13 दिसंबर 2001 की तारीख भारत के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गई है। 19 साल पहले इसी दिन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने संसद भवन पर हमला किया था। आतंकियों का प्लान तो लोकतंत्र के मंदिर को विस्फोटकों से उड़ाने का था लेकिन सुरक्षाकर्मियों के अदम्य साहस और वीरता के आगे उनके नापाक इरादे ध्वस्त हो गए। आधे घंटे तक चली मुठभेड़ के बाद सभी 5 आतंकी मार गिराए गए। इस हमले में दिल्ली पुलिस के 6 जवान और संसद के 2 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे। एक माली की भी मौत हुई थी। इसके अलावा न्यूज़ एजेंसी एएनआई के एक कैमरामैन गंभीर रूप से घायल हुए थे और आखिरकार उन्होंने 13 महीने बाद दम तोड़ दिया था।
कैसे हुआ था संसद पर हमला
दिन- 13 दिसंबर 2001, वक्त- सुबह 11 बजकर 20 मिनट। उन दिनों संसद में ताबूत घोटाले को लेकर बवाल मचा हुआ था। ऐसे में उस दिन भी इस मुद्दे पर लोकसभा और राज्यसभा में शोर-शराबा हुआ और दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। इसके बाद कुछ सांसद बाहर आकर बातचीत में बिजी हो गए तो कुछ हॉल में रहकर ही चर्चा करने लगे। जिस वक्त पार्लियामेंट के अंदर इस तरह का माहौल था, उसी वक्त संसद मार्ग पर अलग हलचल हो रही थी।
पार्लियामेंट में तैनात सिक्योरिटी ऑफिसर्स के वायरलेस पर मेसेज आया कि वाइस-प्रेसीडेंट कृष्णकांत घर जाने के लिए निकलने वाले हैं। ऐसे में उनके काफिले की गाड़ियां गेट नंबर 11 के सामने लाइन में खड़ी कर दी गईं।
सफेद ऐंबैसडर में आए थे आतंकी
इसी बीच सिक्योरिटी ऑफिसर्स ने देखा कि एक सफेद रंग की ऐंबैसडर कार संसद मार्ग पर बढ़ती हुई पार्लियामेंट के गेट नंबर 11 की तरफ बढ़ी चली आ रही थी। यह कार गेट नंबर 11 को पार करती हुई गेट नंबर 12 के पास पहुंच चुकी थी। यहीं से राज्यसभा के अंदर जाने का रास्ता भी है। मगर यह कार उस दिशा में बढ़ चली, जहां पर वाइस-प्रेसीडेंट का काफिला खड़ा था। संसद भवन में इस तरह की गाड़ियों की आवाजाही आम है मगर चूंकि वाइस-प्रेसीडेंट का काफिला निकलने वाला था, ऐसे में उस कार को वहीं रुकने का इशारा किया गया परंतु कार की स्पीड बढ़ती चली गई। ऐसे में वहां पर तैनात एएसआई जीतराम इस कार के पीछे भागे। ऐंबैसडर का ड्राइवर हड़बड़ाया हुआ लगा रहा था। अचानक उसने कार पीछे की जो राष्ट्रपति के काफिले की कार से टकरा गई।
सुरक्षाकर्मियों ने दिखाई बहादुरी
एएसआई जीतराम गुस्से में कार ड्राइवर के पास पहुंचे और उन्होंने उसका कॉलर पकड़ लिया। उन्होंने देखा कि अंदर सेना के जवान बैठे हैं। इतने में ड्राइवर ने एएसआई को कहा कि हट जाओ वरना गोली मार देंगे। एएसआई को समझ आ गया कि अंदर बैठे लोगों ने भले ही सेना की वर्दी पहन ली है, लेकिन वे कोई और हैं। ऐसे में उन्होंने अपना रिवॉल्वर निकाल लिया। कार चला रहा शख्स तेजी से कार को गेट नंबर 9 की तरफ ले जाने लगा। इतने में एक और सिक्योरिटी गार्ड जेपी यादव ने यह सब देखा और तुरंत सभी को मेसेज दिया कि सभी गेट बंद कर दिए जाएं।
उधर हड़बड़ी में ऐंबैसडर कार सड़क किनारे लगाए गए पत्थरों से टकराकर रुक गई। कार में सवार 5 लोग उतरे और उन्होंने तुरंत वायर्स बिछाना शुरू कर दिया। अब तक साफ हो चुका था कि ये लोग आतंकी थे और विस्फोटक लगा रहे थे। एएसआई जीतराम ने एक आतंकी पर रिवॉल्वर से फायर कर दिया। गोली आतंकी के पैर पर लगी। दूसरी तरफ से भी फायर हुआ और गोली लगने से जीतराम वहीं गिर गए।
दहल उठा पूरा संसद भवन
