मोदी सरकार के कार्यकाल में हुए दो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के पांच साल के अंतराल में 13.5 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से बाहर आये हैं और गरीबों की संख्या में 14.96 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
नीति आयोग ने 2015-16 में कराये गए एनएफएचएस-4 और 2019-21 में कराये गये एनएफएचएस-5 की तुलना के आधार सोमवार को जारी रिपोर्ट में यह बात कही है।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी द्वारा जारी “राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: एक प्रगति समीक्षा 2023” नामक रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत पर आ गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में गरीबों की संख्या में 3.43 करोड़ के साथ सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। इसके बाद बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान का स्थान है।
इसमें कहा गया है कि पोषण में सुधार, स्कूली शिक्षा के वर्षों, स्वच्छता और खाना पकाने के ईंधन ने गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2030 की समय सीमा से काफी पहले एसडीजी लक्ष्य 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधा करने का) हासिल करने की राह पर है।
यह रिपोर्ट नवंबर 2021 में लॉन्च की गई भारत की राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) को अद्यतन करता है।
राष्ट्रीय एमपीआई स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के तीन समान रूप से महत्वपूर्ण आयामों में एक साथ अभावों को मापता है जो 12 एसडीजी-संरेखित संकेतकों द्वारा दर्शाए जाते हैं।
इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी 12 संकेतकों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है, जिससे गरीबी में कमी आई है।
Compiled: up18 News
Discover more from Up18 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.