Diphtheria नाक और गले का एक गंभीर संक्रामक रोग है। जब तक इसके लिए वैक्सीन डेवलप नहीं हुआ था तब तक इसने दुनियाभर में कई जिंदगियां लीं।
हालांकि वैक्सीनेशन शुरू होने के बाद यह आंकड़ा बहुत कम हो गया है, लेकिन भारत में आज भी इसके मरीज पाए जाते हैं। हाल ही में केरल में इस बीमारी के मरीज सामने आए हैं, जिसके बाद सरकार ने हेल्थ ऑफिसर्स को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि प्रभावित इलाके में सभी को वैक्सीनेशन लगाया जाए।
खतरा व लक्षण
Diphtheria में बैक्टीरिया के कारण एक मोटी, ग्रे रंग की परत गले, नाक व टॉन्सिल्स पर जम जाती है। इससे व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने के साथ ही अन्य परेशानियां सामने आ सकती हैं। अगर इसके वायरस ब्लड स्ट्रीम में प्रवेश कर जाएं तो यह नर्व्स सिस्टम को तोड़ सकता है और दिल की सेहत को प्रभावित कर सकता है जिससे जान भी जा सकती है। ऐसे में इसके लक्षण शुरुआत में ही पहचानना बेहद जरूरी है।
इस बीमारी की चपेट में आने पर व्यक्ति में 5 दिनों में निम्नलिखित लक्षण नजर आने लगते हैं:
– बुखार
– ज्यादा बेचैनी व थकान
– गले में सूजन
– नाक ब्लॉक होना या बहना
– दिल की धड़कन तेज हो जाना
– उल्टी आना
– ठंड लगना
– सिरदर्द बना रहना
– सांस लेने में परेशानी आना
– सीने में भारीपन लगन
– निगलने में परेशानी आना
इलाज
Diphtheria की चपेट में आने वाले 5 से 10 प्रतिशत लोगों की मौत हो जाती है। इससे बचने के लिए बच्चों को बचपन में डीटीपी का वैक्सीन लगवाने की सलाह दी जाती है। इस वैक्सीन से बच्चे को डिप्थीरिया के साथ ही टिटनेस और परट्यूसिस जैसी गंभीर बीमारियों से भी सुरक्षा मिलती है। 1 साल के बच्चे को डीपीटी के 3 टीके लगते हैं। इसके बाद डेढ़ साल पर चौथा टीका और 4 साल की उम्र पर पांचवां टीका लगता है। टीकाकरण के बाद डिप्थीरिया होने की संभावना नहीं रहती है। सलाह दी जाती है कि बच्चे को 12 साल ही उम्र में भी इसका एक टीका लगवाना चाहिए।
डॉक्टर सलाह देते हैं कि बड़ों को इस वैक्सीनेशन के बाद बूस्टर वैक्सीन लगवाना चाहिए क्योंकि समय के साथ वैक्सीन कमजोर हो जाता है। प्राइमरी वैक्सीनेशन शेड्यूल पूरा होने के बाद हर दस साल में इस बूस्टर को लगवाना डॉक्टरों की राय में अहम है ताकि बीमारियों से सुरक्षा बनी रहे।
नोट: छोटे बच्चों से लेकर बड़ों को इस वैक्सीनेशन से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें और उनके निर्देशों के अनुसार ही इसे लगवाएं।
-एजेंसियां