आतंकी चाहते थे कि कार में ब्लास्ट करके उड़ा दें, लेकिन उनकी यह कोशिश कामयाब नहीं हो पाई। ऐसे में उन्होंने फायरिंग करनी शुरू कर दी। उधर गेट बंद कराने का मेसेज देकर आए सिक्योरिटी गार्ड वहां पहुंचे मगर आंतकियों की गोली के शिकार होकर उन्होंने दम तोड़ दिया। आतंकी गेट नंबर 9 की तरफ बढ़ रहे थे और ग्रेनेड फेंकते जा रहे थे। पार्लियामेंट जल्द ही गोलियों और धमाकों की आवाज से दहल उठा। सुरक्षाकर्मी तुरंत हरकत में आए और पूरे कैंपस में फैल गए। उन्होंने सांसदों और मीडिया कर्मियों को सेफ जगहों पर ले जाना शुरू कर दिया। इस वक्त 100 से ज्यादा सासंद पार्लियामेंट में ही मौजूद थे। ऐसे में उस वक्त के होम मिनिस्टर लाल कृष्ण आडवाणी समेत बड़े नेताओं को पार्लियामेंट में ही बनी एक सीक्रेट जगह पर ले जाया गया। कुछ सांसद बाहर टहल रहे थे, उन्हें भी अंदाजा हो गया कि संसद पर आतंकी हमला हो चुका है।
इस तरह ढेर हुए सभी आतंकवादी
इस बीच कुछ सांसद और मीडियाकर्मी ऊपर से यह सब देख रहे थे लेकिन उन्हें वहां से हटा दिया गया। सुरक्षा के लिए जरूरी सभी कदम उठा लिए गए थे। गेट बंद थे और फोनलाइन्स डेड। अब तक सुरक्षा बलों ने मोर्चा संभाल लिया था। गेट नंबर 9 की तरफ बढ़ रहे आतंकियों को रोकने के लिए भारी फायरिंग की जा रही थी। इससे पहले की वे वहां पहुंचते, गेट को बंद कर दिया गया। गोलीबारी से 3 टेररिस्ट जख्मी भी हो गए, मगर में फिर भी आगे बढ़ रहे थे। उन्होंने देखा कि गेट नंबर 9 बंद है तो वे गेट नंबर 5 की तरफ भागने लगे। मगर इनमें से 3 को सुरक्षाकर्मियों ने गेट नंबर 9 के पास ही मार गिराया। एक टेररिस्ट ग्रेनेड फेंकता हुआ गेट नंबर 5 के पास पहुंच गया, मगर यहां उसे भी ढेर कर दिया गया।
5 में से 4 आतंकी मार गिराए जा चुके थे मगर एक आतंकी गेट नंबर 1 की तरफ बढ़ रहा था। यहीं से सभी लोग अंदर जाते हैं। इस गेट को भी बंद कर दिया गया था, ऐसे में वह यहीं पर रुक गया। इस टेरिस्ट ने अपने शरीर पर विस्फोटक बांध रखे थे। इसका इरादा अंदर घुसकर खुद को उड़ा देने का था मगर तभी एक गोली उससे शरीर पर लगे विस्फोटक से टकराई और ब्लास्ट हो गया।
जारी रहा अफवाहों का दौर
अब तक पांचों आतंकी ढेर हो चुके थे, मगर सुरक्षाकर्मियों को नहीं मालूम था कि कितने आतंकियों ने हमला किया है। इस बीच यह अफवाह फैली की एक आतंकी अंदर घुस गया है। अफवाह फैलने की एक वजह यह भी थी कि आतंकियों ने जो ग्रेनेड फेंके थे, वे काफी देर बाद फटे। अब तक सुरक्षा कर्मी पूरे संसद भवन को अपने कब्जे में ले चुके थे। वे किसी तरह के खतरे की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहते थे।
क्या थे आतंकियों के मंसूबे
आतंकियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच करीब 30 मिनट तक मुठभेड़ चली। एंबुलेंस, बम स्क्वॉड और स्पेशल एजेंसियों के लोग यहां पहुंचने लगे थे। घायलों को तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया। जिस कार से आतंकी अंदर आए थे, उसकी जांच करने पर पता चला कि उसमें हथियार और विस्फोटक रखे हैं। कार के अंदर 30 किलो आरडीएक्स रखा गया था। अगर इस कार में धमाका हो जाता तो हालात बेहद खराब होते। उधर बम स्कवॉड ने बमों का नाकाम कर दिया। आतंकियों की कार में खाने-पीने का सामान भी मिला जिससे साफ हुआ कि आतंकियों के मंसूबे कितने खतरनाक थे। वे इस बात की पूरी तैयारी कतके आए थे कि सांसदों को बंधक बना लिया जाए।
और भी बदतर हो सकते थे हालात
संसद भवन से लोगों को बाहर निकालने से पहले भी पूरी सावधान बरती जा रही थी। सभी का आइडेंटिटी कार्ड चेक किया जा रहा था। जब सुरक्षाकर्मी इस बात को लेकर आश्वस्त हो गए कि अब कोई खतरा नहीं है, तभी सांसदों और मीडियाकर्मियों को बाहर निकाला गया। इस अटैक में नौ लोगों की जान गई और इनके अलावा पांचों आतंकवादी भी मारे गए। मगर देश सलाम करता है उन जवानों को, जो अपनी जान पर खेल गए। वरना हालात बदतर हो सकते थे।
-एजेंसियां
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