मथुरा। भगवान श्रीकृष्ण की बाललीला स्थली रमणरेती धाम महावन में गुरुवार को मोरारीबापू की 851 वीं रामकथा शुभारम्भ हुआ जिसमें आज मुरारीबापू ने श्रद्धालुओं को बताया कि परमात्मा की शरणागति में व्यक्ति का अहम् ही सदैव बाधक बनता है। अतः हर साधक को सबसे पहले अपने अहम् से मुक्ति पाना बहुत जरूरी है।
कार्ष्णि गुरु शरणानंद महाराज की उपस्थिति में 19 से 29 नवंबर तक 11 दिवसीय रामकथा का आयोजन किया जा रहा है।
रमणरेती धाम में आयोजित रामकथा के क्रम में प्रख्यात रामकथा वाचक मोरारी बापू ने उक्त क्रम में स्पष्ट किया कि प्रभु की शरणागति के पश्चात वे स्वयं अपने भक्त की रक्षा तथा मार्गदर्शन का दायित्व अपने ऊपर ले लेते हैं। पवनपुत्र हनुमान ने सीता माता की खोज तथा बालिपुत्र अंगद ने भरे दरबार में रावण को चुनौती देकर उसके मानमर्दन जैसे दुष्कर कार्य भगवान राम की शरणागति से प्राप्त कवच के बल पर ही की थी।
रामकथा से अनेक उद्धरण देते हुए बापू ने कहा कि हमारे धार्मिक- आध्यात्मिक साहित्य में सब कुछ सूत्ररूप में तथा मंत्ररूप में देने की परंपरा रही है।कुशल वक्ता भी इसका निर्वाह करते हुए विभिन्न शास्त्रीय प्रसंगों को अपने श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करता है ताकि उसे सुन एवं समझ कर लोग भलीभांति विकसित व हृदयंगम कर सकें।
उन्होंने कहा कि महापुरुषों की वाणी का आश्रय लेकर जनसामान्य के लिए आगे का मार्ग खोज पाना आसान हो जाता है।
रामकथा के विभिन्न प्रसंगों की सरस व्याख्या के क्रम में बापू ने कहा कि अपने-अपने इष्ट के दर्शन से श्रद्धालु भक्त के मन में प्रेम का प्राकट्य होता है जिससे भावविह्वल होकर वे क्रमशः राम, कृष्ण,शिव, बाँके बिहारी,माता जानकी,राधा जी, हनुमान आदि अपने आराध्य के साथ तारतम्य स्थापित करते हुए अपना आध्यात्मिक विकास कर पाते हैं। उन्होंने मीरा, रुक्मणि तथा राधा के प्रेम की रोचक विवेचना भी की।
लौकिक एवं अलौकिक श्रृंगार की चर्चा करते हुए उन्होंने पुष्प वाटिका में सीता जी एवं प्रभु श्रीराम के परस्पर प्रथम दर्शन प्रसंग का वर्णन करते हुए वर्तमान में शिथिल होती मर्यादा की ओर संकेत किया। शिव एवं सती के बीच प्रभु श्रीराम को लेकर उपजे भ्रम की विस्तृत समीक्षा कर मोरारी बापू ने स्पष्ट किया कि शिव जैसे पति की अवज्ञा कर सती ने उचित नहीं किया जिसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी ।
उन्होंने बताया कि हरि शरणागति के लिए विश्वास के अतिरिक्त अन्य कोई विधि नहीं है।