दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सत्ता के गलियारे में चर्चा का विषय बनी हुई है। इस चर्चा के केंद्र में है सीएम योगी आदित्यनाथ। दरअसल, जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उनमें से सिर्फ एक सीएम योगी आदित्यनाथ ही ऐसे थे जो कार्यकारिणी की बैठक में फिजिकली मौजूद रहे। उन्होंने पहली बार राजनीतिक प्रस्ताव भी पेश किया। अब बीजेपी के इस कदम के कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। मुख्य रूप से दो प्रमुख बातें चर्चा में हैं।
पहली ये कि योगी आदित्यनाथ का कद बढ़ा है और बीजेपी संगठन में योगी अब टॉप लीडरशिप में शामिल हो चुके हैं।
जानकार इसे योगी का ‘उदय’ मानकर चल रहे हैं। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि 90 के दशक में संगठन मंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया था। उसके बाद वह गुजरात के सीएम बने और अब पीएम हैं। वहीं दूसरा, उत्तर प्रदेश में संगठन और बीजेपी नेताओं को साफ संदेश दिया गया है कि यूपी में योगी की अगुवाई में ही सबको एकजुट रहना है।
बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजनीतिक प्रस्ताव पेश करने का महत्वपूर्ण कार्य आमतौर पर केंद्रीय स्तर का वरिष्ठ नेता ही करता है। इस बार राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तमाम वरिष्ठ नेताओं के बीच योगी आदित्यनाथ के अलावा तीन राज्यों के उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के मुख्यमंत्रियों बीरेन सिंह, प्रमोद सावंत व पुष्कर सिंह धामी ने भी शिरकत की, लेकिन योगी अकेले फिजिकली उपस्थित रहे, बाकी सीएम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वर्चुअली जुड़े। हालांकि बीजेपी के नेता इस पर कहते हैं कि राजनीतिक प्रस्ताव पार्टी की तरफ से तैयार किया जाता है, चूंकि इस बार पांच राज्यों में चुनाव हैं और इसमें सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है लिहाजा उन्हें प्रस्ताव पेश करने की जिम्मेदारी दी गई। बीजेपी के अनुशासन में ये आम बात है लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे एक बड़े संकेत की तरह देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि पार्टी में योगी का कद बढ़ा है और उनके नेतृत्व में पार्टी आश्वस्त है कि उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी तय है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस ओर इशारा करते हुए योगी आदित्यनाथ को राजनीतिक प्रस्ताव पेश करने के कदम पर कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपने प्रदर्शन के आधार पर यह उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने कहा, ‘हमें उनका चयन क्यों नहीं करना चाहिए था? वो देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य की सरकार चला रहे हैं। सभी को कोविड के दौरान उनके शानदार कार्यों की जानकारी है। वो चाहे प्रवासी मजदूरों की बात हो या फिर गांवों में रोजगार सृजन करने की। वो वरिष्ठ सांसद रह चुके हैं। हमें उन्हें राजनीतिक प्रस्ताव पेश करने को क्यों नहीं कहना चाहिए? हम निश्चित रूप से ऐसा करेंगे।’
बता दें इससे पहले राजनाथ सिंह ने वर्ष 2017 और 2018 की बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव पेश किए थे।
उधर पूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद ने इस संबंध में फेसबुक पर लिखा है, “राष्ट्रीय कार्यसमिति में दिए गए राजनीतिक प्रस्ताव का एक निहितार्थ होता है। मुझे स्मरण है कि एक इसी तरह की बैठक में मोदी जी ने राजनीतिक प्रस्ताव रखा था, उस प्रस्ताव में वही कुछ था, जो आज मोदी जी कर रहे हैं। उस समय वह भाजपा के संगठन मंत्री थे और अब जब 5 विधानसभाओं और 36 उत्तर प्रदेश विधान परिषद के चुनाव होने जा रहे हैं और भाजपा का ग्राफ गिर रहा हो, तब राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में योगी द्वारा राजनीतिक प्रस्ताव रखा जाना देश के लए एक संदेश होगा।”
दूसरी बात जिस पर सबसे ज्यादा चर्चा चल रही है, वह यह है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी नेताओं को साफ संदेश दिया गया है कि योगी की अगुवाई में ही सबको एकजुट रहना है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही योगी सरकार और संगठन को लेकर तरह-तरह की खबरें आती रहीं। इस साल कोरोना की दूसरी लहर के बाद तो यहां तक खबरें आने लगीं कि सीएम योगी आदित्यनाथ की केंद्रीय नेतृत्व से अनबन है। इन अटकलों को तब और हवा मिल गई, जब 5 जून को सीएम योगी के जन्मदिन पर किसी केंद्रीय नेता ने बधाई संदेश नहीं दिए। मामले ने तूल पकड़ा और सोशल मीडिया पर मोदी बनाम योगी को लेकर तरह-तरह के दावे किए जाने लगे। वहीं यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के कुछ बयानों को लेकर भी कयास लगाए जाने लगे कि योगी और संगठन में सब सामान्य नहीं है। चर्चा यहां तक पहुंच गई कि योगी अगले मुख्यमंत्री नहीं होंगे।
बहरहाल, समय बीता और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी दौरे में सीएम योगी आदित्यनाथ की जमकर तारीफ की, इसके साथ ही सारी अटकलें कमजोर पड़ने लगीं। इसके बाद यूपी दौरे पर आए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी जब कहा कि 2024 में मोदी का जिताना है तो 2022 में योगी को यूपी में जिताना होगा। अमित शाह के इस बयान के बाद स्थिति और स्पष्ट हो गई। उनके इस बयान को संगठन और सरकार के बीच तालमेल बिठाने और यूपी में नेतृत्व को लेकर स्थिति स्पष्ट करने से जोड़कर देखा गया।
सीएम योगी के भाषण के प्रमुख अंश
उत्तर प्रदेश वासियों को डबल इंजन की सरकार का भरपूर लाभ मिल रहा है।
यूपी सरकार सबका साथ, सबका विकास की भावना के अनुरूप सेवा कर रही है।
अन्त्योदय कार्डधारकों को दाल, खाद्य तेल, नमक और चीनी नि:शुल्क दिया जा रहा है।
पीएम मोदी के प्रयासों से कनाडा से मां अन्नपूर्ण की प्राचीन प्रतिमा भारत सरकार को प्राप्त हुई। 15 नवंबर को इसे बाबा विश्वनाथ धाम में स्थापित किया जाएगा।
अपराधियों के प्रति राज्य सरकार जीरो टॉलरेंस पर काम कर रही है। यूपी में अब कानून का राज स्थापित है। लोगों में सुरक्षा का भाव पैदा हुआ है, अपराधी और माफिया जेल में हैं।
माफियाओं की अब तक 1800 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति जब्त, ध्वस्त और अवैध कब्जे से मुक्त कराइ जा चुकी है।
पिछले साढ़े 4 सालों में एक भी दंगा नहीं हुआ।
भारत सरकार की 44 महत्वपूर्ण योजनाओं को लागू करने में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है।
ईज ऑफ डुइंग बिजनेस रैंकिंग में यूपी दूसरे स्थान पर पहुंच चुका है।
देश में आज उत्तर प्रदेश दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। राज्य में प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है।
पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाने के कदम की प्रशंसा करते हुए सीएम योगी ने यूपी ने भी इसमें योगदान देते हुए 12-12 रुपए की कमी की।
-एजेंसियां
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