गोवर्धनपूजन
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इस दिन इंद्रपूजन के स्थानपर गोवर्धनपूजन आरंभ किए जानेके स्मरण में गोवर्धन पूजन करते हैं । इसके लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की तिथिपर प्रात:काल घरके मुख्य द्वार के सामने गौ के गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाते हैं । शास्त्र में बताया है कि, इस गोवर्धन पर्वत का शिखर बनाएं । वृक्ष-शाखादि और फूलोंसे उसे सुशोभित करें परंतु अनेक स्थानों पर इसे मनुष्यके रूप में बनाते हैं और फूल इत्यादि से सजाते हैं । चंदन, फूल इत्यादि से उसका पूजन करते हैं और प्रार्थना करते हैं ।
गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक ।
विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ।। – धर्मसिंधु
इसका अर्थ है, पृथ्वी को धारण करने वाले गोवर्धन ! आप गोकुलके रक्षक हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने आपको भुजाओं में उठाया था । आप मुझे करोडों गौएं प्रदान करें । गोवर्धन पूजन के उपरांत गौओं एवं बैलों को वस्त्राभूषणों तथा मालाओं से सजाते हैं । गौओं का पूजन करते हैं । गौमाता साक्षात धरती माता की प्रतीकस्वरूपा हैं । उनमें सर्व देवतातत्त्व समाए रहते हैं । उनके द्वारा पंचरस प्राप्त होते हैं, जो जीवों को पुष्ट और सात्त्विक बनाते हैं । ऐसी गौमाताको साक्षात श्री लक्ष्मी मानते हैं । उनका पूजन करनेके उपरांत अपने पापनाशके लिए उनसे प्रार्थना करते हैं । धर्मसिंधुमें इस श्लोकद्वारा गौमातासे प्रार्थना की है-
लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।। – धर्मसिंधु
इसका अर्थ है, धेनुरूप में विद्यमान जो लोकपालोंकी साक्षात लक्ष्मी हैं तथा जो यज्ञके लिए घी देती हैं, वह गौमाता मेरे पापों का नाश करें । पूजनके उपरांत गौओं को विशेष भोजन खिलाते हैं । कुछ स्थानोंपर गोवर्धन के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण, गोपाल, इंद्र तथा सवत्स गौओं के चित्र सजाकर उनका पूजन करते हैं और उनकी शोभायात्रा भी निकालते हैं ।
यमद्वितीया अर्थात भैय्यादूज
असामायिक अर्थात अकालमृत्यु न आए इसलिए यमदेवता का पूजन करनेके तीन दिनों में से कार्तिक शुक्ल द्वितीया एक है । यह दीपोत्सव पर्व का समापन दिन है । `यमद्वितीया’ एवं `भैय्यादूज’ के नाम से भी यह पर्व परिचित है । इन तीन दिनों में से यह एक दिन है । इन दिनों में भूलोक में यम तरंगें अधिक मात्रामें आती हैं । इन दिनों यमादि देवताओं के निमित्त किया गया कोई भी कर्म अल्प समयमें फलित होता है । इन तरंगोंके कारण विविध कष्ट हो सकते हैं, जैसे अपमृत्यु होना, दुर्घटना होना, स्मृतिभ्रंश होनेसे अचानक पागलपन का दौरा पड़ना, मिरगी समान दौरे पड़ना अर्थात फिट्स आना अथवा हाथ में लिये हुए कार्यमें अनेक बाधाएं आना । इसलिए कार्तिक शुक्ल द्वितीया की तिथि पर यमदेवका पूजन करते हैं । चौकीपर रखे चावलके तीन पुंजोंपर तीन सुपारियां रखते हैं । चौपाए पर चावलके तीन छोटे छोटे पूंजोंपर तीन सुपारियां रखी जाती हैं ।
