आषाढ़ अमावस्या पर व्रत और श्राद्ध किए जाते हैं। साथ ही इस दिन भगवान विष्णु, शिव और पितरों के साथ पीपल पूजा की भी परंपरा है। इस पर्व पर पितृ पूजा करने से परिवार वालों की उम्र और सुख-समृद्धि भी बढ़ती है। इस दिन किए गए व्रत से कई तरह के दोष भी खत्म होते हैं।
पितृ पूजा का दिन
अमावस्या तिथि पर पितर चंद्रमा से अमृतपान करते हैं और उससे एक महीने तक संतुष्ट रहते हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अमावस्या के दिन पितर वायु के रूप में सूर्यास्त तक घर के दरवाजे पर रहते हैं और अपने कुल के लोगों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। इस दिन पितरों के लिए श्राद्ध और पूजा करने से परिवार वालों की उम्र और सुख-समृद्धि बढ़ती है। अमावस्या के दिन किए गए श्राद्ध से अगले एक महीने तक पितर संतुष्ट हो जाते हैं।
सूर्य-चंद्रमा से बनी अमावस्या
कृष्णपक्ष के शुरू होती ही चंद्रमा, सूर्य की तरफ बढ़ता रहता है। फिर कृष्णपक्ष की आखिरी तिथि पर सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में आ जाते हैं और इन दोनों ग्रहों के बीच का अंतर 0 डिग्री हो जाता है। संस्कृत में अमा का अर्थ होता है साथ और वस का मतलब साथ रहना। इसलिए इस दिन सूर्य-चंद्रमा के एक साथ होने से कृष्णपक्ष के 15वें दिन अमावस्या तिथि होती है।
आषाढ़ महीने की अमावस्या पर क्या करें और क्या नहीं
1. इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। लेकिन महामारी के चलते घर पर ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे मिलाकर नहाने से उतना ही पुण्य मिलेगा।
2. पूरे दिन व्रत या उपवास के साथ ही पूजा-पाठ और श्रद्धानुसार दान देने का संकल्प लें।
3. पूरे घर में झाडू-पौछा लगाने के बाद गंगाजल या गौमूत्र का छिड़काव करें।
4. सुबह जल्दी पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं।
5. पीपल और वट वृक्ष की 108 परिक्रमा करें इससे दरिद्रता मिटती है।
6. इसके बाद श्रद्धा के अनुसार दान दें। माना जाता है कि अमावस्या के दिन मौन रहने के साथ ही स्नान और दान करने से हजार गायों के दान करने के समान फल मिलता है।
7. तामसिक भोजन यानी लहसुन-प्याज और मांसाहार से दूर रहें।
8. किसी भी तरह का नशा न करें और पति-पत्नी एक बिस्तर पर न सोएं।
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