Internet पर बीमारी, दवाई या टेस्ट रिपोर्ट समझने की कोशिश करने वालों की संख्या कम नहीं है, कई लोग बीमारियों के लक्षण और इलाज खोजने के लिए Internet का इस्तेमाल करने लगे हैं। वह बीमारी के बारे में Internet पर पढ़ते हैं और उस पर अपने निष्कर्ष निकालने लगते हैं। इस रिसर्च के आधार पर ही वो डॉक्टर से भी इलाज करने के लिए कहते हैं। डॉक्टर्स का आए दिन इस तरह के मरीजों से आमना-सामना होता है और उन्हें समझा पाना डॉक्टर के लिए चुनौती बन जाता है।
डॉक्टर और मरीज दोनों परेशान
इस बारे में मैक्स अस्पताल में मेडिकल एडवाइजर और डायरेक्टर(इंटरनल मेडिसिन) डॉ। राजीव डैंग कहते हैं, ”हर दूसरा मरीज नेट और गूगल से कुछ न कुछ पढ़कर आता है, उसके मुताबिक सोच बनाता है और फिर बेबुनियाद सवाल करता है। मरीज अपनी इंटरनेट रिसर्च के अनुसार जिद करके टेस्ट भी कराते हैं और छोटी-मोटी दवाइयां ले लेते हैं।” ‘कई लोग सीधे आकर कहते हैं कि हमें कैंसर हो गया है। डॉक्टर खुद कैंसर शब्द का इस्तेमाल तब तक नहीं करते जब तक पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो जाते कि ये कैंसर है क्योंकि इससे मरीज को घबराहट हो सकती है।’
लोगों में दवाइयों का इस्तेमाल जानने को लेकर भी काफी उत्सुकता होती है। वह इस्तेमाल से लेकर दुष्प्रभाव तक इंटरनेट पर खोजने लगते हैं। डॉ। राजीव कहते हैं कि भले ही व्यक्ति किसी भी पेशे से क्यों न हो लेकिन वो खुद को दवाइयों में विशेषज्ञ मानने लगता है। उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया, ”एक बार मेरे एक मरीज के रिश्तेदार ने फोन करके मुझसे गुस्से में पूछा कि आपने ये दवाई क्यों लिखी। वो रिश्तेदार वर्ल्ड बैंक में काम करते थे। उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर तो लिखा है कि ये एंटी डिप्रेशन दवाई है और मरीज को डिप्रेशन ही नहीं है। तब मैंने समझाया कि ये दवाई सिर्फ एंटी डिप्रेशन की नहीं है। इसके और भी काम है लेकिन इंटरनेट पर पढ़कर ये नहीं समझा जा सकता।”
डिप्रेशन में धकेल रही हैं सबसे आम दवाइयां
अगर आप इंटरनेट पर ‘सिम्टम्पस ऑफ ब्रेन ट्यूमर’ सर्च करें तो वो सिरदर्द, उलटी, बेहोशी और नींद की समस्या जैसे लक्षण बताता है। इनमें से कुछ लक्षण दूसरी बीमारियों से भी मिलते-जुलते हैं। इसी तरह सिरदर्द सर्च करने पर ढेरों आर्टिकल इस पर मिल जाते हैं कि सिरदर्द से जुड़ी कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं। इससे मरीज भ्रम में पड़ जाता है। मनोचिकित्सक डॉ। संदीप वोहरा बताते हैं, ”ऐसे लोगों को जैसे ही खुद में कोई लक्षण नजर आता है तो वो इंटरनेट पर उसे दूसरी बीमारियों से मैच करने लगते हैं। इंटरनेट पर छोटी से लेकर बड़ी बीमारी दी गई होती है। मरीज बड़ी बीमारी के बारे में पढ़कर डर जाते हैं।”
वह कहते हैं कि इससे दिक्कत ये होती है कि मरीज नकारात्मक ख्यालों से भर जाता है। उसके इलाज में देरी होती है क्योंकि कई बार मरीज दवाइयों के दुष्प्रभाव के बारे में पढ़कर दवाई लेना ही छोड़ देते हैं। ग़ैरज़रूरी टेस्ट पर खर्चा करते हैं और अपना समय ख़राब करते हैं। कितना भी समझाओ लोग समझने की कोशिश ही नहीं करते।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन
यह सिर्फ बीमारी की जानकारी लेने तक ही सीमित नहीं है बल्कि लोग वीडियो देखकर सर्जरी और डिलिवरी करना तक सीख रहे हैं। किसी फिल्मी गाने और कुकिंग रेसिपि के वीडियो की तरह आपको सर्जरी के वीडियो भी आसानी से मिल जाते हैं। ऐसी ही वीडियो को देखकर जुलाई में एक पति-पत्नी ने घर पर ही डिलीवरी करने का फैसला किया। इस डिलीवरी में बच्चा तो हो गया लेकिन कॉम्पलिकेशन के कारण मां की जान चली गई। पुलिस ने महिला के पति को गिरफ्तार कर लिया है।
