एक खुले मैदान में ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ी हुई घास. दूर से देखने पर ये जगह सैर करने के लिए बढ़िया लगती है.
लेकिन आस-पास के पौधों से क़रीब एक मीटर ऊंची ये घास किसी ख़ास वजह से बढ़ाई गई है. इन घासों में इंसानी लाशें पड़ी हैं, जो कई हफ्तों से यहां सड़ रही हैं.
आज एक गर्म और उमस भरा दिन है. जब आप इन बढ़ी हुई घासों के बीच चलते हैं तो लाशों की दुर्गंध बेहद तेज़ हो जाती है, इसकी वजह से आंखों में आंसू तक आ जाते हैं.
एक हेक्टेयर से थोड़े ज़्यादा बड़े इस मैदान में 15 इंसानी लाशें पड़ी हैं. इन लाशों पर कपड़े नहीं है, कुछ धातु के पिंजरे में रखी गई हैं. कुछ को नीली प्लास्टिक में लपेटा गया है. कुछ लाशें छोटे गड्ढे में थीं.
‘लाशों के खेत’
ये एक ओपन-एयर फोरेंसिक एंथ्रोपोलॉजी लैब है. जिसे यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा चलाती है. ये लैब काउंटी जेल के नज़दीक स्थित टैम्पा के एक ग्रामीण इलाक़े में है.
हालांकि कुछ लोग इस जगह को ‘लाशों के खेत’ कहते हैं. वैज्ञानिक इसे ‘फॉरेंसिक कब्रिस्तान’ या ‘टैम्फोनॉमी लैब’ कहते हैं. वैज्ञानिक यहां मौत के बाद शरीर में होने वाली प्रक्रिया का अध्ययन करते हैं.
2017 में बनाए गए इस ‘खेत’ को पहले हिल्सबोरा में बनाया जा रहा था लेकिन वहां रहने वाले लोगों ने इसका विरोध किया. उनका कहना था कि इसकी वजह से इलाके में जानवर आएंगे और बदबू फैलेगी. जिससे प्रॉपर्टी के दम कम हो जाएंगे. सिर्फ वहां रहने वाले लोग ही इस ‘खेत’ का विरोध नहीं कर रहे थे.
कुछ वैज्ञानिकों ने भी इस तरह के ‘लाशों के खेत’ की उपयोगिता पर सवाल उठाए और ये पूछा कि इन्हें बनाने से क्या फायदा होगा.
सड़ती लाशें
ये इस तरह का ऐसा अकेला फार्म नहीं है, बल्कि पूरे अमरीका में ऐसे छह और फार्म हैं जबकि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देश भी इस साल इन्हें खोलने की तैयारी कर रहे हैं.
इस जगह पर मौजूद ज़्यादातर लाशों को मौत से पहले इन्हीं लोगों ने दान किया था, ताकि विज्ञान के लिए इनका इस्तेमाल किया जा सके. कुछ मामलों में मरने वालों के परिजनों ने भी इन्हें दान किया.
बॉडी फार्म का मुख्य उद्देश्य ये जानना है कि इंसानी शरीर किस तरह से सड़ता है और उसके आस-पास के पर्यावरण पर इसका क्या असर पड़ता है.
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इससे महत्वपूर्ण डेटा जुटाने में मदद मिलेगी, जिससे अपराधों को सुलझाने और फोरेंसिक मामलों को बेहतर किया जा सकेगा.
डॉ. एरिन किम्मरले ने बीबीसी से कहा, “जब कोई मरता है तो एक साथ बहुत कुछ होता है. सड़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया के अलावा कुछ तरह के कीड़े आ जाते हैं और आसपास के पर्यावरण में भी बदलाव होता है.”
इस संस्था के डायरेक्टर डॉ. एरिन और उनकी टीम का मानना है कि लाशों का असली पर्यावरण और असली टाइम में अध्ययन करना महत्वपूर्ण है.
