मोदी जी इस बात का प्रयोग कर रहे हैं कि उन्हें बिल्कुल ही न सोना पड़े तो उनका संदेश साफ है कि न सोऊंगा, न सोने दूंगा
24 घंटे जागने पर विपक्ष पर निगरानी रखने में आसानी होगी। वर्ना तो नजर हटी, दुर्घटना घटी
• सर्वमित्रा सुरजन
महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर दावा किया है कि वह हर दिन केवल दो घंटे सोते हैं और 22 घंटे काम करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह इन दिनों एक ऐसा प्रयोग कर रहे हैं कि उन्हें बिल्कुल सोना न पड़े और वे देश के लिए 24 घंटे काम कर सकें। श्री मोदी नींद को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वह 24 घंटे जागकर देश के लिए काम कर सकें। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री एक मिनट भी बर्बाद नहीं करते हैं। प्रधानमंत्री बहुत कुशलता से काम करते हैं और देश में किसी भी पार्टी में होने वाली घटनाओं से अवगत रहते हैं। जब भाजपा का इतना बड़ा नेता ऐसा दावा कर रहा है, तो इसे सेंत-मेंत में खारिज नहीं किया जा सकता। अब तक तो मोदीजी को अवतारी और सिद्ध पुरुष कहा जाता था। अब उनकी दैवीय शक्तियों का कमाल भी देखने मिलेगा। वैसे भी उनके बहुत से अनुयायी बताते हैं कि वे संन्यास के दौरान हिमालय में थे और वहां से सिद्धि हासिल करके लौटे हैं। देश ने भी उनके गुफा ध्यान की मुद्रा को देखा ही है। चश्मा लगाकर, खूंटी पर कपड़ा टांगकर, कैमरों की चकाचौंध के बीच ध्यान लगाना कोई साधारण इंसान के बस की बात नहीं है। ये काम सिद्ध लोग ही कर सकते हैं। अब चंद्रकांत पाटिल के दावे से साफ हो गया है कि देश में चौकीदारों के बुरे दिन शुरु होने वाले हैं। जब चौकीदारों के चौकीदार 24 घंटे जागने लगेंगे, तो फिर मजाल है कि गली-मोहल्लों के चौकीदार पल भर की भी झपकी ले सकें। जागते रहो के साथ डंडे की ठक-ठक करने वाले अब खुद नहीं सो पाएंगे। और जब मोदीजी इस बात का प्रयोग कर रहे हैं कि उन्हें बिल्कुल ही न सोना पड़े तो उनका संदेश साफ है कि न सोऊंगा, न सोने दूंगा।
याद कीजिए, सत्ता संभालने से पहले भी उन्होंने ऐसा ही एक ऐलान किया था। न खाऊंगा, न खाने दूंगा। लोगों ने समझा नरेन्द्र भाई भ्रष्टाचार मिटाने की बात कर रहे हैं। भ्रष्ट लोगों को डराने के लिए कह रहे हैं कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा। मगर भ्रष्टाचारियों को किसी बात का डर तो नहीं लगा, अलबत्ता उनके पर जरूर निकल आए। इधर बैंकों से कर्ज की मोटी रकम ऐंठी, कुछेक बड़े घोटालों में अपना नाम दर्ज करवाया और उधर दौलत के परों के सहारे विदेशों के लिए उड़ान भर ली। जनता अपने बैंक खातों में 15-15 लाख आने का इंतजार ही करती रही, जबकि बैंक में उसकी जो थोड़ी-बहुत जमा-पूंजी थी, वो भी व्यवस्था की भेंट चढ़ा दी गई। सब कुछ लुटा चुकी जनता के सामने अब खाने के लाले पड़े हैं, क्योंकि तेल, गैस, दूध, सब्जी-फल सब रत्नों की तरह महंगे हो चुके हैं। स्मृति ईरानी जब तक सास-बहू वाले अंदाज में राजनीति कर रही थीं, तो उन्होंने महंगे होते सिलेंडर को लेकर खूब हल्ला मचाया था। अब सिलेंडर हजार रुपए तक आ गया है और श्रीमती ईरानी सीरियल की दुनिया से निकलकर संसद की दुनिया में पहुंच चुकी हैं। अब सिलेंडर को लेकर कोई हंगामा नहीं दिखता। सत्ता पाने के लिए जो आग लगानी थी, जो चिंगारी भड़कानी थी, वो सारे मकसद पूरे हो गए। अब चूल्हे न जलें तो ये बात भी उनके पक्ष में ही जाएगी कि हमारे दूरदृष्टा प्रधानमंत्री जो कहते हैं, वो कर के दिखाते हैं। जब उन्होंने पहले ही कह दिया कि खाने नहीं दूंगा, तो लोगों को अपनी भूख काबू में रखना सीखना चाहिए था।
