23 सितंबर को हर साल इजरायल में मनाया जाता है Haifa दिवस, भारत के लिए भी है ख़ास

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23 सितंबर को हर साल इजरायल में Haifa दिवस मनाया जाता है और भारतीय सेना भी इस दिन को हाइफा दिवस के रूप में मनाती है।

Haifa इजरायल का एक प्रमुख शहर है जिसको तुर्कों के कब्जे से आजाद कराने में भारतीय सैनिकों ने अहम भूमिका निभाई थी।

माना जाता है कि इजरायल की आजादी का रास्ता Haifa की लड़ाई से ही खुला था जब भारतीय सैनिकों ने सिर्फ भाले, तलवारों और घोड़ों के सहारे ही जर्मनी-तुर्की की मशीनगन से लैस सेना को धूल चटा दी थी। इस युद्ध में भारत के 44 सैनिक शहीद हुए थे। हाइफा को चूंकि 23 सितंबर को ही आजाद कराया गया था इसलिए इस दिन को हाइफा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। आइए इस युद्ध की रोचक कहानी आपको बताते हैं-

ब्रिटिश सेना की मदद के लिए गई भारतीय सेना

हाइफा में ब्रिटिश सेना की मदद के लिए भारत से सैनिकों को भेजा गया। उसमें हैदराबाद, मैसूर और जोधपुर से सैनिकों को भेजा गया। हैदराबाद के सैनिकों को युद्धबंदियों की देखभाल के काम पर लगाया गया जबकि मैसूर और जोधपुर के सैनिकों को मिलाकर एक खास यूनिट बनाई गई। उस यूनिट को हाइफा को आजाद कराने का काम सौंपा गया।

हाइफा पर तुर्की का कब्जा

इजरायल के शहर हाइफा पर तुर्की साम्राज्य का कब्जा था। हाइफा को आजाद कराने के लिए जो ब्रिटिश सेना वहां पहुंची थी, उसकी मदद के लिए जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद से सैनिकों को भेजा गया।

हैदराबाद के निजाम ने जिन सैनिकों को भेजा था, उनको युद्ध बंदियों के प्रबंधन और देखरेख का काम सौंपा गया। मैसूर और जोधपुर की घुड़सवार सैन्य टुकड़ियों को मिलाकर एक खास यूनिट बनाई गई जिसने हाइफा को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई।

दलपत सिंह शेखावत

हाइफा युद्ध के नायक थे दलपत सिंह शेखावत। हाइफा के युद्ध में भारतीय सैनिकों के दल का नेतृत्व जोधपुर के मेजर दलपत सिंह शेखावत ने किया था। शहर को आजाद कराने में अहम भूमिका के लिए मेजर दलपत सिंह को ‘हीरो ऑफ हाइफा ‘ के तौर पर जाना जाता है। उन्हें उनकी बहादुरी के लिए मिलिटरी क्रॉस से सम्मानित किया गया। भारतीय सैनिकों का मुकाबला तुर्की, ऑस्ट्रिया और जर्मी की सेना से था जिनके पास आधुनिक हथियार, तोप, बम, बंदूक टैंक आदि थे।

दूसरी तरफ भारतीय सैनिक थे जिनके पास हथियार के नाम पर सिर्फ तलवार और भाला था। उन घुड़सवार सैनिकों ने सिर्फ तलवार और भाला के दम पर ही अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित दुश्मन सेना का सामना किया और उनको परास्त किया।

दुश्मन से डर गई ब्रिटिश सेना, पर भारतीय डटे रहे

हाइफा पहुंचने के बाद ब्रिटिश सेना को पता चला कि दुश्मन तो काफी मजबूत और ताकतवर है। फिर ब्रिटिश सेना के ब्रिगेडियर जनरल ने अपनी सेना को वापस बुला लिया लेकिन इस पर भारतीय सैनिकों ने ब्रिगेडियर जनरल के आदेश का विरोध किया। भारतीय सैनिकों ने कहा कि हम यहां लड़ने के लिए आए हैं और बगैर लड़े लौटना हमारा अपमान होगा। अंत में उनकी जिद के आगे ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल को झुकना पड़ा और उनको हाइफा पर हमले की अनुमति दे दी।

