ब्रज – रज उत्सव: ब्रज संस्कृति प्रदर्शन से अधिक दिल्ली में लगने वाले ‘व्यापार मेला’ जैसा

अन्तर्द्वन्द

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् प्रारम्भिक काल में सरकार द्वारा आर्थिक उन्नयन, पानी, बिजली, सड़क निर्माण आदि की व्यवस्थाओं की प्राथमिकता दी गई और 60 – 70 के दशक में शासन स्तर पर संस्कृति विभाग के अन्तर्गत इस समय उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, राज्य ललित कला अकादमी, भारतेन्दु नाट्य अकादमी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान तथा उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान स्थापित हैं।

इन संस्थानों में प्रारम्भ से ही मात्र कुछ अपवादों को छोड़कर पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा वर्तमान उत्तराखंड के साहित्यिक – संगीत – कला क्षेत्र के व्यक्तियों को पदासीन किया और ब्रज की पूर्णत: उपेक्षा की गई जब कि ब्रज में साहित्य – संगीत – कला क्षेत्र के शीर्षस्थ विद्वान थे। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि इनमें से किसी अकादमी में ब्रज का प्रतिनिध‍ित्‍व नहीं है।

उर्दू – सिन्धी – पंजाबी अकादमी, किन्तु ब्रजभाषा अकादमी नहीं

ब्रजभाषा केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं सम्पूर्ण देश में समझी जाने वाली माधुर्यमयी – सलोनी – मिठलौनी वह भाषा है जिसमें कृष्ण ने मैया जसोदा से कहा था-‘‘ मैया मोरी मैं नाँइ माखन खायौ’’। ब्रजभाषा केवल उत्तर प्रदेश की ही नहीं सम्पूर्ण देश में समझी जाने वाली माधुर्यमयी – सलोनी मिठलौनी भाषा है। कृष्ण ने इसी भाषा में मैया जसोदा से कहा था- ‘‘ मैया मोरी, मैं नाँइ माखन खायौ ’’ ।इसी ब्रजभाषा ने वाणी के विधाता को बोलना सिखाया था- धन्य ब्रजभासा तो सी दूसरी न भासा, तैनें वाणी के विधाता कूँ, बोलिबो सिखायौ है।

चरकुला से भी चमत्कारी ‘हल नृत्य’

ब्रज – रज उत्सव के मंच पर ब्रज की उन कला – संस्कृति निधियों का मंचन होना चाहिए जो लुप्त प्राय: हैं । मैंने सन् 1981 में ब्रज के एक गाँव में ‘ चरकुला नृत्य’ से भी अधिक चमत्कारी ‘ हल नृत्य’ देखा था जिसमें गाँव की एक महिला खेत में चलने वाले वजनी हल की नोंक को दाँतों में दबा कर, दोनों हाथ से बिना पकड़े नृत्य कर रही थी।

आज किसी को इस पर विश्वास नहीं होगा किन्तु प्रमाण रूप में मेरे पास उसका चित्र है। यह नृत्य ब्रज – रज उत्सव की दुर्लभ देन हो सकता था।

55 साहित्यकारों को सम्मान,ब्रज में एक साहित्यकार भी सम्मान के योग्य नहीं 

ब्रज, ब्रज भाषा – साहित्य की उपेक्षा का एक ताजा उदाहरण यह है कि हाल हीं में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 55 साहित्यकारों को ‘सम्मान’ और लाखों – रूपयों की राशि प्रदान की गई है किन्तु ब्रज के एक भी साहित्यकार को सम्मानित नहीं किया गया है।

ब्रज – रज उत्सव की ‘हुनर हाट’ में न ब्रज की ‘दाल – बाटी’ न ‘सौर – बिछौना की खीर’

ब्रज – रज उत्सव की ‘हुनर हाट’ में विभिन्न प्रदेषों के लघु उद्योगों का प्रदर्षन है किन्तु ब्रज के किसी प्राचीन लघु उद्योग का नहीं।

खान – पान स्टॉल में बिहार के ‘लिट्टी चोखा’ की बहुत चर्चा है क्योंकि माननीय योगी जी ने उसकी प्रषंसा की किन्तु उत्सव में ‘दाल – बाटी’ और ‘सौर बिछौना की खीर’ का नाम तक नहीं था।