खैर भूख काबू में नहीं आई, तो उसका परिणाम भी जनता ही भुगतेगी। प्रधानमंत्री इसमें क्या करेंगे, वे तो पहले ही चेतावनी जारी कर चुके थे। और लोगों ने देखा ही होगा कि अपनी मां के हाथ से दो निवाले खाकर वे कैसे तृप्त नजर आते हैं। तो जनहित में यह सुझाव दिया जा सकता है कि सभी लोग अपनी मांओं के हाथ से या उनके सामने बैठकर खाना खाएं, आधे भोजन से ही पेट भर जाएगा। शर्त यही है कि जब भी ऐसा करें, तो कैमरे को चालू कर लें। अगर फिर भी भूख शांत न हो, तो उपवास करने की आदत डाल लें। नवरात्रि शुरु होने वाली है, शायद प्रधानमंत्री फिर से केवल नींबू पानी पर ही रहें, पिछले 41-42 सालों से वे ऐसा कर रहे हैं।
उनकी सेहत और तरक्की को किसी की नजर न लगे। तो लोग उनका अनुसरण करें, इससे देश में भूख, महंगाई और खाद्यान्न की कमी जैसी समस्याएं कम से कम 9-10 दिनों तक परेशान नहीं करेंगी। कुपोषण जैसे संकट पर भी बचाव के लिए तर्क गढ़े जा सकते हैं कि लोग कुपोषित नहीं हैं, उपवास पर हैं। वैसे भी मोदीजी तो ऐसे तर्क गढ़ने में माहिर हैं ही। याद कीजिए दस साल पहले 2012 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से जब अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल ने यह सवाल पूछा कि गुजरात कुपोषण का शिकार है तो उनका जवाब था, ‘गुजरात एक शाकाहारी राज्य है। यह मिडिल क्लास लोगों का राज्य है। मिडिल क्लास लड़कियां दूध पीना नहीं चाहती क्योंकि वो सुंदर दिखना चाहती हैं। लड़कियां मोटी होने के डर से दूध पीने से कतराती हैं। यह हमारे लिए चुनौती है।’
कैसी-कैसी चुनौतियों का सामना किया है मोदीजी ने। पहले लड़कियों को दूध पिलाने की चुनौती थी, अब लड़कियों को बचाने, पढ़ाने और आगे बढ़ाने की चुनौती है। खैर, अब ऐसी कठिन चुनौतियों से जब निपटना हो तो फिर बड़े ऐलान करने ही पड़ते हैं। कुपोषण की चुनौती थी तो न खाऊंगा, न खाने दूंगा का ऐलान हो गया। अब रोजगार देने की चुनौती है, तो मोदीजी 24 घंटे जागने का प्रयोग कर रहे हैं। इससे भी एक तीर से दो शिकार होंगे। एक तो 24 घंटे जागने पर विपक्ष पर निगरानी रखने में आसानी होगी। वर्ना तो नजर हटी, दुर्घटना घटी वाला आलम हो सकता है। सत्ता की रखवाली करनी है, तो 24 घंटे जागना ही होगा। और नजर रखने के लिए कब तक विदेशी जासूसी के भरोसे रहा जा सकता है। जब देश को हर मामले में आत्मनिर्भर बनाना है, तो फिर निगरानी का जिम्मा भी खुद ही उठाना पड़ेगा। सरकार जब बादलों के बावजूद पड़ोसियों को धप्पा कहने की क्षमता रखती है, तो फिर दिन-रात जगे रहकर यह काम और कितने बढ़िया तरीके से हो सकेगा।
24 घंटे जागने का दूसरा फायदा यह होगा कि सपने दिखने बंद हो जाएंगे। जब सपने दिखेंगे ही नहीं, तो फिर बेकार का कष्ट नहीं होगा कि नौकरियां नहीं मिल रहीं, या किसानों की आमदनी दोगुनी नहीं हो रही। किसान तो पिछले डेढ़ सालों में खुली सड़कों पर, खुली आंखों से सच देख ही चुके हैं। उनके सपने तो पराली की तरह जला दिए गए। उसका धुआं भी उनके लिए कष्टदायक है। इस बात से नौजवानों को भी सबक ले लेना चाहिए। बस जागते रहें, नौकरियां पाने के सपने न देखें। अगर कभी कोई सपना याद आ जाए तो आधी रात को सड़क पर दौड़ने लगें, क्या पता किसी कैमरे वाले की नजर पड़ जाए और कुछ दिनों की शोहरत मिल जाए।
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