सड़न की प्रक्रिया को समझना
डॉक्टर एरिन का कहना है कि इंसानी शरीर के सड़ने की प्रक्रिया कई चरणों में होती है.
1. फ्रेश: जैसे ही दिल धड़कना बंद होता है, ये शुरू हो जाती है. तापमान गिर जाता है और खून शरीर में बहना बंद हो जाता है. कुछ जगहों पर खून जमा हो जाता है.
2. सूजन: बैक्टीरिया शरीर के सॉफ्ट टिशू को खाना शुरू कर देते हैं और त्वचा के रंग में हो रहा बदलाव दिखने लगता है. गैस बनने लगती है. शरीर फूल जाता है और सॉफ्ट टिशू टूटने लगते हैं.
3. सक्रिय सड़न: इस चरण में बॉडी का वज़न सबसे कम हो जाता है. ज़्यादातर सॉफ्ट टिशू को या तो कीड़े खा लेते हैं या उसमें से तरल निकलने लगता है और आसपास के पर्यावरण में रिसने लगता है.
4. एडवांस्ड सड़न: ज़्यादातर सॉफ्ट टिशू खा लिए जा चुके होते हैं. बैक्टीरिया और कीड़े कम होने लगते हैं. अगर लाश मिट्टी में रखी है तो आस-पास के पौधे मर जाते हैं और मिट्टी की एसिडिटी में भी बदलाव हो जाता है.
5. सूखे अवशेष: इसके बाद जो शरीर में बचता है वो किसी हड्डी के ढांचे की तरह दिखती है. सबसे पहले ये चेहरे, हाथ और पांव पर दिखने लगता है. अगर उमस है तो ममीकरण होने लगता है. अगर लाश मिट्टी में है तो आस-पास के पौधों को पोषण मिलने लगता है.
हालांकि ये निश्चित नहीं है कि चरणों का क्रम ऐसा ही होगा. ये पर्यावरण पर निर्भर करता है.
इसलिए डॉ एरिन और उनके साथी फोरेंसिक वैज्ञानिकों को लगता है कि इस तरह के फार्म में रिसर्च जारी रहनी चाहिए.
उपयोगी डेटा
अलग-अलग स्थितियों का अध्ययन करने के लिए कुछ शवों को धातु के पिंजरे में रखा जाता है और कुछ को खुले में रखा जाता है.
वैज्ञानिक देखते हैं कि इन सड़ रहे शवों में क्या-क्या हो रहा है. कीड़े सॉफ्ट टिशू खाते हैं और पीछे छोड़ देते हैं चमड़ी और हड्डियां.
लेकिन खुले में पड़े शवों के पास गिद्ध जैसे पशु-पक्षी आ जाते हैं. कई बार ये बड़ी तादाद में आ जाते हैं.
डॉ. एरिन कहते हैं, “हम हर शव से ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं.”
पूरी प्रक्रिया के दौरान वैज्ञानिक रोज़ फार्म में आते हैं और शवों में हो रहे बदलाव को नोट करते हैं. उनकी तस्वीरें लेते हैं, वीडियो बनाते हैं, गौर से देखते हैं और विस्तृत नोट्स बनाते हैं.
वो बॉडी की पॉजिशन और लोकेशन को भी देखते हैं. वो इस चीज़ का भी ध्यान रखते हैं कि बॉडी पानी के पास, ज़मीन पर या ज़मीन के अंदर, पिंजरे या खुले में है.
भूवैज्ञानिक और भूभौतिकी विशेषज्ञ भी उनके साथ मिलकर काम करते हैं और देखते हैं कि आसपास की मिट्टी, पानी, हवा और पेड़ पौधों पर क्या असर हो रहा है. शव से बाहर आ रहे पदार्थ से आसपास के पर्यावरण पर क्या असर पड़ रहा है?
जब शव हड्डियों के ढांचे में बदल जाता है तो उसे ड्राय लैब में भेज दिया जाता है. इन हड्डियों को साफ करके रख दिया जाता है. फिर छात्र और रिसर्चर इनका इस्तेमाल करते हैं.
