते हुए सऊदी अरब भी पहुंची.
मक्का के जिस पत्थर को भगवान शिव का रूप जाता है, इस्लाम अनुयायी उसे नहीं मानते. मुसलमानों का मानना है कि यह पत्थर आदम और ईव के साथ जन्नत से यहां तक आया. इस पत्थर के चारों ओर मेटल जड़ा हुआ है, जैसे शिवलिंग के चारों तरफ जलाधरी स्टैंड नजर आता है.
जब काबा में अलग-अलग ईश्वर की पूजा शुरू की गई
बीबीसी की रिपोर्ट कहती है, मक्का में हर साल हजारों की संख्या में मुसलमान पहुंचते हैं और अल्लाह के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करते हैं. समय के साथ यह शहर विकसित होता गया. कभी यहां अलग-अलग ईश्वर की पूजा की जाती थी. पैगंबर अब्राहम ने इस जगह का निर्माण कराया. इसके बाद यहां मूर्तियां रखी जाने लगीं. मुसलमानों का कहना है, अल्लाह ने पैगंबर हजरत मोहम्मद से काबा को पहले जैसी स्थिति में लाने की बात कही. इस तरह वहां केवल अल्लाह की इबादत करने की बात कही गई. साल 628 में 1400 अनुयायियों के साथ पैगंबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ पहली बार यहां की यात्रा की.
दत्त ब्राह्मणों की कॉलोनी
साल 680 में इमाम हुसैन मदीना को छोड़कर मक्का पहुंचे. वो यहां हज करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें पता चला कि उनके दुश्मन उनका कत्ल करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने अपना इरादा बदल दिया, लेकिन वो नहीं बच पाए. उन्हें दुश्मनों की फौज ने कर्बला लाकर शहीद कर दिया गया.
इमाम हुसैन और भारत के एक हिंदू राजा राहिब दत्त दोनों की गहरी दोस्ती थी. कहा जाता है कि राहिब दत्त के कोई औलाद नहीं थी. उन्होंने इमाम हुसैन से कहा कि आप ईश्वर से मेरे पिता बनने की दुआ करें. ऐसा होने पर उन्होंने अल्लाह से दुआ की और कुछ ही सालों में राहिब दत्त 7 लड़कों के पिता बने.
जब राहिब दत्त को इमाम हुसैन के बारे में जानकारी मिली तो वो भी भारत से मक्का पहुंचे. वह परिवार, 72 अनुयायियों और सातों बेटों के साथ कर्बला की जंग में शहीद हो गए. इन्हें इतिहास में हुसैनी ब्राह्मणों के नाम से जाना गया. दिग्गज अभिनेता सुनील दत्त भी हुसैनी ब्राह्मणों के वंशज रहे हैं. मक्का में दत्त ब्राह्मणों की कॉलोनी भी रही है.
-एजेंसी