माननीय योगी जी यदि ‘सौर बिछौना की खीर’ का स्वाद लेते तो कहते और, और, और’ तब ‘लिट्टी – चोखा’ से निश्‍चय ही उसकी अधिक चर्चा होती।

आदिकालीन तीर्थस्थलों में परिवर्तन का किसी को अधिकार नहीं 

ब्रज में भगवान् श्रीकृश्ण की जन्मभूमि होने के कारण मथुरा पौराणिक तीर्थ है, सप्तपुरियों में मथुरा की गणना है। सनातन गोस्वामी ने ‘मथुरा माहात्म्य’ में जिस मथुरा का वर्णन किया है उसमें परिवर्तन का किसी को अधिकार नहीं है। यह किन्हीं विवेकषून्य अधिकारियों की सोच का परिणाम है।

मथुरा के द्वारकाधीष मन्दिर को सरकारी कागजों में ‘तीर्थ’ घोष‍ित न करने से राजाधिराज द्वारकाधीश के भक्त और विश्राम घाट पर यमद्वितीया स्नान करने वाले भाई – बहिन क्या नहीं आयेंगे ?

शासन केवल तीर्थस्थान के लिए सुविधाएँ यथा – पानी, बिजली, सड़क आदि व्यवस्थाओं की सुविधा प्रदान करने की घोशणा कर सकता है।

सांस्कृतिक नहीं ‘व्यापार मेला’

‘ब्रज – रज उत्सव’ का रूप ब्रज संस्कृति प्रदर्शन से अधिक दिल्ली में लगने वाले ‘व्यापार मेला’ जैसा हो गया है। ‘ब्रज – रज उत्सव में आयोजित औद्योगिक स्टॉल हों या खान – पान के स्टॉल, किसी में ब्रज – परम्पराओं का स्पर्श नहीं था।

महाप्रभु वल्लभाचार्य – स्वामी हरिदास – महाकवि सूरदास

ब्रज रज उत्सव में महाप्रभु वल्लभाचार्य, महान् संगीतज्ञ स्वामी हरिदास और महाकवि सूरदास का श्रद्धापूर्वक स्मरण भी किया जाना चाहिए। स्वामी हरिदास जी की साधना स्थली निधिवन और महाकवि सूरदास की साधना स्थली परासौली स्थित सूरकुटी अद्भुत – अनुपम सौन्दर्यीकरण और वहाँ संग्रहालय का निर्माण भी वर्शों से वाट निहार रहा है।

यमुना को ‘प्रदूषण मुक्त’ करा दीजिए

माननीय मुख्यमंत्री जी यदि ‘यमुना प्रदूषण मुक्ति’ की समयबद्ध घोषणा कर दें तो ‘ ब्रज रज उत्सव’ मे उनका आगमन‘ ऐतिहासिक’ हो जाएगा। मथुरा तीर्थ स्थल के सम्बन्ध में की गई निरर्थक घोषणा को वापस लिया जाए जिससे क‍ि ब्रज भूमि के भक्तों की भावनाएँ आहत न हों।

माननीय योगी जी ने ब्रज राज का सौभाग्य प्राप्त नहीं किया

माननीय मुख्य मंत्री और ब्रज तीर्थ विकास परिषद के अध्यक्ष योगी जी ब्रज की पावन- पुनीत भूमि पर उतरते ही यदि ब्रज की रज को मस्तक पर लगाते और मंच से शक्ति सम्पन्न ‘मुक्ति’ की याचना का यह स्वर गूँजता तो ‘ब्रज रज उत्सव’ सार्थक हो जाता-मुक्ति कहै गोपाल सौं मेरी मुक्ति बताइ, ब्रज रज उड़ि मस्तक लगै ‘मुक्ति’ मुक्त है जाइ।’’

मंत्री – विधायकों की उपेक्षा

उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा जब प्रारंम्भ में ‘ ब्रज रज उत्सव’ के आयोजन का निर्णय लिया गया तब न प्रदेश के मंत्री, विधायकगण, साहित्यिक – सांस्कृतिक संघठन, तीर्थ पुरोहित तथा सन्तगण आदि किसी से वैचारिक विमर्श नहीं किया गया। ब्रज की भूमि में जन्मे – पले और लाखों मतदाताओं के प्रतिनिधियों से ही आयोजकों ने परामर्श लिया होता तो यह उत्सव ऐतिहासिक हो सकता था।

 

 

– पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया

साभार- legend news