पृथ्वी यमकी बहनका रूप है । इस दिन यमतरंगें पृथ्वी की कक्षामें आती हैं । इसलिए पृथ्वी की कक्षा में यमतरंगों के प्रवेश के संबंध में कहते हैं कि, कार्तिक शुक्ल द्वितीया की तिथि पर यम अपने घर से बहन के घर अर्थात पृथ्वीरूपी भूलोक में प्रवेश करते हैं । इसलिए इस दिन को यम– द्वितीयाके नाम से जानते हैं । यमदेवता के अपनी बहन के घर जानेके प्रतीक स्वरूप प्रत्येक घर का पुरुष अपने ही घर पर पत्नी द्वारा बनाए गए भोजन का न सेवन कर बहन के घर जाकर भोजन करता है । बहन द्वारा यमदेवता का सम्मान करनेके प्रतीक स्वरूप यह दिन `भैय्यादूज’ के नाम से भी प्रचलित है । इस दिन भोजनसे पूर्व बहन भाईका औक्षण करती है । इसमें वह प्रथम भाईको कुमकुम तिलक एवं अक्षत लगाती है । तदुपरांत भाई के मुखके चारों ओर अर्धगोलाकार आकृति में तीन बार सुपारी एवं अंगूठी घुमाती है । इसके उपरांत अर्धगोलाकारमें तीन बार आरती उतारती है । औक्षण करने के लिए उपयोग में लाए गए तेलके दीप में ईश्वरीय शक्तिका प्रवाह आकर्षित होता है। औक्षण करते समय दीप को अर्धगोलाकार घुमाने से दीप के सर्व ओर शक्ति का कार्यरत वलय उत्पन्न होता है। इस वलय द्वारा शक्ति की कार्यरत तरंगें भाईकी ओर प्रक्षेपित होती हैं । भाई की सूर्यनाडी कार्यरत होती है तथा उसमें शक्तिका वलय उत्पन्न होता है । भाई की देह में शक्ति के कणोंका संचार होता है तथा उसकी देह के सर्व ओर सुरक्षाकवच बनता है ।
इस दिन बहनें भाईके रूपमें यमदेव का औक्षण कर उनका आवाहन कर पितृलोक की अतृप्त आत्माओं को प्रतिबंधित करने के लिए उनसे प्रार्थना करती हैं । इस प्रकार परिजनों को यम तरंगों के कारण होने वाले कष्ट घटते हैं । यमतरंगों से परिजनोंकी रक्षा होती है। वास्तु का वायुमंडल शुद्ध बनता है । पृथ्वी का वातावरण सीमित समय के लिए यातना रहित अर्थात आनंददायी रहता है । औक्षण के उपरांत भाई बहनके हाथसे बना भोजन ग्रहण करता है । ऐसा बताया गया है, कि सगी बहन न हो, तो भाईदूज के दिन चचेरी, ममेरी किसी भी बहन के घर जाकर अथवा किसी परिचित स्त्री को बहन मानकर उसके घर भोजन करना चाहिए ।
भोजनके उपरांत भाई यथाशक्ति वस्त्राभूषण, द्रव्य इत्यादि उपहार देकर बहनका सम्मान करता है । यह उपहार सात्त्विक हो, तो अधिक योग्य है । जैसे साधना संबंधी, धर्मसंबंधी ग्रंथ, देवतापूजन हेतु उपयुक्त वस्त्र इत्यादि । कुछ स्थानोंपर स्त्रियां सायंकालमें चंद्रमाका औक्षण कर उसके उपरांत ही भाईका औक्षण करती हैं । भाई न हो, तो कुछ स्थानोंपर बहन चंद्रमाको भाई मानकर उनका औक्षण करती है ।
इस दिन स्त्रीद्वारा चंद्रमा का आवाहन करने से चंद्रतरंगें कार्यरत होती हैं । ये तरंगें वायुमंडल में प्रवेश करती हैं। इन तरंगों की शीतलता के कारण ऊर्जामयी यमतरंगें शांत होती हैं तथा वातावरण की दाहकता घटती है। इससे यमदेवका क्षोभ भी मिटता है । इसके उपरांत वातावरण प्रसन्न अर्थात सुखद बनता है । वातावरणकी इस प्रसन्नता के कारण स्त्रियोंके अनाहत चक्र की जागृति होती है । परिणामस्वरूप यमदेवताके उद्देश्य से भाईके पूजनकी विधिद्वारा भाव बढनेमें सहायता मिलती है तथा इष्ट फलप्राप्ति होती है ।
इस दिन स्त्रीमें देवीतत्त्व जागृत रहता है । इसका लाभ भाईको उसके भावानुसार मिलता है । भाई साधना करता हो, तो उसे आध्यात्मिक स्तरपर लाभ मिलता है । वह साधना न करता हो, तो उसे व्यावहारिक लाभ मिलता है । भाई कामकाज संभालते हुए साधना करता हो, तो उसे दोनों स्तरपर पचास–पचास प्रतिशत लाभ मिलता है ।
यमद्वितीया की तिथिपर बहन अपने भाईके कल्याण के लिए प्रार्थना करती है । इसका फल भाई को बहन के भावानुसार प्राप्त होता है । इसलिए बहन का भाई के साथ लेन-देन अंशतः घट जाता है । इसलिए यह दिन एक अर्थ से लेन-देन घटानेके लिए होता है । भाईदूजके दिन भाई में शिवतत्त्व जागृत होता है । इससे बहनका प्रारब्ध एक सहस्त्रांश प्रतिशत घट जाता है । भाईदूज के दिन शास्त्र में बताए अनुसार कृति करने के लाभ हमने समझ लिए । इन सूत्रोंसे हिंदु धर्म में बताए पर्वो उत्सवों का महत्त्व समझमें आता है ।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’
– कु. कृतिका खत्री,
सनातन संस्था, दिल्ली