थोरांग ला पहाड़ियों के बीच मौजूद है पापों का नाश करने वाला भगवान विष्णु का तीर्थ मुक्तिनाथ धाम

Religion/ Spirituality/ Culture

मुक्तिनाथ धाम हिन्दुओं के महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। यह नेपाल के मस्तांग जिले की थोरांग ला पहाड़ियों के बीच मौजूद है। इसे सभी पापों का नाश करने वाला तीर्थ माना जाता है। माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु को भी जलंधर दैत्य की पत्नी वृंदा के शाप से मुक्ति मिली थी।

कथाओं के अनुसार मुक्तिक्षेत्र वह स्‍थान है जहां पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहीं पर भगवान विष्‍णु शालिग्राम शि‍ला में निवास करते हैं और उनकी पूजा की जाती है। ये स्थान गंडकी नदी के पास ही है। हिंदू ही नहीं, इस मंदिर पर बौद्ध धर्म के लोगों की भी आस्था है।

12300 फीट की ऊंचाई पर स्थिति मंदिर

कई हिंदू ग्रंथों में मुक्तिनाथ धाम का उल्लेख किया गया है। यह नेपाल के मस्तांग जिले की थोरांग ला पहाड़ियों के बीच 3750 मीटर यानी करीब 12300 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है। ये मंदिर पगोड़ा शैली में बना हुआ है। मुक्तिनाथ क्षैत्र पंचतत्वों से युक्त है। यहां पृथ्वी, जल, आकाश और वायु के साथ ही प्राकृतिक रूप से जलने वाली अग्नि भी है इसलिए इस जगह को सिद्ध स्थान माना जाता है। 1815 में नेपाल की महारानी सुवर्णप्रभा ने मुक्तिनाथ मंदिर का पुनर्निमाण करवाया था।

ब्रह्मा जी के यज्ञ से बना मुक्तिक्षेत्र

पुराणों के अनुसार, पृथ्वी 7 भागों और 4 क्षेत्रों में बंटी हुई है। इन चार क्षेत्रों में प्रमुख मुक्तिक्षेत्र है इस क्षैत्र से जुड़ी कथा भी है कि शालग्राम पर्वत और दामोदर कुंड के बीच ब्रह्माजी ने मुक्तिक्षेत्र में यज्ञ किया था। जिसके प्रभाव से भगवान शिव अग्नि ज्वाला के रूप में और नारायण जल रूप में उत्पन्न हुए थे। इसी से पापों का नाश करने वाले मुक्तिक्षेत्र बना।

पंचतत्व और त्रिशक्ति का प्रतीक

मुक्तिनाथ परिसर के दक्षिणी कोने में, मेबर लखांग गोम्पा नाम की जगह है। जिसे सालमेम्बर डोलम्बार गोम्पा या ज्वाला माई मंदिर भी कहा जाता है। यहां प्राकृतिक गैस से लगातार अग्नि जल रही है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि ये वो ही जगह है जहां ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था। इस अग्नि के साथ जल की धारा भी बह रही है। पानी और अग्नि का ये संयोग बहुत ही दुर्लभ है। इसलिए इस जगह को त्रिशक्ति और पंचतत्व का प्रतिक भी माना जाता है।

मंदिर का महत्व

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जलंधर दैत्य की मृत्यु के लिए विष्णु ने उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया था। वृंदा ने विष्णु को कीट हो जाने का शाप दे दिया। इसके बाद भगवान विष्णु यहां शालिग्राम रूप में रहे और उन्हें शाप से मुक्ति मिली। इसलिए यह मुक्ति धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके साथ ही यहां बौद्ध मठ भी होने से ये बौद्धधर्म के अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण तीर्थ माना जाता है।

मुक्तिनाथ क्षैत्र के मंदिर

मुक्तिनाथ क्षैत्र में शालीग्राम के अलावा एक हिंदू मंदिर और है जो शिव मंदिर है। इसमें शिवजी और माता पार्वती की मूर्तियां हैं। यह चार छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। इसके सामने दक्षिणावर्त ब्रह्मांड के संरक्षक विष्णु का मंदिर है। शिवजी के मंदिर के पीछे श्रीराम मंदिर है जो कि विष्णु का सातवां अवतार हैं। इसके बगल में श्रीकृष्ण मंदिर है जो कि विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। वहीं अंत में गणेश के मंदिर है जो कि भगवान शिव और पार्वती के पुत्र हैं और ज्ञान के देवता माने जाते हैं।

मंदिर से सामने बना है मुक्तिकुंड

मुक्तिधाम के पास गण्डकी नदी और दामोदर कुंड की धारा जहां मिलती है, उसे काकवेणी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पर श्राद्ध तर्पण करने से व्यक्ति की 21 पीढ़ियों को मुक्ति मिल जाती है। श्रीमद्भागवत पुराण में धुंधकारी की कथा मिलती है, जिसने यहां श्राद्ध करके अपनी 21 पीढ़ियों को मुक्ति दिलाई और स्वयं भी पाप मुक्त होकर स्वर्ग को गया।

-एजेंसियां


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