​…और भारतीय सैनिकों ने दिखाया पराक्रम, हाइफा को कराया आजाद

रवि कुमार की पुस्तक ‘इजरायल में भारतीय वीरों की शौर्यगाथा’ में इस युद्ध का विवरण कुछ यूं किया गया है, 23 सितंबर 1918 को सुबह में भारतीय घुड़सवार और पैदल सैनिकों ने हाइफा की ओर बढ़ना शुरू किया। वे तलवार और भालों से सुसज्जित थे। भारतीय सेना का मार्ग माउंट कार्मल पर्वत श्रृंखला के साथ लगता हुआ था और किशोन नदी एवं उसकी सहायक नदियों के साथ दलदली भूमि की एक पट्टी तक सीमित था। जैसे ही सेना 10 बजे हाइफा पहुंची, वह माउंट कार्मल पर तैनात 77 एमएम बंदूकों के निशाने पर आ गए। परंतु, भारतीय सेना का नेतृत्व कर रहे जवानों ने यहां बहुत सूझबूझ दिखाई।

मैसूर लांसर्स की एक स्क्वाड्रन शेरवुड रेंजर्स के एक स्क्वाड्रन के समर्थन से दक्षिण की ओर से माउंट कार्मल पर चढ़ी। उन्होंने दुश्मनों पर अचानक हैरान कर देने वाला हमला कर कार्मल की ढलान पर दो नौसैनिक तोपों पर कब्जा कर लिया। उन्होंने दुश्मनों की मशीनगनों के खिलाफ भी वीरता के साथ आक्रमण किया। उधर, 14:00 बजे ‘बी’ बैटरी एचएसी के समर्थन से जोधपुर लांसर्स ने हाइफा पर हमला किया। मजबूत प्रतिरोध के बावजूद भी लांसर्स ने बहादुरी के साथ दुश्मनों की मशीनगनों पर सामने से आक्रमण किया। 15:00 बजे तक भारतीय घुड़सवारों ने उनके स्थानों पर कब्जा कर तुर्की सेना को पराजित कर हाइफा पर कब्जा कर लिया।

इजरायल की किताबों में भारतीय सैनिकों के किस्से

हाइफा नगरपालिका ने भारतीय सैनिकों के बलिदान को अमर करने के लिए वर्ष 2012 में उनकी बहादुरी के किस्सों को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया था।

करीब 402 सालों तक तुर्कों की गुलामी के बाद शहर को आजाद कराने में भारतीय सेना की भूमिका को याद करते हुए नगरपालिका ने हर साल एक समारोह के आयोजन का भी फैसला किया था। इजरायल में आज भी इस दिन (23 सितंबर) को हाइफा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

पीएम मोदी ने दी थी श्रद्धांजलि

पीएम मोदी ने जुलाई 2017 में इजरायल की अपनी ऐतिहासिक यात्रा के अंतिम दिन हाइफा शहर में भारतीय शहीदों को श्रद्धांजलि दी थी।

नेतन्याहू ने पीएम मोदी को गिफ्ट की थी खास तस्वीर

इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके दौरे के दौरान एक खास तस्वीर तोहफे में दी थी। तस्वीर में भारतीय सैनिकों को यरुशलम को आजाद कराने के लिए (11 दिसंबर 1917 को) एक ब्रिटिश सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व करते दिखाया गया है।

तीन मूर्ति-हाइफा चौक

तीन मूर्ति चौक का नाम भी तीन मूर्ति-हाइफा चौक इस युद्ध की याद में किया गया है। वैसे भी तीन मूर्ति चौक का नाम भारत के तीन राज्यों (जोधपुर, हैदराबाद और मैसूर) से इजरायल में भेजे गए सैनिकों के नाम पर रखा गया था।

-एजेंसियां


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