लखनऊ: यूरोलॉजी के क्षेत्र में हुई हालिया प्रगति के साथ आज यूरोलॉजिकल बीमारियों का इलाज पहले की तुलना में कई गुना बेहतर हो गया है। आज, एडवांस रोबोटिक सर्जरी की मदद से किडनी ट्रांसप्लान्ट पहले की तुलना में बेहद आसान और सुरक्षित हो गया है।
द विंसी सर्जिकल सिस्टम (डीवीएसएस) के साथ मिनिमली इनवेसिव सर्जरी का विकास हुआ। यह एक आधुनिक टेक्नोलॉजी है, जिसने मुश्किल से मुश्किल सर्जरी को बेहद आसान बना दिया है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में यूरोलॉजी रीनल ट्रांसप्लान्ट विभाग के चेयरमैन, डॉक्टर अनंत कुमार ने बताया कि, “हालांकि, ओपन किडनी ट्रांसप्लान्ट आखरी चरण के किडनी फेलियर के इलाज का सबसे अच्छा विकल्प है, लेकिन यह प्रक्रिया ओपन सर्जरी जितने ही नुकसान रखती है। मोटापा, डायबिटीज और कमज़ोर इम्यूनिटी वाले मरीजों में सर्जरी के बाद आए घावों और कट्स में संक्रमण होने का खतरा रहता है। ये संक्रमण सर्जरी के परिणामों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। किडनी ट्रांसप्लान्ट के लिए लेप्रोस्कोपिक सर्जरी का भी प्रयास किया गया। लेकिन इसकी मुश्किल प्रक्रिया के कारण इसे कभी लोकप्रियता हासिल नहीं हुई और इसलिए यह कुछ ही केंद्रों तक सीमित रह गई।
दुनिया का पहला रोबोट असिस्टेड किडनी ट्रांसप्लान्ट सन् 2002 में फ्रांस में किया गया था। इसके बाद से यह लगातार लोकप्रियता हासिल करता रहा है। इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल भारत, यूरोप और अमेरिका में किया जाता है। समय के साथ इसके परिणामों में लगातार सुधार होता रहा है और किडनी के रोगियों को कई लाभ मिले हैं।
डॉक्टर अनंत कुमार ने अधिक जानकारी देते हुए बताया कि, “टेक्नोलॉजी में प्रगति के साथ द विंसी सर्जिकल सिस्टम तैयार किया गया। इस रोबोटिक सिस्टम के जरिए सर्जरी की मुश्किल से मुश्किल प्रक्रिया भी बिना चीर-फाड़ के आसानी से पूरी हो जाती है। यह तकनीक डॉक्टरों को हर चीज 3डी में देखने में मदद करती है इसलिए प्रक्रिया में गलती होने की संभावना न के बराबर होती है। यह एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है, जिसमें खून का बहाव और दर्द न के बराबर होता है। यही कारण है कि इसमें मरीज तेजी से रिकवर करता है। यह टेक्नोलॉजी अभी देश के कुछ ही अस्पतालों में उपलब्ध है और साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल इनमें से एक है। यहां के सभी ट्रांसप्लान्ट सर्जन ‘द विंसी सर्जिकल रोबोट को ऑपरेट करने में एक लंबा अनुभव रखते हैं। इस अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों, महिलाओं, पुरुषों, भारतीय और विदेशी मरीजों सहित अबतक 100 से अधिक मरीजों को सफलतापूर्वक ठीक किया जा चुका है।”