प्रयागराज। भोग विलास का जीवन व लाखों का पैकेज छोड़ IIT मुंबई से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग डिग्री धारक फक्कड़पन और वैराग्य का रास्ता चुना है। युवा संन्यासी अभय सिंह ने विज्ञान की दुनिया में अपने पंख नहीं फैलाए, ऐसा कर उन्होंने एक अनूठी मिसाल पेश की है। आधुनिक तकनीक और विज्ञान की चकाचौंध को छोड़ आध्यात्म की शरण में आए और अपनी अलग राह बनाई है।
महाकुंभ में उनके आगमन के साथ ही उनकी कहानी ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी है। रुद्राक्ष की माला और शांत चेहरे के साथ, अभय सिंह का साधु जीवन हर किसी के लिए जिज्ञासा का विषय बन गए हैं। उनका जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो भौतिक सुखों से परे कुछ अर्थपूर्ण खोज रहे हैं। आज वे महाकुंभ में प्रयागराज में संगम तट पर भटकते फिरते हैं और जीवन की डोर को सुलझाने की कोशिश करते हैं। उनका एक इंटरव्यू वायरल हो रहा है। जब लोगों ने जाना कि जिस आईआईटी में दाखिला लेने के लिए ही प्रतिस्पर्द्धा की पराकाष्ठा है वहां से ग्रेजुएट एक युवा करोड़ों के पैकेज, कॉरपोरेट का आकर्षण छोड़कर संन्यासी बन गया है तो वे स्तब्ध रह गये।
प्रयागराज की रेती पर बैठे योगी का ज्ञान
ये संन्यासी आज प्रयागराज की रेती पर बैठा जीवन-दर्शन की बातें बता-सुना रहा है। इंटरव्यू में जब इनसे पूछा गया कि इस अवस्था को कैसे प्राप्त हुए तो वे बालकों सा मुस्कुराए और कहा कि ये अवस्था तो सबसे बेस्ट अवस्था है। ज्ञान के पीछे चलते जाओ, कहां जाओगे, यहीं पर आओगे। दार्शनिक अंदाज में जबाव देते हुए कहा कि क्या करें दुनिया में कभी भी अंत हो सकता है? हंसते हंसते मरूंगा मैं। नहीं हंसे तो एकदम से लगेगा मैं तो बिजी था? भगवान से कहना पड़ेगा। रुको-रुको टाइम को रोको, मौत को रोको। शांत भी हो सकते हैं, जरूरी नहीं है हंसना,पर हंसना Blissful स्टेट होता है।
मसानी गोरख, बटुक भैरव, राघव, माधव… कौन सा नाम बताऊं?
जब युवा योगी से नाम पूछा गया तो अपने उत्तर से चकित करते हुए कहा कि कौन सा वाला नाम? उन्होंने कहा कि मेरे बहुत सारे नाम हैं, मसानी गोरख,बटुक भैरव, राघव, माधव, सर्वेश्वरी, जगदीश्वरी, जगदीश।
हालांकि युवा योगी अपने आपको न तो संत मानते हैं न ही वैरागी। अभय सिंह के नाम से पढ़ाई लिखाई करने वाला ये एयरोस्पेस इंजीनियर खुद को वैरागी कहलाता पसंद करता है। इसकी वजह भी अभय सिंह बताते हुए कहा कि संत या साधु कहना विवाद पैदा करता है। फिर लोग पूछते हैं तुमने दीक्षा किससे ली है? संन्यास किससे लिया है? लेकिन मान लो कि तुम अकेले ही ज्ञान की खोज में निकल पड़ो, मुझे एक दुकान वाले ज्ञान मिल गया, चाय गुरु, बिजनेस गुरु।”
उन्होंने कहा कि मैं तो बस सीखने आया हूं। मैं किसी मठ से जुड़ा हुआ नहीं हूं। कहीं दीक्षित नहीं हूं। कोई साधु या महंत नहीं हूं। मुझे तो मोक्ष के लिए आने वाली हर बाधा को दूर करना है। जटाएं तो बहुत सुंदर होती हैं। मेरी स्प्रिचुअल जर्नी नीचे नहीं ऊपर गई है। मैं बिल्कुल फ्लूइड रूप में हूं। मुक्त हूं। मैं कुछ भी कर सकता हूं।