फॉर्टिस ला फेम में ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ। मधु गोयल बताती हैं, ”उनके पास आने वाले कई कपल सामान्य डिलिवरी की बजाए सर्जरी कराना चाहते हैं। वो कहते हैं कि वो सामान्य डिलिवरी का दर्द देखकर डर गए हैं। वो लोग कॉम्पलिकेशन पढ़कर आ जाते हैं और डर जाते हैं।” डॉ। मधु गोयल कहती हैं कि जब से 3 इडियट्स फिल्म में दिखाया गया है कि इंटरनेट पर देखकर डिलीवरी हो सकती है तब से बहुत से मरीज इसे बहुत आसान समझने लगे हैं। लेकिन जब कोई कॉम्प्लिकेशन हो जाता है तो मां और बच्चे की जान ख़तरे में पड़ जाती है।
डॉ। राजीव डैंग कहते हैं, ”वीडियो देखकर सर्जरी करना बहुत ही आपत्तिजनक है। मैं कई बार सर्जरी में शामिल रहा हूं लेकिन मेरी उसमें विशेषज्ञता नहीं इसलिए मैं भी कभी खुद सर्जरी करने के बारे में सोच भी नहीं सकता। आप पहली बार तो चाय भी ठीक से नहीं बना सकते तो सर्जरी कैसे करेंगे। ऐसा करने वाले का दिमाग सामान्य नहीं हो सकता।”
गलत होती हैं इंटरनेट पर मिलने वाली जानकारी
वह कहते हैं कि लोगों के बीच बीमारी में सलाह देने का चलन पहले से ही है लेकिन इंटरनेट आने से इसमें इजाफ़ा हो गया है। इसमें जानकारी भी बहुत ज़्यादा मिल जाती है। लोग जल्दी जानकारी चाहते हैं। डॉक्टर के पास जाने के लिए उन्हें इंतजार करना होगा और बाहर जाना पड़ेगा। जबकि इंटरनेट तुरंत उसी वक्त उपलब्ध होता है। वहीं, एक सवाल ये भी है कि इंटरनेट पर दी गई हर जानकारी पर आंख मूंदकर भरोसा करना कितना सही है। इंटरनेट पर कई फर्जी दावे किये जाते हैं या किसी लॉबी के तहत गलत जानकारी फैलाई जाती है और उन पर कोई रोकटोक नहीं है।
अपनी बीमारी के बारे में सबकुछ जानना मरीज का हक है लेकिन परेशानी ये होती है कि नेट पर दी गई हर जानकारी सही नहीं होती। कई तरह की सनसनीखेज बातें नेट पर डाली जाती हैं। जैसे कि चार महीने के शिशु को बचाया गया लेकिन प्रैक्टिस में ऐसा नहीं होता। फिर लोग हमसे भी ऐसा ही उम्मीद करने लगते हैं और बहस करते हैं। इसके कारण डॉक्टर और मरीज के रिश्ते में कई सारे दिक्कतें आ रही हैं। ”दरअसल, दवाइयों के डॉक्यूमेंट्स में सारे रिएक्शन लिखे जाते हैं लेकिन ये सभी रिएक्शन हर व्यक्ति पर लागू नहीं होते। कोई रिएक्शन दस हजार में से किसी एक को भी हो सकता है। पर लोग डर की वजह से दवाइयां लेना ही बंद कर देते हैं।”
क्या हो समाधान
बीमारी के बारे में इंटरनेट पर सर्च करना कितना सही है। क्या ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए? डॉक्टर राजीव डैंग का मानना है, ”हम मरीजों को बीमारी पर गौर करने से मना नहीं करते लेकिन इंटरनेट पर मिली जानकारी का अपने समझ से मतलब न निकालें। इससे उन्हें और डॉक्टर दोनों को परेशानी होती है। उनके न ख़त्म होने वाले सवाल होते हैं। डॉक्टर कई सालों की पढ़ाई करता है तो आप कुछ घंटे एक बीमारी को पढ़कर कैसे सबकुछ समझ सकते हैं।”
”यहां तक कि डॉक्टर ऐसे मरीजों को नेट पेशेंट या गूगल डॉक्टर कहने लगे हैं। आप भरोसे के साथ आईए। जब आप डॉक्टर पर भरोसा दिखाएंगे तभी इलाज हो पाएगा। भले ही आप दूसरे डॉक्टर की सलाह ले लीजिए लेकिन इंटरनेट के आधार पर फैसला मत कीजिए।”
वहीं आईएमए ने इंटरनेट पर मौजूद सामग्री और ऑनलाइन कंसल्टेंसी को लेकर एक रिपोर्ट तैयार करके सरकार को दी है। हमारे देश में टेली मेडिसन, टेली कंसल्टेंशन, इंटरनेट कंसल्टेंशन कोई नीति नहीं बनी है। इस नीति में सहयोग के लिए एक दस्तावेज दिया है। Internet पर हर चीज़ पर प्रतिबंध तो नहीं लगाया जा सकता लेकिन उनमें चेतावनी डाली जा सकती है कि उसका घर पर अपनी मर्जी से इस्तेमाल न करें।”
-एजेंसी
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