अनसुलझे अपराध
वैज्ञानिकों द्वारा जुटाए गए डेटा का इस्तेमाल फोरेंसिक और कानूनी मेडिसिन जांच में किया जाता है.
इससे ये पता लगाया जा सकता है कि किसी की मौत कितनी देर पहले हो चुकी है. किसी जगह पर शव कितनी देर से पड़ा है. या फिर उसे कहीं और से ले जाकर कहीं और रख दिया गया है.
इससे उस शख्स के बारे में भी ज़रूरी जानकारी पता लगाई जा सकती है. जेनेटिक डेटा और हड्डी का विश्लेषण करने से आपराधिक जांच और अनसुलझी हत्याओं के मामले में मदद मिल सकती है.
लाशों के साथ काम करने की चुनौतियां
कुछ लोगों को ये काम हैरान करने वाला लग सकता है. लाशों, मरे हुए लोगों के साथ डील करना और सड़ रही लाशों में हो रहे मिनट-मिनट के बदलावों को रिकॉर्ड करना हैरान करने वाला लगता है.
लेकिन डॉक्टर एरिन कहते हैं कि दिमागी तौर पर इस काम का उनपर कोई असर नहीं पड़ता. मौत से जुड़े टैबू के बारे में वो कहते हैं, “एक प्रोफेशनल और वैज्ञानिक होने के कारण आप ऐसा करना सीख जाते हैं.”
उनके मुताबिक सबसे मुश्किल काम सब्जेक्ट के बारे में पता लगाना होता है.
वो कहते हैं, “अक्सर हम हत्याओं से जुड़ी जांच के लिए काम करते हैं और सबसे चुनौतिपूर्ण स्थिति किसी पेचीदा केस में होती है.”
“सबसे ज़रूरी चीज़ ये होती है कि एक इंसान दूसरे इंसान के लिए क्या कर सकता है.”
कई बार डॉ. एरिन और उनके साथी उन परिवारों के संपर्क में होते हैं, जिन्होंने 20 से तीस साल पहले अपने बच्चों को खो दिया था और वो अब भी उनके अवशेष ढूंढ रहे हैं.
वो कहते हैं कि इसमें उनका काम मदद करता है. उनके मुताबिक वो अमरीका में 1980 से अबतक करीब 250,000 हत्याओं के मामलों को सुलझा चुके हैं.
अक्तूबर 2017 में शुरू होने के बाद से इस फार्म के लिए 50 शवों को दान में दिया जा चुका है. और 180 लोग कह चुके हैं कि वो मौत के बाद अपना शव यहां दान कर देंगे.
इनमें ज़्यादातर बूढ़े लोग हैं जो अपनी ज़िंदगी के आखिरी पड़ाव पर हैं. लेकिन जिन लोगों को कोई संक्रामक रोग है, उनके शव नहीं लिए जाते. क्योंकि इससे अध्ययन कर रहे रिसर्चरों में संक्रमण फैलने का खतरा होता है.
विवाद
इस तरह के बॉडी फार्म की वजह से वैज्ञानिक डेटा ज़रूर मिलता है, लेकिन इससे होने वाले फायदे की अपनी सीमाएं भी हैं.
ब्रिटेन के एक विश्वविद्यालय में जैविक और फोरेंसिक के विशेषज्ञ पैट्रिक रैनडोल्फ कहते हैं कि खुले मैदान में इस तरह के इंस्टॉलेशन में कई तरह की समस्याएं हैं.
हालांकि बॉडी फार्म में होने वाले काम का वो आमतौर पर समर्थन करते हैं, लेकिन कहते हैं कि “कई चीज़े हैं जिन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता. उन्हें सिर्फ मॉनिटर किया जा सकता है. इसलिए इस तरह के फार्म में लिए गए डेटा की व्याख्या करना काफी मुश्किल है.”
लेकिन डॉ एरिन को लगता है कि भविष्य में इस तरह की ओपन-एयर लैब से बहुत फायदा होगा.
-BBC
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