उन्होंने कहा कि प्रश्न से ही कोई यात्रा शुरू होती है। मेरे मन में भी कई प्रश्न थे। आईआईटी जाने के बाद मेरे मन में भी प्रश्न आया कि अब लाइफ में क्या करूं। कुछ ऐसा ढूंढना था कि आजीवन कर सकूं। मैं भी डिप्रेशन में आया था। फिर कई सवाल आए कि इस जिंदगी में क्या है? आगे क्या करूं। बीच में मेंटल हेल्थ का भी सवाल आया। एंजायटी और टेंशन जीवन में आती है। मैं भी भारी डिप्रेशन में आ गया था।
अभय ने कहा कि मैं बहुत खतरनाक डिप्रेशन में था। नींद नहीं आती थी। एक ही चीज सोचता रहता था, फिर मैंने सोचा कि दिमाग क्या चीज है? नींद क्यों नहीं आ रही? फिर मैंने साइकोलॉजी पढ़ी। फिर इस्कॉन की तरफ मुड़ा, जे कृष्णमूर्ति को पढ़ा। परिवार मुझे पागल समझने लगा था। लोग तो मुझे पागल समझ ही रहे थे। अगर मुझे लोग पागल बोलते थे, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था।
युवा योगी अभय सिंह बतातें हैं कि मेरे परिवार की बिल्कुल अलग स्टोरी है। मुझे बचपन में ख्याल आता था कि मैं घर से भाग जाऊं, क्योंकि मैं परिवार से परेशान था। उनकी अलग टाइप की सोच थी। फोटोग्राफी की तरफ मुड़ा तो उसमें भी मैंने टॉप इंस्टिट्यूट से पढ़ाई की. आईआईटी करने के बाद जब फोटोग्राफी शुरू की तो परिवार वालों को लगा कि यह पागल हो गया है। मेरी दो-तीन टाइप की हंसी हैं। एक हंसी होती है जो खेल-खेल में होती है, एक ब्लिसफुल है। मुझे घर से दूर जाना था, इसलिए मैंने आईआईटी मुंबई को चुना और मुझे अच्छा लगा। जीवन में मौज मस्ती की, लेकिन मैं वह बताना नहीं चाहता। क्योंकि अगर मैं वह जर्नी बताऊंगा तो अच्छा नहीं लगेगा। संत समाज को भी बुरा लगेगा। मैं अटकना नहीं चाहता। मैं रुकना नहीं चाहता. जब आदमी कहीं भी नहीं अटकता, तब वह मुक्त हो जाता है।
गर्लफ्रेंड और माता-पिता
अभय सिंह के अनुसार अपने स्वभाव की वजह से उनका अपने माता पिता से टकराव हुआ। उन्होंने कहा कि कई बार घर वाले पुलिस बुला लेते थे और कहते थे कि इसे ले जाओ।अच्छा हुआ मैं इससे बाहर निकल पाया। वे अपने वीडियो में इसे पैरेंटल ट्रैप कहते हैं। वो कहते हैं कि माता पिता भगवान नहीं है। उन्हें भी भगवान ने बनाया है। सतयुग वाला कॉन्सेप्ट कलियुग में प्रयोग नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा है कि जब मां बाप अहंकार और स्वार्थ ये युक्त होकर अपने आप को भगवान मान लेते हैं तभी नरसिम्हा भगवान आकर उनके अहंकार का विनाश करते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि आईआईटी मुंबई में उनकी महिला मित्र भी रही हैं और ये सहज स्वभाविक है।
अभय सिंह के गुरु ने क्या कहा?
अभय के गुरु सोमेश्वर पूरी ने कहा कि मैंने इसे कई लोगों से मिलाया। अघोरियों से मिलाया, जूना अखाड़ा के महात्माओं से मिलाया और इंडिपेंडेंट साधु जो 20-20, 30-40 साल से साधना कर रहे हैं उनसे मिलवाया। मैं आने वाले दिनों में अभय सिंह को देश के सबसे बड़े संत के तौर पर देख रहा हूं।
साभार सहित
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